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रक्षा बंधन सौम्य पर्व है : मुनिश्री तरुण सागर

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किसी ने क्या खूब कहा है कि रिश्ते बनाना ऐसा है जैसे मिट्टी पर मिट्टी से मिट्टी लिखना, पर रिश्ते निभाना ऐसा है जैसे पानी पर पानी से पानी लिखना। रिश्तों के मामले में हम बिल गेट्स और लक्ष्मी मित्तल जितने अमीर है। पाश्चात्य देशों में तो सिर्फ अंकल-आंटी जिंदा हैं बाकी सब रिश्ते मर गए लेकिन भारत में एक-एक आदमी सैक़ड़ों रिश्ते निभाता है। सैकड़ों रिश्ते निभाते हुए उसने प्रभु से एक और रिश्ता बनाया-त्वमेव माता च पिता त्वमेव।

तमाम रिश्तों के मध्य एक रिश्ता भाई-बहन का बड़ा पवित्र रिश्ता है। यह रिश्ता बनाया नहीं जाता बल्कि बना हुआ आता है। बाकी सभी रिश्ते खानदान के होते हैं, मगर यही एक रिश्ता होता है जो खून का होता है और "खून" का रिश्ता "नाखून" जैसा होता है। नाखून को चाहकर भी चमड़ी से अलग नहीं किया जा सकता है। ठीक इसी तरह भाई बहन के प्यार को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है।

साल में एक बार रक्षा बंधन इसी प्यार को याद दिलाने के लिए आता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रेशम के धागे बांधती है और भाई उसके संकट के क्षणों में रक्षा के लिए संकल्पित होता है। बहन की कल्पना और भाई की संकल्पना, बस यही सौम्य पर्व है रक्षाबंधन।

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