Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

27वां रोजा : माहे-रमजान की रुखसत का पैगाम

हमें फॉलो करें 27वां रोजा : माहे-रमजान की रुखसत का पैगाम
प्रस्तुति : अजहर हाशमी
 
आज सत्ताईसवां रोजा है। कल छब्बीसवां रोजा और शबे-क़द्र (सत्ताईसवीं रात) साथ-साथ थे। यहां यह बात जानना जरूरी है कि छब्बीसवां रोजा जिस दिन होगा, उसी शाम गुरुबे-आफ़ताब के बाद (सूर्यास्त के पश्चात) सत्ताईसवीं रात यानी शबे-कद्र भी शुरू हो जाएगी।
 
छब्बीसवें रोजे के साथ ताक रात (विषम संख्या वाली रात्रि) यानी शबे-कद्र आएगी ही। सत्ताईसवां रोजा तो वैसे भी दोजख से निजात के अशरे (नर्क से मुक्ति के कालखंड) में अपनी अहमियत रखता ही है। सत्ताईसवां रोजा दरअसल रोजादार को दोहरे सवाब का हकदार बना रहा है।
 
अब यह भी समझना जरूरी है कि आखिरी जुमा क्या अहमियत रखता है? जवाब यह है कि जिस तरह यहूदी मजहब में सनीचर (शनिवार) को और ईसाई मजहब में इतवार (रविवार) को इबादत के लिए हफ़्ते का खास दिन माना जाता है। वैसे ही इस्लाम मजहब में जुमा (शुक्रवार) इबादत और इज्तिमाई नमाज (सामूहिक प्रार्थना के लिए) खास दिन माना जाता है।
 
हदीस-शरीफ में है कि जुमा के दिन ही हजरत आदम (अलैहिस्सलाम) को जन्नत से दुनिया में भेजा गया। उन्हें वापस जन्नत भी जुमा के दिन मिली। उनकी तौबा (प्रायश्चित) भी जुमा के दिन अल्लाह ने कुबूल की और सबसे बड़ी बात तो यह कि हजरत मोहम्मद (सल्ल.) की जिंदगी का आखिरी हज जुमे के दिन ही था। कुरआने-पाक में सूरह 'जुमा' नाजिल की गई।
 
आखिरी जुमा, माहे-रमजान की रुखसत का पैगाम है। कुल मिलाकर आखिरी जुमा यानी यौमे-खास रमजान की विदाई का अहसास।

webdunia

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

13 जून 2018 का राशिफल और उपाय...