प्रयागराज कुंभ मेला 1965 के समय भारत के हालत पाकिस्तान और चीन के साथ अच्छे नहीं थे। युद्ध के हालात थे और उसी समय कुंभ का आयोजन भी हुआ। हालांकि कुंभ के बाद युद्ध हुआ लेकिन उस समय युद्ध का तनाव भी था। इसलिए 1965 का कुंभ मेला अपने ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय माना जाता है। 1965 के कुंभ मेले में लाखों श्रद्धालुओं ने भाग लिया था। प्रशासन ने सुरक्षा, स्वच्छता और यातायात प्रबंधन के लिए व्यापक इंतजाम किए। साधु-संतों और अखाड़ों की विशेष शोभायात्राएं और शाही स्नान आयोजन का मुख्य आकर्षण रहे। कुंभ मेले में प्रमुख स्नान तिथियां (मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि आदि) पर लाखों श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने पहुंचे थे।
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युद्ध के तनाव के बीच लाखों लोगों के आगमन के कारण प्रशासन को भीड़ प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवाएं और स्वच्छता सुनिश्चित करने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, 1965 का कुंभ मेला सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। 1965 का कुंभ मेला भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है। 1965 का प्रयागराज कुंभ मेला धार्मिक श्रद्धा, सांस्कृतिक विविधता और प्रशासनिक कुशलता का उत्कृष्ट उदाहरण था। इसने न केवल आध्यात्मिक चेतना को मजबूत किया, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्तर पर भी प्रस्तुत किया।
पहली बार कुंभ में बुलडोजर का उपयोग:
उस दौर में भी कुंभ के आयोजन के लिए कई माह पूर्व ही तैयारियां प्रारंभ हो गई थी। उस दौर में किसी ने बुलडोजर का नाम भी नहीं सुना था लेकिन इससे उस समय गंगा किनारे की उबड़ खाबड़ जमीन को समतल किया गया। उस समय कोई ज्यादा घाट नहीं होते थे। गंगा जी ने अपना किनारे 30 से 40 फीट गहरा काट दिया था जिसके कारण यहां स्नान करना असंभव था। बुलडोजर ने इन किनारों को सपाट बनाया जिससे तीर्थ यात्री यहां पर सकुशल स्नान कर सके। जिस काम को करने में 3 माह और 1 हजार लोगों की शक्ति लगती उस काम को बुलडोजर ने 15 दिनों में कर दिया।
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पहली बार पुलों का निर्माण:
फौज के इंजीनियरों ने रेलवे लाइन पर पुल बनाने में बहुत मदद की। इससे रेलों के आने जाने के समय में न तो रेलों का आवागमन बाधित हुआ और न ही कुंभ में आने जाने वाली भीड़ सड़कों पर रुकी रही। त्रिवेणी की ओर आने जाने का मार्ग सुगम किया और जगह की कमी के कारण लोगों के रहने का स्थान गंगा के पार झूंसी की ओर किया गया। वहां से इस पार आने के लिए पीपों के छह पुल बनाए गए।
पहली बार पर्याप्त बिजली व्यवस्था:
कुंभ मेले के इतिहास में यह पहला मौका था जबकि यहां पर बिजली लगी और इसकी पर्याप्त व्यवस्था की गई। 1000 हजार बिजली के खंभों के लिए 160 मील लंबी तारों का उपयोग किया गया।
चिकित्सा सुविधाएं और अन्य साधन:
उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने भी यहां अच्छा कार्य किया। उन्होंने संपूर्ण मेला क्षेत्र में डीडीटी का छिड़काव किया जिसके कारण मेले में मच्छर और मक्खियों का प्रकोप नहीं रहा। मेले के प्रारंभ से ही सरकार ने हैजे के टीके लगवाने का प्रबंध किया था। यात्रियों को सलाह दी गई की वे मेला क्षेत्र में आने से पहले टीके लगवा लें। इसी व्यवस्था के कारण मेले के दौरान किसी भी प्रकार का रोग नहीं फैला। सरकार ने मेले में दुर्घटना से बचने के भी अच्छे इंतजाम किए। घायल यात्रियों को ले जाने के लिए पर्याप्त एंबुलेंस का इंतजाम रखा। 9 अस्थाई अस्पताल भी कैंपों में खोले गए थे। यात्रियों की सुविधाओं के लिए पर्याप्त राशन पानी का इंतजाम भी किया गया। सेवा संस्थानों और संघ ने भी सभी की सुविधाएं उपलब्ध कराई। भूले भटके लोगों को खोजकर उनके घर पहुंचाने का काम भी किया गया। मेले में लाउडस्पीकर से खोए लोगों का नाम पुकारा गया।
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मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का दौरा:
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने मेले में पर्याप्त सुरक्षा और सुविधाओं का मौका मुआयना भी किया। उन्होंने नाव पर सवार होकर घाटों का निरीक्षण भी किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी मेले के इंतजाम का निरीक्षण किया। भारत के लाखों व्यक्तियों की भांति भारत के राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद ने भी त्रिवेणी स्नान किया। इस दिन यहां पर अपार जनसमूह इकट्ठा था। लाखों लोगों ने कुंभ में डुबकी लगाई।
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