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Kumbh mela 2025: कुंभ मेले में अब तक हुए संघर्ष और हादसों का इतिहास

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WD Feature Desk

, सोमवार, 20 जनवरी 2025 (12:24 IST)
History of Kumbh accidents: वर्ष 2025 के कुंभ मेले में आग लगने से करोड़ा का माल आग में स्वाहा हो गया। हालांकि इसमें किसी की मौत की अभी तक कोई पुष्टी नहीं हुई है। कुंभ का मेला चार स्थानों पर ही आयोजित होता है- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन। इसे विश्व का सबसे बड़ा मेला और मानव समुदाय का सबसे बड़ा समागम माना जाता है। ज्ञात इतिहास के अनुसार कुंभ मेला का आयोजन भगवान बुद्ध के काल से ही चला आ रहा रहा है। तब से लेकर अब तक कुंभ में छोटे से लेकर कई बड़े हादसे हुए हैं।ALSO READ: Maha Kumbh Mela 2025 : प्रयागराज महाकुंभ में आग, LPG सिलेंडरों में विस्फोट, 18 शिविर खाक, 1 घंटे में पाया गया काबू
 
1. अखाड़ों का आपसी संघर्ष : डॉ. बिंदु जी महाराज बिंदु की पुस्तक कुंभ महापर्व और अखाड़े के अनुसार सन् 1310 के हरिद्वार कुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े के 22 हजार नागाओं ने कनखल में रामानंदी वैष्णवों पर हमला कर दिया था। दोनों संप्रदायों का युद्ध करीब एक सप्ताह चला था। इस संघर्ष में भी काफी लोग मारे गए थे। हरिद्वार में 1760 एवं 1690 में ऐसा ही संघर्ष हुआ था। इसके बाद 1879 में हरिद्वार में एवं 1838 में त्रयंम्बकेश्वर कुंभ के दौरान अखाड़ों के आपसी संघर्ष में काफी लोग मारे गए थे। 1796 के कुम्भ में शैव संयासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे। 
 
2. कुंभ पर हमला: सन् 1398 के हरिद्वार अर्धकुंभ के अवसर पर तो विदेशी आक्रांता तैमूर लंग ने यात्रियों को लूटा एवं सैकड़ों यात्रियों को मौत के घाट उतार दिया था। सन् 1666 के हरिद्वार कुंभ में औरंगजेब के सैनिकों ने आक्रमण कर दिया था, जिनका मुकाबला संन्यासियों एवं वैष्णवों ने मिलकर किया था। 
 
3. कुंभ 1954 का हादसा: प्रयाग में आयोजन 1954 के कुंभ मेले में भीड़ की भगदड़ में 800 से अधिक लोग मारे गए, और 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे। 1954 कुंभ मेला भगदड़ 3 फरवरी 1954 को मेले में हुई भीड़ की बड़ी भगदड़। यह घटना मौनी अमावस्या के मुख्य स्नान के समय हुई। उस वर्ष मेले में 4-5 मिलियन तीर्थयात्रियों ने भाग लिया था। विक्रम सेठ द्वारा 1993 में लिखे गए उपन्यास ए सूटेबल बॉय में 1954 के कुंभ मेले में हुई भगदड़ का संदर्भ है।उपन्यास में, इस घटना को "कुंभ मेला" के बजाय "पुल मेला" कहा गया है।ALSO READ: ये हैं महाकुंभ 2025 में अब तक के वायरल चेहरे, जानिए क्यों किया लोगों को आकर्षित
 
4. नासिक कुंभ 2003 में हादसा : सन् 2003 के नासिक सिंहस्थ कुंभ में अंतिम शाही स्नान के दौरान हुए हादसे में 39 श्रद्धालु मारे गए थे। यह हादसा कुछ संतों द्वारा चांदी के सिक्के लुटाने के कारण हुआ था, जिसे लूटने के लिए श्रद्धालु एक-दूसरे पर टूट पड़े और भगदड़ में कई महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। 
 
5. हरिद्वार का कुंभ : सन् 1986 के हरिद्वार महाकुंभ में हुई भगदड़ में करीब 200 लोग मारे गए थे। यह भगदड़ 14 अप्रैल, 1986 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री एवं दो दर्जन से ज्यादा सांसदों के स्नान करने आ जाने के कारण हुई थी। इस दुर्घटना की जांच के लिए बनी श्री वासुदेव मुखर्जी रिपोर्ट में कहा गया था कि मुख्य स्नान पर्व पर अतिविशिष्ट लोगों को नहीं आना चाहिए। हरिद्वार का कुंभ 1950 एवं 1927 में भी भगदड़ के कारण कलंकित हो चुका है। इन दोनों कुंभों में भी भगदड़ में सैकड़ों लोग मारे गए थे।
 
हरिद्वार में 1927 में बैरीकेडिंग टूटने से काफी बड़ी दुर्घटना हो गई थी। वर्ष 1986 में भी दुर्घटना के कारण कई लोग हताहत हो गए। 1998 में हर की पौड़ी में अखाड़ों के बीच संघर्ष हुआ था। 2004 के अर्धकुंभ मेले में एक महिला से पुलिस द्वारा की गई छेडछाड़ ने जनता, खासकर व्यापारियों को सड़क पर संघर्ष के लिए मजबूर कर दिया। जिसमें एक युवक की मौत हो गई थी।ALSO READ: कैसे किया जा रहा है महाकुंभ में भीड़ का सटीक आकलन, जानिए कैसे AI और सैटेलाइट तकनीक का हो रहा इस्तेमाल
 
6. हरिद्वार कुंभ में गोलीबारी: 1998 के हरिद्वार कुंभ के दूसरे शाही स्नान के दौरान शाही स्नान को लेकर संन्यासी अखाड़ों की आपसी भिड़ंत में पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी। इस गोलीबारी में दर्जनों नागा संन्यासी मारे गए थे। पुलिस एवं आम श्रद्धालुओं को भी जख्मी होना पड़ा था।
 
7. कुंभ 2013 का हादसा: मौनी अमावस्या पर इलाहाबाद स्टेशन पर हुए हादसे में जहां तीन दर्जन के लगभग लोगों की मौत हो गई थी, वही कई दर्जन श्रद्धालुओं को चोटें आईं थी। मौनी अमावस्या पर उम्मीद से ज्यादा श्रद्धालुओं के संगम पर पहुंचने से मेला प्रशासन व रेलवे प्रशासन की व्यवस्था धरी रह गई थी और तीन दर्जन से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। 
 
8. पहली बार नहीं होने दिया आयोजन: 1942 में जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की चपेट में थी, तब भारत भी अंग्रेजी शासन के अधीन था। तब कुंभ मेले पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा दिया गया था। अंग्रेजों को डर था कि जापान कुंभ मेले में एकत्रित हुए लाखों लोगों पर बमबारी कर सकता है। अंग्रेजों को इस बात का भी डर था कि कुंभ मेले में स्वतंत्रता सेनानी एकजुट होकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं। कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगने से लाखों श्रद्धालु निराश हुए। उन्होंने अंग्रेजी सरकार के इस फैसले का विरोध किया। हालांकि, अंग्रेजों ने अपना फैसला नहीं बदला।

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