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महाकुंभ के बाद कहां चले जाते हैं नागा साधु? जानिए नागाओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में

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WD Feature Desk

, बुधवार, 29 जनवरी 2025 (11:44 IST)
Na‍ga sadhu in Maha Kumbh Mela 2025: महाकुंभ मेला, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, हर 12 साल में आयोजित होता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु और साधु-संत गंगा नदी के तट पर एकत्रित होते हैं। इनमें सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र नागा साधु होते हैं। नागा साधुओं का जीवन, उनकी तपस्या और उनकी रहस्यमयी दुनिया हमेशा से लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय रही है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महाकुंभ के बाद ये नागा साधु कहां चले जाते हैं? आइए, इस लेख में नागा साधुओं की जीवनशैली, उनके रहस्य और उनके आश्रमों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
 
नागा साधु कौन होते हैं?
नागा साधु हिंदू धर्म के सन्यासी परंपरा का एक हिस्सा हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित दसनामी संप्रदाय में महामंडलेश्वर और नागा पद होते हैं। महामंडलेश्वर पदवी प्राप्त साधु धर्म प्रचार प्रसार का कार्य करते हैं। यानी उन्हें शास्त्रों का ज्ञान रखना होता है। नागा पदवी प्राप्त साधुओं को धर्म की रक्षार्थ कार्य करना होता है। नागा साधुओं को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी जाती है। नागा साधु दिगंबर और वस्त्रधारी दोनों ही होते हैं। दोनों ही नागा साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, जो शिवजी का प्रतीक माना जाता है।
 
सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा : संतों के 13 अखाड़ों में 7 संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।
 
नागा साधुओं की उत्पत्ति?
माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं है। नवनाथ की परंपरा को सिद्धों की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा माना जाता है। गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ साईनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। घुमक्कड़ी नाथों में ज्यादा रही।
 
नागा बेड़ा : नागा संन्यासियों के अखाड़े आदि शंकराचार्य के पहले भी थे, लेकिन उस समय इन्हें अखाड़ा नाम से नहीं पुकारा जाता था। इन्हें बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ।' 'नागा' शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यह शब्द संस्कृत के 'नागा' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ 'पहाड़' से होता है और इस पर रहने वाले लोग 'पहाड़ी' या 'नागा' कहलाते हैं। कच्छारी भाषा में 'नागा' से तात्पर्य 'एक युवा बहादुर लड़ाकू व्यक्ति' से लिया जाता है। सिकंदर महान के साथ आए यूनानियों को अनेक दिगंबर साधुओं के दर्शन हुए थे। बुद्ध और महावीर भी इन्हीं साधुओं के दो प्रधान संघों के अधिनायक थे। जैन धर्म में जो दिगंबर साधु होते हैं और हिंदुओं में जो नागा संन्यासी हैं वे दोनों ही एक ही परंपरा से निकले हुए हैं।
 
चार नागा उपाधियां कौनसी है?
चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागा, उज्जैन में 2.खूनी नागा, हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है।
 
नागाओं के 4 आध्यात्मिक पद- 1.कुटीचक, 2.बहूदक, 3.हंस और सबसे बड़ा 4.परमहंस। नागाओं में परमहंस सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। नागाओं में शस्त्रधारी नागा अखाड़ों के रूप में संगठित हैं। इसके अलावा नागाओं में औघड़ी, अवधूत, महंत, कापालिक, शमशानी आदि भी होते हैं।
 
अखाड़े के पद : नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है।
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नागा श्रृंगार : नागा सोलह नहीं 17 श्रृंगार करते हैं। 1.लंगोट, 2.भभूत- बदन में विभूति का लेप, 3.चंदन, 4.पैरों में लोहे या ड्डिर चांदी का कड़ा, 5.अंगूठी, 6.पंचकेश, 7.कमर में ड्डूलों की माला, 8.माथे पर रोली का लेप, 9.कुंडल, 10.हाथों में चिमटा, 11.डमरू, 12.कमंडल, 13.गुथी हुई जटाएं और 14.तिलक, 15.काजल, 16.हाथों में कड़ा और 17.बाहों पर रुद्राक्ष की मालाएं 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।ALSO READ: तन पर एक भी कपड़ा नहीं पहनती हैं ये महिला नागा साधु, जानिए कहां रहती हैं
 
नागा साधुओं की जीवनशैली
नागा साधु सुबह चार बजे बिस्तर छोडऩे के बाद नित्य क्रिया व स्नान के बाद पहला काम श्रृंगार करते हैं। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया व नौली क्रिया करते हैं। पूरे दिन में एक बार शाम को भोजन करने के बाद ये फिर से बिस्तर पर चले जाते हैं। नागा साधु अपना पूरा जीवन तपस्या और साधना में बिताते हैं। ये साधु सांसारिक मोह-माया से दूर रहते हैं और अपना जीवन ईश्वर की भक्ति में समर्पित कर देते हैं। ये साधु गुफाओं, जंगलों, आश्रम या हिमालय की ऊंची चोटियों पर रहते हैं।
 
