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रक्षा बंधन का त्योहार कैसे हुआ प्रारंभ, किसने बांधी सबसे पहले राखी?

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 31 जुलाई 2025 (12:16 IST)
History of raksha bandhan: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा को भाई बहनों का त्योहार रक्षा बंधन मनाया जाता है। इसे राखी का पर्व भी कहते हैं। इस बार यह त्योहार 9 अगस्त 2025 शनिवार के दिन रहेगा। रक्षा बंधन का त्योहार कैसे हुआ प्रारंभ, किसने बांधी से सबसे पहले राखी? आओ जानते हैं रक्षाबंधन का संपूर्ण इतिहास।
 
इस तरह प्रारंभ हुआ रक्षा बंधन का पर्व, शची ने बांधी थी पहली राखी:
रक्षा बंधन से संबंधित विभिन्न पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, किन्तु भविष्य पुराण में वर्णित कथा को सर्वाधिक प्रमाणित माना जाता है। भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों) में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और एक रक्षा पोटली को पवित्र मन्त्रों द्वारा अभिमन्त्रित किया गया। पूजनोपरान्त स्वस्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा। रक्षा सूत्र और पोटली की शक्तियों के प्रभाव से इन्द्र ने दैत्यों को परास्त कर अपना सम्राज्य पुनः प्राप्त कर लिया। उसी समय से श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि पर रक्षा सूत्र बांधने का पर्व मनाया जाने लगा।ALSO READ: रक्षा बंधन पर राखी बांधने का मंत्र और ऐतिहासिक महत्व
 
राजा बलि और वामन कथा से भी जुड़ा है रक्षा बंधन का त्योहार:
रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कथा के अनुसार राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्‍‌न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। 
 
वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेजकर कहा कि मैं तुम्हारी दानवीरता और भक्ति से प्रसन्न हूं। मांगो क्या मांगते हो। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन मांग लिया। यह देख और सुनकर माता लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में उन्होंने अपने पति की मुक्ति का उपहार मांगा। इस तरह वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से रक्षा बंधन का पव मनाने की शुरुआत हुई।
 
इसीलिए रक्षा बंधन पर राखी बांधते वक्त यह मंत्र बोला जाता है-
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
 
उपरोक्त कथा के अलावा इस त्योहार को कृष्ण और द्रोपदी कथा, यम और यमुना की कथा से भी जोड़कर देखा जाता है।

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