रक्षाबंधन - रिश्तों से बढ़कर राखी का धागा
बचपन में जब से होश संभाला। पड़ोस में रहने वाले अंकल को ही 'चप्पल मामा' कहकर पुकारते थे। ऐसा क्यों? उसके केवल दो कारण। एक तो मम्मी हर वर्ष उनको राखी बाधती हैं इसलिए और दूसरा इनका चप्पल का व्यवसाय है इसलिए। मम्मी को नाना-नानी ने संतान नहीं होने के कारण गोद लिया था। मां को जन्म देने वाले नाना-नानी कभी-कभार घर आते थे और मामा वगैरह किसी-किसी राखी पर आते थे और किसी पर नहीं आ पाते। लेकिन चप्पल मामा ने आज तक कोई वर्ष ऐसा नहीं गया कि माँ से राखी नहीं बँधवाई हो।राखी का यह सिलसिला चलता रहा। थोड़े और बड़े हुए तो समझ में आया देखा कि चप्पल मामा हमारे घर में ही किराएदार हैं और जाति से सिंधी।मामा महीने में 20 दिन टूर पर रहते। लेकिन राखी वाले दिन किसी भी समय आकर राखी जरूर बँधवा जाते। कई वर्ष तो हमें याद आता है कि पानी खूब बरस रहा है और रात को चले आ रहे हैं डेढ़-दो बजे। माँ भी उनके लिए सारा सामान एकत्र कर बराबर इसी भरोसे के साथ उनका रास्ता देखतीं कि कुछ भी हो जाए भैया आएंगे जरूर।देर होने पर उनसे मम्मी भी कहती अरे भैया सुबह बाँध देती। क्यों परेशान होते हो। सपरिवार वर्षों हमारे घर में रहे। उनके बच्चों का जन्म यहीं हुआ। यहीं खेलते-कूदते मम्मी को बुआ-बुआ कहते बड़े हुए। खुद का मकान बना लिया वहां रहते हुए भी लगभग 20 वर्ष हो गए लेकिन नियम बना रहा। हर वर्ष की भांति हर हाल में जाकर राखी बंधवाना है तो बंधवाना है।घर-परिवार में होने वाले कार्यक्रमों में भी आगे से आगे बढ़कर सहयोग करते। शादी के स्टेज पर जब हम दोनों भाइयों और बहुओं को आशीर्वाद देने आए तो हम दोनों भाई समझ नहीं पाए कि परिचय कैसे कराएं। शब्द जुबां पर जम नहीं पा रहे थे तो खुद ही बोले बहुओं से। 'मैं मामा हूं इनका' सुनकर हमें भी बहुत अच्छा लगा हां इससे शॉर्ट और स्वीट तो कुछ हो ही नहीं सकता था।कभी भी बात चलती मामा वगैरह की तो हमारे सगे मामाओं से पहले याद आते ये चप्पल मामा। धर्म का रिश्ता क्या होता है, कैसे निभाया जाता है शायद इन्हीं से सीखा।थोड़े दिनों पहले खबर आई कि वह चप्पल वाले मामा ब्रेन हेमरेज के कारण नहीं रहे। कुछ दिनों अस्पताल में रहने के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली।जो व्यक्ति खबर लाया था पिताजी उसी से बोले। खून के संबंधों से बढ़कर रिश्ता निभाया उन्होंने। इस राखी पर नम आँखों से श्रद्धांजलि स्वीकार करो चप्पल मामा।-
विशाल