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रक्षा का वचन है रक्षाबंधन पर्व

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

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रक्षाबंधन सिर्फ त्योहार नहीं एक भाई का धर्म है बहन की रक्षा करना फिर वह किसी भी परिस्थितियों में क्यों ना हो? राखी एक रेशम का धागा ही तो होता है लेकिन यह एक ऐसा धागा होता है जो बहन पर आई हर मुसीबत में रक्षा करने की याद दिलाता है।

ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने भरी सभा में द्रोपदी के समय किया था। भगवान श्रीकृष्ण की उंगली शिशुपाल की गर्दन पर सुर्दशन चक्र चलाते वक्त कटी थी। उंगली में लगने के कारण खून बह रहा था तब द्रोपदी ने ही अपनी साड़ी को चिर कर उनकी उंगली पर बांधी थी। लेकिन आज भाई ऐसे भी होते है जो राखी बंधवाने के बाद बहन किस हालात में है देखते तक नहीं है।

ठीक है आज मंहगाई का दौर ऐसा चल रहा है कि खुद का परिवार चलाना भी कठीन है तब ऐसी परिस्थिति में भाई भी क्या करें? फिर भी हमारा फर्ज कुछ कहता है कि जहां तक हो सके मदद करनी चाहिए। कुछ ऐसे भी होते है जो भाई के नाम को भी कलंकित कर देते है।

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सिकंदर महान यूं ही नहीं बना था, उसकी प्रेमिका ने पोरस को राखी बांधी थी। वह जानती थी की पोरस से सिकंदर का जीत पाना कठिन है। पोरस निश्चय ही सिकंदर को मार डालेगा लेकिन एक रक्षासूत्र ही उसकी जान बचा सकता है।

और फिर ऐसा ही हुआ, कई बार पोरस की तलवार सिकन्दर की गर्दन तक जाती लेकिन तलवार जैसे ही आंखों के सामने आती वहीं कलाई दिख जाती जिस पर सिकन्दर कि प्रेमिका ने रक्षासूत्र बांधा था।

आखिरकार पोरस को बंदी होना ही पडा़, सिकंदर ने भी जब राजा से पूछा की तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए तब पोरस ने कहा एक राजा अपने शत्रु के साथ जैसा व्यवहार करता है वैसा ही किया जाए।

सिकंदर ने उनके इस बहादुरीपूर्ण जवाब से प्रसन्न होकर पोरस को छोड़ दिया व सारा राजपाट वापस देकर अपने देश लौटते समय उसकी राह में ही मोत हो गई। ऐसी बात नहीं की आज ऐसे भाई नहीं है, आज भी है। हर भाई का फर्ज है की राखी बंधवाने पर धन देने तक ही सीमित ना रहे, बल्कि हर दुःख-मुसीबत में भी साथ दें। आखिर वो अपनी बहन ही तो है।

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