Shankaracharya Selection Process: महाकुंभ, भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। इस मेले में शंकराचार्यों का विशेष महत्व होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सनातन धर्म में किसने की थी शंकराचार्य परंपरा की शुरुआत? कितने शंकराचार्य होते हैं और इस पद को पाने के लिए क्या योग्यताएं चाहिए होती हैं? आइये वेबदुनिया हिंदी पर इस आलेख में जानते हैं।
कब हुई शंकराचार्य की शुरुआत
आदि शंकराचार्य हिंदू धर्म के दार्शनिक और धर्मगुरु थे। उन्हें सनातन धर्म के सबसे महान प्रतिनिधि में से एक माना जाता है। आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के लिए भारत के चरों कोनों में चार मठ स्थापित किए। उन्होंने दशनामी सम्प्रदाय की स्थापना की और इन मठों के 4 मठाधीश नियुक्त किए।
शंकराचार्य कौन होते हैं?
जिन मठों की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की उन्हीं मठों के प्रमुखों को मठाधीश कहा गया। बाद में शंकराचार्य एक परंपरा बन गई और हर मठ के गुरु अपने सबसे योग्य शिष्य को यह उपाधि देने लगे। इस प्रकार शंकराचार्य हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पद है। ये वे लोग होते हैं जिन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया होता है और वेदों का गहरा ज्ञान रखते हैं।
कितने शंकराचार्य होते हैं?
आदि शंकराचार्य ने भारत के चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी और प्रत्येक मठ के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है। ये चार मठ हैं:
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ज्योतिर्मठ: यह मठ जोशीमठ में स्थित है।
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गोवर्धन मठ: यह मठ पुरी में स्थित है।
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शृंगेरी शारदा पीठ: यह मठ शृंगेरी, कर्नाटक में स्थित है।
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द्वारिका पीठ: यह मठ द्वारिका में स्थित है।
प्रत्येक मठ में एक शंकराचार्य होता है, इस प्रकार कुल चार शंकराचार्य होते हैं।
शंकराचार्य बनने के लिए क्या योग्यताएं चाहिए?
शंकराचार्य बनने के लिए कई योग्यताएं आवश्यक होती हैं, जिनमें शामिल हैं:
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वेदों का गहन ज्ञान: शंकराचार्य को वेदों का गहरा ज्ञान होना चाहिए।
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आध्यात्मिक ज्ञान: शंकराचार्य को आध्यात्मिक ज्ञान और अनुभव प्राप्त होना चाहिए।
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नेतृत्व क्षमता: शंकराचार्य को अपने अनुयायियों का नेतृत्व करने में सक्षम होना चाहिए।
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धैर्य और संयम: शंकराचार्य को धैर्य और संयम रखना चाहिए।
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नैतिक मूल्य: शंकराचार्य को उच्च नैतिक मूल्यों वाला होना चाहिए।
शंकराचार्य की जिम्मेदारियां
शंकराचार्य की जिम्मेदारियां बहुत व्यापक होती हैं। इनमें शामिल हैं:
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धर्म का प्रचार-प्रसार: शंकराचार्य धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं और लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
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धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और व्याख्या: शंकराचार्य वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और उनकी व्याख्या करते हैं।
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समाज सेवा: शंकराचार्य समाज सेवा के कार्यों में भी भाग लेते हैं।
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धार्मिक विवादों का समाधान: शंकराचार्य धार्मिक विवादों का समाधान करते हैं।
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