7 अगस्त 2017, सोमवार मिति श्रावण शुक्ल 15 पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र अर्थात मकर राशि पर खंडग्रास चन्द्र ग्रहण है। ग्रहण का स्पर्श रात्रि 10.44 बजे होगा एवं मोक्ष रात्रि 12.43 बजे होगा। ग्रहण की अवधि 1 घंटा 59 मिनट है। ग्रहण का सूतक (वैध) दोपहर 1.44 बजे से लगेगा। बालक, वृद्ध एवं रोगियों के लिए सूतक रात्रि 7.44 बजे लगेगा।
ग्रहण का राशिफल : यह चन्द्र ग्रहण श्रवण नक्षत्र एवं मकर राशि वाले जातकों के लिए विशेष अनिष्टकारक है।
शुभ : मेष, सिंह, वृश्चिक एवं मीन राशि वाले जातकों के लिए शुभ रहेगा।
मध्यम : वृषभ, मिथुन एवं कन्या राशि वाले जातकों के लिए मध्यम रहेगा।
अशुभ : तुला, धनु, मकर एवं कुंभ राशि वाले जातकों के लिए अशुभ रहेगा।
ग्रहण काल के नियम
ग्रहण स्पर्श के समय स्नान, मध्य में हवन, यज्ञ आदि और ईष्ट देवपूजन, मोक्ष के समय में श्राद्ध और दान और मुक्त होने पर स्नान करें, यह क्रम है।
सूतक (वेध) से लेकर ग्रहण समाप्ति तक वृद्ध, आतुर बालक व रोगी को छोड़कर किसी को भी अन्न-जल का सेवन नहीं करना चाहिए।
ऋतुमती (रजस्वला) स्त्री भी ग्रहण काल समाप्ति में तीर्थ स्थान से लाए गए जल से स्नान करें। यदि तीर्थ स्थान का जल न हो तो किसी पात्र में जल लेकर तीर्थों का आवाहन करके सिर सहित स्नान करें, परंतु स्नान के बाद बालों को निचोड़ें नहीं।
ऋषि का कथन है कि जो व्यक्ति ग्रहण काल में श्राद्ध करता है, उसको समस्त भूमि ब्राह्मणों को दान देने वाला पुण्य फल प्राप्त होता है। स्वयं विष्णु भगवान का कहना है कि ग्रहण काल में किए गए श्राद्ध का फल जब तक रहता है, जब तक कि सूर्य, चन्द्र व तारे विद्यमान रहेंगे। श्राद्ध व दान बिना पकाए हुए अन्न से करना चाहिए, पके हुए अन्न से नहीं।
विशेष :
जो सूतक में मरण में ग्रहण काल (सूर्य या चन्द्र ग्रहण) में भोजन करता है फिर वह मनुष्य नहीं होता है।
ग्रहण में विशेष सावधानी :
ग्रहण काल में वस्त्र न फाड़ें (कैंची का प्रयोग न करें)। घास, लकड़ी एवं फूलों को न तोड़ें। बालों व कपड़ों को नहीं निचोड़ें। दातून आदि न करें। कठोर व कड़वे वचन (बोल) न बोलें। घोड़ा, हाथी की सवारी न करें। गाय, बकरी एवं भैंस का दूध दोहन न करें, साथ ही शयन व यात्रा न करें।
ग्रहण के बाद के नियम :
ग्रहण के मोक्ष के बाद तीर्थ में गंगा, जमना, रेवा (नर्मदा), कावेरी, सरजू अर्थात किसी पवित्र नदी, तालाब, बावड़ी इत्यादि में स्नान करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर के जल में तीर्थ जल डालकर स्नान करें। स्नान के पश्चात देव-पूजन करके, दान-पुण्य करें व ताजा भोजन करें।
ग्रहण या सूतक के पहले बनी वस्तुओं में तुलसी दल या कुशा डालकर रखना चाहिए।