* छत की सीढ़ियों पर रूठकर बैठी एक नन्ही बहना। उसके इस रूठने से सबसे ज्यादा व्यथित अगर कोई है तो वह है उसका भाई। भोजन की थाली लेकर उसके पास जाने वाला पहला व्यक्ति होता है, उसका भाई।* स्कूल से अपनी बहन को लेकर आता एक छोटा-सा भाई। भाई के छोटे लेकिन सुरक्षित हाथों में जब बहन का कोमल हाथ आता है तब देखने योग्य होता है, भाई के चेहरे से झलकता दायित्व बोध, उठते हुए कदमों में बरती जाने वाली सजगता और कच्ची-कच्ची परेशान आँखें। घर पर जो बहन भाई से ठुनकी-ठुनकी रहती होगी, बीच राह पर वही भोली-सी हिरनी हो जाती है।* बच्चों का एक झुंड। खेल में मशगूल। तभी सबको लगी प्यास। भाई ने हमेशा की तरह छोटी बहन को आदेश दिया। नन्हे हाथों में जग और गिलास पकड़े टेढ़ी-मेढ़ी चाल से धीरे-धीरे आती है बहन और...और... धड़ाम!! सबके सामने भाई को मिली फटकार। बहन ने कोहनी छुपाते हुए, आँसुओं को रोकते हुए कहा - 'भाई ने नहीं भेजा था, मैं खुद गई थी पानी लेने।'* कक्षा पहली की नन्ही छात्रा अनुष्का को प्रिंसिपल ने ऑफिस में बुलाकर कहा - 'तुम्हारा छोटा भाई आशु 'क्लास' में सो गया है उसे अपनी क्लास में ले जाओ...! अनुष्का की गोद में सोया है आशू और वह बोर्ड पर से सवाल उतार रही है।* दूसरी की छात्रा श्रुति रोते हुए अपने बड़े भाई श्रेयस के पास पहुँची। कक्षा के बच्चे उसके नाम का मजाक उड़ाते हैं।उसे सूती कपड़ा कहते हैं । तीसरी कक्षा के 'बहादुर' भाई ने कहा - 'छुट्टी के बाद सबके नाम बताना, सबको ठीक कर दूँगा। श्रुति आश्वस्त है अब। छुट्टी होने पर श्रेयस ने रोक लिया सब चिढ़ाने वाले बच्चों को। पहले तो बस्ते से धमाधम मारा-पीटी, फिर सब पर स्याही छिड़ककर बहन का हाथ पकड़कर भाग आया भाई। बहन खुश है, भाई ने बदला ले लिया। कल की कल देखेंगे।* पहली बार कॉलेज जा रही थी बहन। भाई ने 'बाइक' पर बैठाया और रास्ते में कहा - 'तू कब बड़ी हो गई मुझे तो वहीं दो चोटी वाली बस्ता घसीटकर चलने वाली और चॉक खाने वाली याद है। इतनी जल्दी तू बड़ी हो गई, पता ही नहीं चला।' * बहन बिदा हो रही थी लेकिन भाई धर्मशाला जल्दी खाली करने की चिंता में व्यंजनों के कढ़ाव - तपेले आदि उठा-उठा कर रख रहा था। बहन ने सुबकते हुए भाई को याद किया। भाई ने सब्जी-दाल से सने हाथों से ही बहन को गले लगा लिया।
बहन ने अपनी कीमती साड़ी को आज तक 'ड्रायक्लीन' नहीं करवाया। वह कहती है, 'जब भी उस साड़ी पर सब्जी के धब्बे देखती हूँ। भाई का वह अस्त-व्यस्त रूप याद आ जाता है , मेरी शादी में कितना काम किया था भाई ने।'
भाई और बहन का रिश्ता मिश्री की तरह मीठा और मखमल की तरह मुलायम होता है। रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के इसी पावन रिश्ते को समर्पित है। इसी त्योहार पर इस रिश्ते की मोहक अनुभूति को सघनता से अभिव्यक्त किया जाता है।
भारत में यदि आज भी संवेदना, अनुभूति, आत्मीयता, आस्था और अनुराग बरकरार है तो इसकी पृष्ठभूमि में इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान है। जो लंबी डगर पर चिलचिलाती प्रचंड धूप में हरे-भरे वृक्ष के समान खड़े हैं। जिसकी घनी छाँव में कुछ लम्हें बैठकर व्यक्ति संघर्ष पथ पर उभर आए स्वेद बिंदुओं को सुखा सके और फिर एक शुभ मुस्कान को चेहरे पर सजाकर चल पड़े जिंदगी की कठिन राहों पर, जूझने के लिए।
रक्षाबंधन के शुभ पर्व पर बहनें अपने भाई से यह वचन चाहती हैं कि आने वाले दिनों में किसी बहन के तन से वस्त्र न खींचा जाए फिर कोई बहन दहेज के लिए जिंदा न जलाई जाए, फिर किसी बहन का अपहरण ना हो और फिर किसी बहन के चेहरे पर तेजाब न फेंका जाए।
यह त्योहार तभी सही मायनों में खूबसूरत होगा जब बहन का सम्मान और भाई का चरित्र दोनों कायम रहे। यह रेशमी धागा सिर्फ धागा नहीं है। राखी की इस महीन डोरी में विश्वास, सहारा और प्यार गुंफित हैं और कलाई पर बँधकर यह डोरी प्रतिदान में भी यही तीन अनुभूतियाँ चाहती हैं। पैसा, उपहार, आभूषण, कपड़े तो कभी भी, किसी भी समय लिए-दिए जा सकते हैं लेकिन इन तीन मनोभावों के लेन-देन का तो यही एक पर्व है - रक्षाबंधन!