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रेशम डोरी से बंधा सलोना संसार

- प्रकाश कुण्डलकर

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जब हम बीते कल के यादों की संदूकची खोलते हैं तो भूली-बिसरी तस्वीरों का कोलाज हमारी आंखों के सामने तैरने लगता है। अतीत के सपने 'सच की परछाई' के साथ खड़े नजर आते हैं। कुछ पल के लिए निगाहें ठहर जाती हैं, उन सपनों को विस्मित आंखों से देखने के लिए, यादों की संदूक में सजी राखियां अतीत की स्नेहिल संस्कृति की याद दिलाती हैं।

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रेशम की डोरी का वक्त बदला, उसके साथ रिश्तों के सावन की माटी का सौंधापन गुम हो गया। रिश्ते भी नमस्कार से हाय-हैलो तक आ गए, लेकिन बदलाव की आंधी में यदि कुछ नहीं बदला तो भैया और बहन के अमिट, अटूट और स्नेह से पगा प्यार।

एक कविता की कुछेक पंक्तियां इस प्रेम को किस तरह व्यक्त करती हैं। मैं जानता हूं कि बहन तुम्हारा स्नेह अटूट है। मेरे लिए। तुम्हारा प्रेम, तुम्हारी भावनाएं। मुझे पूरा भिगो देती है...।

छलछलाई आंखों से उतारकर मौन व्यक्त कर, केवल सोचकर भावनाओं और संवेदनाओं को व्यक्त करने का पर्व है रक्षाबंधन। जीवन के अस्त-व्यस्त, रिश्तों की आपाधापी में जो स्मृतियां हमें घेर-घेरकर अतीत के गलियारों में ले जाती हैं- वो यादें हैं भाई-बहन से जुड़ी हुईं।

यकीनन हम जिन रिश्तों के साथ उम्र के कैलेंडर में बड़े होते हैं, उसमें यह नाता न केवल सबसे प्रेमिल और अनूठा है। इसमें छुपा है धागे का अटूट स्नेह और नोक-झोंक भी। प्यार-दुलार और अपनत्व की फुहारों से सींचा, दुनियावी गुलशन में अपने रिश्ते की महक और हरीतिमा बिखेरता राखी का यह धागा फिर भाइयों की कलाइयों पर सजेगा। परदेश में बैठे किसी भैया को बहना चांद के माध्यम से याद का संदेश दे रही होगी- "चंदा रे मेरे भइया से कहना..." और बहना की पुकार सुन जब भैया दौड़ा आएगा तो सजी थाली में राखी ले बहना गा उठेगी।

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"मेरे भैया, मेरे चंदा..." तब धागा दे जाएगा प्रेम के अटूट बंधन को मजबूती, साथ बांध देगा एक गांठ जिंदगी भर के कर्तव्य की याद दिलाने की, बचपन के सुहाने दिन, खेल-खिलौने और शरारतें, किसी छोटी सी बात पर झगड़ना और फिर एक चॉकलेट पर गा उठना- "फूलों का, तारों का सबका कहना है।" यहां यकीनन समझौते की कीमत केवल प्रेम है।

यकीकन बहना ठंडी हवा का झोंका होती है, एक खुशबू होती है। सुख-दुःख की सच्ची मददगार होती है। वह अपनी आशाओं की नवकिरणों से उसके मस्तिष्क में एक ऐसी बिजली उत्पन्न करती है, जिसके प्रकाश में पूरा परिवार खिल उठता है। किसी भी मुसीबत में वह एक "स्ट्रांग पिलर" की तरह भाई का साथ निभाती है। उसमें केवल एक बहन की आपदा में रक्षा करने और उसे संबल देने का संकल्प है तो मातृत्व भाव से भाई की सुरक्षा और खुशी के लिए तत्पर बहन का प्रेम भी है। हम या दुनिया भले ही कहे कि "रेशमी धागों" का रक्षाबंधन है, पर हकीकत यह है कि "स्नेहबंधन" सिर्फ रेशम से ही नहीं बंधा है। समय आने पर मन के संबल इसके गवाह है।

राखी सिर्फ पर्व नहीं है, वह भावनाओं और संवेदनाओं का एक पिटारा है और अहसास भी, जिसे सिर्फ दिल से महसूस किया जा सकता है, व्यक्त नहीं। उसमें केवल एक बहन की आपदा में रक्षा करे और उसे संबल देने का संकल्प है तो मातृत्व भाव से भाई की सुरक्षा और खुशी के लिए तत्पर बहन का प्रेम भी है।

आसमान की ऊंचाइयों पर अपने भाई को बिठाती एक बहन इस रिश्ते को जतन से पूरी उम्र संभालती है। चाहे वह एक छोटी-सी गुड़िया बहन हो या झुर्रीदार चेहरे वाली प्रौढ़ बहन, हर बार अपने भाई के लिए उसकी आंखों में एक-सा ही प्रेम उमड़ता है। यकीनन राखी के इस पवित्र रिश्ते की आभा है बहन, वो इस रिश्ते के अहसास को न केवल सहेजती है, बल्कि संजोती भी है। उसका भाई ही संसार का सबसे अच्छा भाई, इसी मान्यता के साथ पूरी उम्र इस रिश्ते को जीती है।

सचमुच राखी कोई बंधन नहीं, मन से मन का नाता है, जो टूटता नहीं, चाहे दुनिया कितनी ही बदल जाए। दूरियां "मीलों" में लंबी होती जाएं, लेकिन यह रिश्ता वक्त के आर-पार यूं ही रहेगा।

वक्त के साथ जमाना भले ही हाईटेक हुआ है। समुंदरों पार बैठे भाई या बहन राखी की रस्म वर्चुअल तरीके से निभा लेते हों, लेकिन अब भी राखी बांधने के बाद बहन चुपके से मुंह इधर-उधर कर "नम आंखों" को पोंछ लेती है और दूर बैठा भाई इस नमी को ताड़ जाता है और कुछ पलों के लिए बुजुर्गाना लगने लगता है। हकीकत में यह अनोखा बंधन है ही ऐसा, जहां शब्दों से ज्यादा भावनाएं बोलती हैं।

सच बड़ा अनोखा है यह रिश्ता, जीवन के धूप-छांव साथ सहते-सहते बड़े होते भाई-बहन समय आने पर एक-दूसरे के दोस्त, बुजुर्ग हमराज बन जाते हैं। मरती संवेदनाओं के जमाने में इस निश्छल "प्रेमबंधन" पर वक्त की छाया न पड़े, चाहे गुड़ के गुलगुले हों या बादाम की बर्फी, चाहे सोने का हार हो या सूती साड़ी, भाइयों का प्रेम उनसे बड़ा बना रहे।

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