33 वर्षों से है देवीसिंह भाटी का दबदबा
बीकानेर , शनिवार, 16 नवंबर 2013 (15:32 IST)
बीकानेर। राजस्थान में बीकानेर जिले का कोलायत विधानसभा क्षेत्र ऐसा है, जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज और प्रभावशाली नेता देवीसिंह भाटी के विजय रथ को लाख कोशिशों के बावजूद कांग्रेस रोकने में सफल नहीं हो पा रही है।लगातार 7 विधानसभा चुनावों से जीत का परचम लहरा रहे भाटी के लिए दल कोई मायने नहीं रखता। उन्होंने भाजपा के अलावा जनता पार्टी और जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की है।कांग्रेस ने उन्हें परास्त करने के लिए अपने तरकश के सभी तीर आजमा लिए लेकिन एक भी तीर उनके मजबूत कवच को नहीं भेद सका। थक-हारकर कांग्रेस ने इस बार चेहरा बदलने के नाम पर भाटी से 3 बार पराजित हो चुके रघुनाथसिंह भाटी के पुत्र भंवरसिंह भाटी को उनके खिलाफ मैदान में उतारा है।कोलायत विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास वर्ष 1962 से शुरू होता है, जब इसे बीकानेर शहर से अलग करके एक नए क्षेत्र का गठन किया गया। गठन के बाद से ही यह क्षेत्र इक्का-दुक्का अवसरों को छोड़कर परंपरागत रूप से कांग्रेस विरोधी रहा है।वर्ष 1962 में हुए विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर मानिकचंद सुराना निर्दलीय चंद्रसिंह को हराकर क्षेत्र के पहले विधायक चुने गए, लेकिन कांग्रेस की कांता खथूरिया ने उन्हें वर्ष 1967 और 1972 में लगातार दो चुनावों में हराकर इस क्षेत्र से रुखसत कर दिया। सुराना ने इसके बाद लूणकरणसर का रुख कर लिया। जनता पार्टी के गठन के बाद वर्ष 1977 में इस सीट पर वरिष्ठ अधिवक्ता आरके दासगुप्ता जनता पार्टी की ओर से इस क्षेत्र के विधायक चुने गए। जनता पार्टी की सरकार के पतन के बाद 1980 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने प्रत्याशी बदलते हुए भाटी को उम्मीदवार बनाया। इसके बाद तो जैसे एक ही कहानी बार बार दोहराई जा रही हो।भाटी ने 1980 और 1985 के लगातार दो विधासनभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी कांता खथूरिया को हराकर उन्हें राजनीतिक वनवास लेने पर मजबूर कर दिया। वर्ष 1990 में भाटी ने जनता दल के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के गोपालकृष्ण जोशी को शिकस्त दे दी।कांग्रेस ने 1993 में उन्हीं की शैली में जवाब देने के लिए उनके खिलाफ ताकतवर हुक्माराम विश्नोई को मैदान में उतारा लेकिन विश्नोई को भी मुंह की खानी पड़ी।फिर कांग्रेस ने अपना आखिरी हथियार आजमाते हुए जातिगत समीकरण के तहत 1998 में हुए चुनाव में रघुनाथसिंह भाटी को उनके मुकाबले खड़ा किया। लेकिन रघुनाथसिंह भाटी भी उनसे पार नहीं पा पाए और 1998-2003 के विधानसभा चुनावों में उन्हें लगातार 3 बार हार का सामना करना पड़ा।जानकारों के मुताबिक इस बार उनके लिए चुनौती आसान नहीं है। पिछले चुनाव कुख्यात परिसीमन का असर उन पर भी पड़ा और वे रघुनाथ भाटी को नजदीकी मुकाबले में करीब 1900 मतों से किसी तरह हराने में सफल रहे। इस बार कांग्रेस ने इस सीट पर जातिगत समीकरण बरकरार रखते हुए रघुनाथ भाटी के स्थान पर उनके पुत्र भंवरलाल भाटी पर दांव लगाया है।विश्लेषकों के मुताबिक पिछले चुनाव में मिली छोटी-सी जीत से देवीसिंह भाटी सतर्क हो गए हैं लिहाजा वे अपने क्षेत्र में लगातार संपर्क बनाए रखने और किसानों के हक में आवाज उठाकर सक्रिय रहे।वे भाजपा के पार्टी कार्यक्रमों से भले ही परे रहे हों लेकिन पार्टी की नीति के मुताबिक 'गोचर भूमि बचाओ' जैसे मुद्दों पर उन्होंने आंदोलन करके मतदाताओं के एक खास वर्ग में जगह बनाने का प्रयास किया।उनके सामने अब पहली बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के भंवरलाल भाटी से मुकाबला है। भंवरलाल उनका विजयी रथ थाम पाएंगे या नहीं, यह आने वाला वक्त ही बताएगा। (भाषा)