हिन्दू धर्म के संन्यासियों में से एक नागा सन्यासी अपने पूरे शरीर पर भभूत धारण करते हैं। नागाओं में भी दिगंबर साधु ही शरीर पर भस्मी या भभूत लगाते हैं। यह भस्मी या भभूत ही उनका वस्त्र और श्रृंगार होता है। यह भभूत उन्हें बहुत सारी आपदाओं से बचाती है।
कैसे बनती है भभूत : भभूत बहुत लम्बी प्रक्रिया के बाद तैयार होती है। हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है।
कहते हैं कि कुछ नागा बाबा चिता की राख को शुद्ध करके शरीर पर मलते हैं और कुछ अपने धूने की राख को ही शरीर पर मलते हैं। नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं। उनकी बड़ी-बड़ी जटाएं भी आकर्षण का केंद्र रहती है। हाथों में चिमटा, चिलम, कमंडल लिए और चिलम का कश लगते हुए इन साधुओं को देखना अजीब लगता है। मस्तक पर आड़ा भभूतलगा तीनधारी तिलक जिसे त्रिपुंड भी कहते हैं, ये लगारक धुनी रमाकर रहते हैं।