राजस्थान विधानसभा चुनावों में मतदाता लिंगानुपात 897
जयपुर , शनिवार, 9 नवंबर 2013 (14:41 IST)
जयपुर। राजस्थान के विधानसभा चुनावों में 2003 से लगातार मतदाता लिंगानुपात घटता जा रहा है। वर्ष 2003 में मतदाता लिंगानुपात 916, वर्ष 2008 में 906 व वर्ष 2013 में 897 हो गया है। 2003 में 3,39,28,675 मतदाता थे, जो बढ़कर 2013 में 4,05,85,041 हो गए लेकिन महिला मतदाताओं की संख्या में पुरुषों के अनुपात में बढ़ोतरी नहीं हो पाई।जनगणना 1991 के आंकड़ों में 0-6 शिशु लिंगानुपात में जो गिरावट आई थी उसी का असर 2013 की मतदाता सूचियो में साफ दिखाई दे रहा है। वर्ष 1991 में जैसलमेर तथा धौलपुर में शिशु लिंगानुपात सबसे ज्यादा घटा था। 2013 की मतदाता सूची में भी धौलपुर में सबसे कम मतदाता लिंगानुपात 831 रह गया है। बांसवाड़ा व प्रतापगढ़ में मतदाता लिंगानुपात 961 सबसे अधिक है।सामाजिक कार्यकर्ता राजन चौधरी के अध्ययन के अनुसार 2003 में महिला मतदाताओं की संख्या 1,62,16,717 थी, जो बढ़कर 2013 में बढ़कर 1,91,87,923 हुई, वहीं पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,77,11,958 से बढ़कर 2,13,97,118 हुई है अर्थात महिला मतदाता 29,71,206 बढ़ीं, वहीं पुरुष मतदाता 36,85,160 बढ़े। महिला मतदाताओं की संख्या 7,13,954 कम बढ़ पाई।ये आंकड़े यह दर्शाते हैं कि गत 15 से 25 वर्ष में सोनोग्राफी मशीन के दुरुपयोग से शिशु लिंगानुपात घटा और उसी के कारण वर्तमान में मतदाता लिंगानुपात में भी लगातार गिरावट आ रही है जबकि साक्षरता दर बढ़ती जा रही है।राजन चौधरी का कहना है कि 2011 के जनगणना आंकड़ों में शिशु लिंगानुपात में भारी गिरावट आई है तथा 2011 व 2012 के जीवित शिशु जन्म के अनुसार भी लिंगानुपात में कमी आ रही है।प्रतिदिन 2011 के आंकड़ों के अनुसार 303 लड़कियां कम पैदा हो रही थीं वहीं जीवित शिशु जन्म दर के अनुसार प्रतिदिन 200 लड़कियां कम पैदा हो रही हैं। इसका असर 2023 व 2028 के विधानसभा चुनावों में दिखाई देगा। वर्ष 2023 में मतदाता लिंग अनुपात 800 से भी कम आ सकता है।राजस्थान के 16 जिलों में मतदाता लिंगानुपात 900 से कम है। इससे यह साफ नजर आता है कि राजस्थान में पीसी-पीएनडीटी एक्ट की पालना का क्रियान्वयन बेहतर नहीं हो रहा है। गत तीन दशकों में प्रदेश में शिक्षा व साक्षरता की दृष्टि से काफी प्रगति हुई है लेकिन गत तीन दशकों के जनगणना आंकड़ों में शिशु लिंगानुपात में भारी कमी आई है। (वार्ता)