भगवान श्रीराम का जन्म कर्क लग्न पुष्य नक्षत्र में हुआ था। जन्म के समय लग्न में उच्च का गुरु एवं स्वराशिस्थ चन्द्रमा था। इस कारण भगवान राम शांत स्वभाव के थे। भाग्य का स्वामी गुरु उच्च का होकर लग्न में होने से वे अत्यंत भाग्यशाली व अति मनोहर रूपवान भी थे।
लग्न में उच्च का गुरु होने से पंचमहापुरुष योग में से एक योग हंसयोग बन रहा है यह संयोग महान व सौम्य प्रकृति का बना देता है इसी कारण आप मर्यादा पुरुषोतम राम बने।
चतुर्थ भाव में उच्च का शनि होने से आप प्रजा के पालक होने के साथ जनमानस में प्रसिद्ध भी थे। शनि चतुर्थ में तथा षष्ट भाव में धनु का मंगल था, इस कारण आप शत्रुओं के काल थे।
वैवाहिक सुख न मिलने का कारण गुरु की सप्तम भाव पर नीच दृष्टि होना व शनि-मंगल का दृष्टि संबंध रहा।
उनकी कुंडली के दशम भाव में उच्च का सूर्य था जिससे वे महाप्रतापी थे। पिता से वियोग का कारण शनि की दशम भाव पर नीच दृष्टि मानी जा सकती है। अपने पिता पर शत्रु दृष्टि होने से पिता-पुत्र का साथ लंबे समय तक नहीं रहा।