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एक हजारों में मेरी बहना है...!

भाई-बहन का रिश्ता: चंदन सी महक, सोने की चमक

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भाई-बहन के बीच का रिश्ता...? बहुत ही अलग, अनूठा और तमाम परिभाषाओं से परे। वक्त पड़ने पर यह रिश्ता दोस्ती का भी है और मार्गदर्शक का भी... यहां तक कि भाई-बहन एक-दूसरे पर मातृवत या पितृवत स्नेह तथा अधिकार भी रखने लगते हैं। दुनिया से निराला है यह रिश्ता, जिसमें किलोमीटर की दूरियां भले ही हों, दिलों की नजदीकियां हजारों किलोमीटर को भी पाट देती हैं।

तेईस वर्षीय नेहा पिछले दो सालों से पढ़ाई के लिए अमेरिका में हैं। घर की याद उन्हें हर पल सताती है। खासतौर पर बड़े भाई विनोद का इतनी दूर होना उन्हें बहुत खलता है। यहां आने से पहले गुड़िया (नेहा का निक नेम) और दादा (यानी विनोद) की अपनी एक अलग ही दुनिया थी, जिसमें झगड़ने और मनाने से लेकर अपनी बात मनवाने तक हर चीज शामिल थी। खुद नेहा कहती हैं-'मैं कोई चीज मांगूं और दादा न लाए ऐसा हो ही नहीं सकता था। दादा के सामने तो घर का कोई भी सदस्य मुझे कुछ नहीं कह सकता था। मैं दादा से पूरे नौ साल छोटी हूँ और इसका मैंने पूरा फायदा उठाया।

गुड़िया-सी बहन और बरगद से दादा
मुझे याद है, जब मैं 12 वीं कक्षा में थी और हमारा फेयरवेल था... मैंने उस दिन पहनने के लिए अपनी सबसे अच्छी ड्रेस चुनी थी। दादा से कहकर मैंने उसे ड्रायक्लीन के लिए दे दिया था और प्रोग्राम के एक दिन पहले उन्होंने मुझे ड्रेस लाकर देने का वादा कर दिया था। उस दिन मैं निश्चिंत थीं। मुझे लगा उन्हें याद तो होगा ही, क्योंकि मैं सुबह ऑफिस जाते समय भी याद दिला चुकी थी।

खैर, उस रात वे किसी जरूरी काम में उलझ गए और रात को देर से थके-हारे घर लौटे। मैं उनकी प्रतीक्षा में ही बैठी थी। वो घर में घुसे ही थे कि मैंने धावा बोल दिया-'दादा मेरी ड्रेस।' दादा कुछ सेकंड्स के लिए मेरी तरफ देखते रहे और बिना कुछ कहे उलटे पांव वापस निकल गए।

मुझे लगा शायद वो ड्रेस गाड़ी में ही भूल आए हैं, लेकिन उन्हें गए काफी देर होने लगी और सारे बड़े मुझे डांटने लगे कि लड़का थका हुआ आया था... उसे पानी तक नहीं पीने दिया... भूखा होगा... आदि-आदि। मैं भी डर और डांट के कारण रुआंसी-सी हो गई। तभी भइया वापस आ गए और उनके हाथ में मेरी ड्रेस वाला पैकेट था।

उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था जैसे कोई जंग जीत कर आए हों। मेरी ओर पैकेट बढ़ाते हुए कहा-"मेरी गुड़िया की बात पूरी न हो ऐसा हो सकता है क्या?" फिर बहुत देर तक मैं उनसे लिपटकर रोती रही और सब मुझे चिढ़ाते रहे।

बाद में मुझे पता चला कि भैया ने मिन्नतें करके किसी तरह दुकान वापस खुलवाई थी और मेरी ड्रेस लेकर आए थे। आज भी मैं अपनी छोटी से छोटी परेशानी के लिए दादा को कभी भी फोन लगा देती हूँ और वो उसे हल कर देते हैं। "स्पेशल हैं मेरे दादा।"

सच में नेह के ये नाते सबसे अलग हैं। बहन छोटी हो तो बड़ा भाई उसका संरक्षक बन जाता है। वो उसे लाड़-दुलार देता है और स्नेह भी रखता है। अगर बहन बड़ी हो तो वो भाई के लिए मां समान हो जाती है। उसकी हर जरूरत का खयाल रखती है। अपने स्नेहिल आंचल में वो उसकी सारी तकलीफें झेल लेने की कोशिश करती है और अगर दोनों में ज्यादा अंतर न हो तो भाई-बहन सबसे अच्छे दोस्त बन जाते हैं।

इंजीनियरिंग कर रहे रोहन इस बात को लेकर बहुत इमोशनल हो जाते हैं। वे कहते हैं-'मेरी दो बड़ी दीदियां हैं और दोनों मेरा बहुत खयाल रखती हैं। आज दोनों की शादी हो चुकी है, लेकिन मुझे याद है कि बचपन में मैं काफी शरारती था और एक बार तो मैंने एक्जाम के समय बड़ी दीदी की किताब पर स्याही ढोल दी थी। उस दिन दीदी बहुत रोई, लेकिन मुझे उन्होंने कुछ नहीं कहा।

जब बड़ा होने पर मैंने उनसे पूछा तो उनका कहना था कि मुझे दुख तो हुआ था, क्योंकि अगले दिन मेरा पेपर था, लेकिन तू तो बच्चा था। तू थोड़े ही जानता था कि ऐसा कुछ हो जाएगा। फिर मेरी सहेली पास ही में रहती थी। मैंने उसके घर जाकर पढ़ाई कर ली थी। बड़ी दीदी मुझसे 12 साल बड़ी हैं और छोटी 7 साल। मेरे एक्जाम्स से लेकर, मुझे चुपचाप पिक्चर देखने के पैसे देने तक और मुझे कॉलेज में गलत ग्रुप के चंगुल से बचाने तक में दीदियों ने हमेशा मेरा साथ दिया।'

अब मैं भी जल्दी से अपने पैरों पर खड़ा होकर उनके लिए बहुत कुछ करना चाहता हूं। मैंने कई सारे सरप्राइजेस दीदियों के लिए सोचे हैं। तो ऐसा है भाई-बहन का रिश्ता। थोड़े खट्टे-थोड़े मीठे एहसासों के साथ जिंदगी जीते भाई-बहन हमेशा एक-दूसरे की स्मृति में समाए रहते हैं। इसलिए ही तो ये रिश्ता सबसे अलग है।

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