महाकुंभ में नागा साधुओं की भूमिका: 
जब कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ या महाकुंभ प्रारंभ होता है तभी ये नागा साधु संत अपने मुख्य स्थान से निकलकर कुंभ स्नान करने आते हैं। कुंभ का मेला असल में सभी साधु संतों का संगम होता है। यहां पर ये एकत्रित होकर एक दूसरे के अनुभव शेयर करते हैं। नागा जनता से दूर रहते हैं लेकिन मंडलेश्वर जनता को उपदेश और धर्म का ज्ञान देते हैं। नागा साधु अपने गुरु की आज्ञा से ही कुंभ में 17 तरह के श्रृंगार करके रहते हैं अन्यथा आम दिनों में वह आम जनता की तरह ही रहते हैं। नागा साधुओं का मानना है कि महाकुंभ के दौरान गंगा स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए गुरु की आज्ञान से वे कुंभ में आते हैं। नागा साधुओं का रहन-सहन, उनकी तपस्या और उनकी रहस्यमयी दुनिया हमेशा से लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं। इनके दर्शन और आशीर्वाद से जीवन के संकट दूर हो जाते हैं।
 
शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज धज कर तैयार होते हैं और ड्डिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं। नागा संत के मुताबिक लोग नित्य क्रिया करने के बाद खुद को शुद्ध करने के लिए गंगा स्नान करते हैं लेकिन नागा संन्यासी शुद्धीकरण के बाद ही शाही स्नान के लिए निकलते हैं।ALSO READ: खुद के पिंडदान से लेकर जननांग की नस खींचे जाने तक नागा साधु को देनी होती है कई कठिन परीक्षाएं, जानिए कैसे बनते हैं नागा साधु
 
महाकुंभ के बाद नागा साधु कहां चले जाते हैं?
आम जीवन में लौट जाते हैं नागा साधु:
नागा साधुओं के जो 17 तरह के श्रृंगार के साथ लोग उन्हें नग्न अवस्था में कुंभ में देखते हैं। कुंभ समाप्त होने के बाद नागा संन्यासी अपने गुरु की आज्ञान से पुन: एक ही कपड़ा धारण करके आम लोगों की तरह ही मठ, मणि या आश्रमों में रहते हैं। वे कहीं नहीं जाते है, वे जहां से आते हैं पुन: वहीं लौट जाते हैं। लौटने के बाद वे जिस तरह से कुंभ में नजर आते हैं वैसे वह आश्रम में नहीं रहते हैं। आश्रम में उनका सामान्य वेश होता है। कुंभ में तो उन्हें कल्पवास करके कठिन साधना करना होती है इसलिए वे नग्न रहते हैं और एक दूसरे संत से मिलकर मोक्ष मार्ग की चर्चा करते हैं।
 
नाना साधु अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं। कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं। अखाड़े के आदेशानुसार यह पैदल भ्रमण भी करते हैं। इसी दौरान किसी गांव की मेर पर झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं। नागा साधु आमतौर पर हिमालय, जंगलों, आश्रम, मठ, मणि, गंगा के तटों, काशी, उज्जैन, हरिद्वार, और नर्मदा किनारे जैसे तीर्थ स्थलों में जाकर ध्यान और साधना करते हैं।
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1. हिमालय की गुफाएं
महाकुंभ के बाद कई नागा साधु हिमालय की गुफाओं में चले जाते हैं क्योंकि उनका स्थान वही होता है। ये गुफाएं उनके लिए तपस्या और साधना का स्थान होती हैं। हिमालय की ऊंची चोटियों पर स्थित ये गुफाएं नागा साधुओं के लिए एकांत और शांति का स्थान होती हैं।
 
2. आश्रम और मठ
कुछ नागा साधु महाकुंभ के बाद अपने आश्रम और मठ में लौट जाते हैं। ये आश्रम और मठ देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित होते हैं। इन आश्रमों में नागा साधु अपना जीवन तपस्या और साधना में बिताते हैं।
 
3. जंगल और एकांत स्थान
कुछ नागा साधु महाकुंभ के बाद जंगल और एकांत स्थानों में चले जाते हैं, क्योंकि उनके आश्रम, मठ या मणि जैसे स्थान वहीं होते हैं। ये स्थान उनके लिए तपस्या और साधना का स्थान होते हैं। नागा साधु इन स्थानों पर अपनी तप और साधना करते हुए सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं।ALSO READ: नागा साधुओं की उत्पत्ति का क्या है राज, जानकर चौंक जाएंगे आप
 
नागा वस्तुएं : त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल, कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के अलावा भभूत आदि।
नागा अभिवादन मंत्र : ॐ नमो नारायण
नागा का ईश्वर : शिव के भक्त नागा साधु शिव के अलावा किसी को भी नहीं मानते।
नागा का कार्य : गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य, प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाएं करना।
 
निष्कर्ष
नागा साधु हिंदू धर्म की सन्यासी परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं का आकर्षण और उनकी रहस्यमयी दुनिया हमेशा से लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय रही है। महाकुंभ के बाद नागा साधु हिमालय की गुफाओं, आश्रमों और जंगलों में चले जाते हैं, जहां वे अपना जीवन तपस्या और साधना में बिताते हैं। नागा साधुओं का जीवन बहुत ही कठिन और तपस्या से भरा होता है, और यही उनकी रहस्यमयी दुनिया का आकर्षण है।
 
रिफरेंस:
"The Sadhus of India" by Robert E. Svoboda
"Kumbh Mela: Mapping the Ephemeral Megacity" by Rahul Mehrotra
"Hindu Asceticism: A Study of the Sadhus of North India" by Agehananda Bharati

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