त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है। हमारे देश में जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं। आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता इस दुनिया में आने से पहले ही मार देते हैं।
FILE
यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है। हिंदू धर्म में कन्या को बहुत बड़ा पद दिया गया है। कन्या को हम देवी मानते हैं। नवरात्र के मौके पर हम उसकी पूजा करते हैं। फिर भी देश के अलग-एलग जगहों पर कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आ रहे हैं। देश में दिन प्रतिदिन लड़के-लड़कियों का अनुपात कम होता जा रहा है। सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी कुछ राज्यों में तो इसकी स्थिति भयावह होती जा रही है।
रिश्ते ही हमारी पहचान हैं। जीवन की परिभाषा हम यहीं से सीखते हैं। ऐसा ही रिश्ता होता है भाई-बहन का। प्यार की डोर से बंधा ये मासूम रिश्ता जितना मजबूत होता है,उतना ही गहरा भी।
FILE
यह एक ऐसा रिश्ता है कि एक साथ इसमें आपको कई रिश्ते का अहसास होगा। एक बहन कभी आपकी दोस्त होती है,तो जरूरत पड़ने पर मां भी बन जाती है,कभी-कभी तो पिता की भूमिका भी अदा करती है। हर अच्छे-बुरे वक्त में वह आपके साथ खड़ी होती है। कई बार यही भूमिका एक भाई भी अपनी बहन की जिंदगी में अदा करता है।
वक्त और हालात के साथ इसके व्यवहार में जरूर बदलाव होता रहा है कि लेकिन इसकी परिभाषा नहीं बदली। अब भी इसकी मासूमियत कायम है।
भारतीय संस्कृति में त्योहार कुछ यूं रचा बसा है कि उसे एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। इसमें रस्म,रिवाज और रिश्ते एक दूसरे में कुछ यूं गूंथे हैं कि एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर रिश्तों की भावनाओं को समझना है तो हमें अपने देश के अलग-अलग पर्व त्योहारों को समझना होगा। इन्हीं में से एक है रक्षाबंधन ।
रक्षा-बंधन भाई-बहन के स्नेह व ममता की डोर में बंधा ऐसा पर्व है,जिसे परस्पर विश्वास की डोर ने सदियों से बांध रखा है। इस रिश्ते में भाई-बहन का लगाव व स्नेह ताउम्र बरकरार रहता है,क्योंकि बहन कभी बाल सखा तो कभी मां,तो कभी पथ-प्रदर्शक बन भाई को सिखाती है कि जिंदगी में यूं आगे बढ़ो।
FILE
इसी तरह भाई कभी पिता तो कभी मित्र बन बहन को आगे बढ़ने का हौसला देता है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं।
लेकिन देश में बढ़ रहे कन्या भ्रूण हत्या पर अगर हमने रोक नहीं लगाया वह दिन दूर नहीं जब भाई बहन के इस पावन पर्व भी ग्रहण लग जाए। अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है एक दिन देश में लिंगानुपात और तेजी से घटेगा और सामाजिक असंतुलन पैदा हो जाएगा।
आज देश में अगर रक्षाबंधन के दिन कुछ भाईयों की कलाईयां खाली रह जाती हैं तो इसकी सबसे बड़ी एक वजह है कि उसके घर वालों ने उसकी बहन को इस दुनिया में आने से पहले ही मार दिया। देश में बढ़ रहे लिंगानुपात की वजहों में से एक सबसे बड़ी वजह यही है। लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994 को बने अबतक का 20 वर्ष से अधिक का समय बीत गया है लेकिन कुछ राज्यों को छोड़कर देश के लिंगानुपात में कुछ खास सुधार नहीं हुए हैं।
पिछले दो दशकों में जनसंख्या में एक नया असंतुलन लिंग अनुपात में भारी बदलाव के रूप में उभर कर सामने आया है। यह सही है कि वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर देश के प्रति हजार पुरुषों पर 943 महिलाएं हैं जो कि वर्ष 2001 की जनगणना के 933 के आकड़े से अधिक है परंतु यदि शून्य से छ: वर्ष तक के बच्चों का लिंग अनुपात देखा जाए तो स्थिति की भयावहता स्पष्ट को जाती है।
FILE
पिछले दस वर्षों में यह 945 से गिरकर 927 प्रति हजार पुरुष बच्चे तक पहंच गई है। छ:वर्ष से कम आयु वाला आबादी का यह वर्ग जिसे आज से 10-15 वर्ष बाद देश की वयस्क जनसंख्या में शामिल होना है तो उस समय का लिंगानुपात आज से भी कम होगा।
यदि हम राज्यगत आंकडों की बात करें तो स्थिति और भी भयावह है। जनगणना 2011 के आंकडों के अनुसार शून्य से छ: वर्ष तक के बच्चों का लिंग अनुपात पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडू,दिल्ली, चंड़ीगढ़ में विशेष रुप से बहुत खराब ही नहीं बल्कि कई जगह तो खतरे के निशान के भी नीचे चला गया है।
भाई-बहनों के इस त्योहार को जिंदा रखने के लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर कन्या-भ्रूण हत्या का रोकें और महिलाओं के साथ हो रहे शोषण का विरोध करें।
FILE
रिश्तों के इस मासूमियत पर आज वहशीपन हावी हो गया है। चंद सरफिरे लोगों और समाज के ठेकेदारों की वजह से हर दिन किसी न किसी बहाने कत्ल की जा रही हैं बेटियां।
कहीं जन्म के बाद दहेज और इज्जत के नाम पर पिता,पति या भाई के हाथों,तो कहीं जन्म के पहले कोख में अपने ही मां के हाथों मार दी जाती हैं बेटियां।
आजकल अक्सर यह भी देखने में आ रहा है कि युवाओं द्वारा युवतियों पर फब्तियां कसने की वजह से भी कई लड़कियां अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेती हैं।
हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि राह चलते हम जिस महिला या लड़की पर फब्तियां कस रहे हैं वह भी किसी की बहन होगी और जो हम दूसरों की बहन के साथ कर रहे हैं वह कोई हमारी बहन के साथ भी कर सकता है। तो आईए रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर बेटियों को बचाने का हम संकल्प लें।