योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राण+आयाम से प्राणायाम शब्द बनता है। प्राण का अर्थ जीवात्मा माना जाता है, लेकिन इसका संबंध शरीरांतर्गत वायु से है जिसका मुख्य स्थान हृदय में है। व्यक्ति जब जन्म लेता है तो गहरी श्वास लेता है और जब मरता है तो पूर्णत: श्वास छोड़ देता है। तब सिद्ध हुआ कि वायु ही प्राण है। आयाम के दो अर्थ है- प्रथम नियंत्रण या रोकना, द्वितीय विस्तार।हम जब सांस लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर हो जाती है। पांच भागों में गई वायु पांच तरह से फायदा पहुंचाती है, लेकिन बहुत से लोग जो श्वास लेते हैं वह सभी अंगों को नहीं मिल पाने के कारण बीमार रहते हैं। प्राणायाम इसलिए किया जाता है ताकि सभी अंगों को भरपूर वायु मिल सके, जो कि बहुत जरूरी है।
पहली वायु व्यान के फायदे...
(1)
व्यान : व्यान वह प्राणशक्ति है, जो समस्त शरीर में व्याप्त रहती है। इसे कदाचित् रक्त द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचने वाले पोषक तत्वों के प्रवाह से जोड़ा जा सकता है। यह वायु समस्त शरीर में घूमती रहती है। इसी वायु के प्रभाव से रस, रक्त तथा अन्य जीवनोपयोगी तत्व सारे शरीर में बहते रहते हैं। शरीर के समस्त कार्यकलाप और कार्य करने की चेष्टाएं बिना व्यान वायु के संपन्न नहीं हो सकती हैं। जब यह कुपित होती है तो समस्त शरीर के रोग पैदा करती है।व्यान वायु चरबी तथा मांस का कार्य भी करती है। यह वायु हमारी चरबी और मांस में पहुंचकर उसे सेहतमंद बनाए रखती है। यह शरीर से अतिरिक्त चर्बी को घटाती और चमड़ी को पुन: जवान बनाती है।इस वायु के सही संचालन से हमारे शरीर का क्षरण रुक जाता है।
दूसरी वायु समान के फायदे...
(2)
समान : नाभिक्षेत्र में स्थित पाचन क्रिया में सम्मिलित प्राणशक्ति को समान कहा जाता है। समान नामक संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता भी है।यह वायु हड्डियों के लिए लाभदायक है। हड्डियों तक इस वायु को पहुंचने में काफी मेहनत करना पड़ती है। यदि नहीं पहुंच पाती है तो हड्डियां कमजोर रहने लगती हैं।आप भरपूर शुद्ध वायु का सेवन करें ताकि हड्डी तक यह वायु समान बनकर पहुंच सके। इस वायु से हड्डी सदा मजबूत और लचीली बनी रहती है। जोड़ों का दर्द नहीं होता और जोड़ों में पाया जाने वाला पदार्थ बना रहता है।
तीसरी वायु अपान के फायदे...
(3)
अपान : अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है। रस अर्थात जल और अन्य तरल पदार्थ। यह वायु हमारी पाचनक्रिया के लिए जरूरी है।यह वायु पक्वाशय में रहती है तथा इसका कार्य मल, मूत्र, शुक्र, गर्भ और आर्तव को बाहर निकालना है। जब यह कुपित होती है तब मूत्राशय और गुर्दे से संबंधित रोग होते हैं। अपान मलद्वार से निष्कासित होने वाली वायु है।
चौथी वायु उदान के फायदे...
(4)
उदान : उदान का अर्थ ऊपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायु तंत्र में होती है। यह स्नायु तंत्र को संचालित करती है। इसके खराब होने से स्नायु तंत्र भी खराब हो जाते हैं। उदान को मस्तिष्क की क्रियाओं को संचालित करने वाली प्राणशक्ति भी माना गया है।सरल भाषा में कहें तो उदान वायु गले में रहती है। इसी वायु की शक्ति से मनुष्य स्वर निकालता है, बोलता है, गीत गाता है और निम्न, मध्यम और उच्च स्वर में बात करता है। विशुद्धि चक्र को जगाती है यही इसके फायदे हैं।
पांचवीं वायु प्राण के फायदे...
(5)
प्राण : यह वायु निरंतर मुख में रहती है और इस प्रकार यह प्राणों को धारण करती है, जीवन प्रदान करती है और जीव को जीवित रखती है। इसी वायु की सहायता से खाया-पिया अंदर जाता है। जब यह वायु कुपित होती है तो हिचकी, श्वास और इन अंगों से संबंधित विकार होते हैं। प्राणवायु हमारे शरीर का हालचाल बताती है। इस वायु का दूसरा स्थान खून में और तीसरा स्थान फेफड़ों में होता। यह खून और फेफड़े की क्रियाओं को संचालित करती है। शरीर में प्राणवायु जीवन का आधार है। खून को खराब या शुद्ध करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहता है।-
अनिरुद्ध