भगवान राम की नगरी अयोध्या हजारों महापुरुषों की कर्मभूमि रही है। यह पवित्र भूमि हिन्दुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां पर भगवान राम का जन्म हुआ था। यह राम जन्मभूमि है। आओ जानते हैं इसकी ऐतिहासिकता और इतिहास के 10 तथ्य।
1.सप्तपुरियों में से एक अयोध्या- भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका में शामिल किया गया है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द 'अ' कार ब्रह्मा, 'य' कार विष्णु है तथा 'ध' कार रुद्र का स्वरूप है। अयोध्या की गणना भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में प्रथम स्थान पर की गई है।
2.अयोध्या नगर की स्थापना हेतु स्थान चयन- पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा से जब मनु ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी ने उन्हें साकेतधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा तथा मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने के लिए महर्षि वशिष्ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्यता है कि वशिष्ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया, जहां विश्वकर्मा ने नगर का निर्माण किया। स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है।
3.इन्होंने की अयोध्या की स्थापना- सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी। माथुरों के इतिहास के अनुसार वैवस्वत मनु लगभग 6673 ईसा पूर्व हुए थे। ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप से विवस्वान और विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु थे। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं। इक्ष्वाकु कुल में ही आगे चलकर प्रभु श्रीराम हुए। अयोध्या पर महाभारत काल तक इसी वंश के लोगों का शासन रहा।
बेंटली एवं पार्जिटर जैसे विद्वानों ने 'ग्रह मंजरी' आदि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ई.पू. 2200 के आसपास माना है। इस वंश में राजा रामचंद्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक हैं। अयोध्या रघुवंशी राजाओं की बहुत पुरानी राजधानी थी। पहले यह कौशल जनपद की राजधानी थी। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। वाल्मीकि रामायण के 5वें सर्ग में अयोध्या पुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है।
4.राम की जन्मभूमि है अयोध्या- यह स्थान रामदूत हनुमान के आराध्य प्रभु श्रीराम का जन्म स्थान है। राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।
अगस्त 2003 में पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां बाबरी मस्जिद बनी थी, वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं। भूमि के अंदर दबे खंबे और अन्य अवशेषों पर अंकित चिन्ह और मिली पॉटरी से मंदिर होने के सबूत मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। इस खुदाई में कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित 50 जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पाई गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रिपोर्ट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं। 30 सितम्बर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एसयू खान ने एकमत से माना कि जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
5.अयोध्या पर इन्होंने किया शासन- अयोध्या में कई महान योद्धा, ऋषि-मुनि और अवतारी पुरुष हो चुके हैं। भगवान राम ने भी यहीं जन्म लिया था। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। जैन परंपरा के अनुसार भी 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे। इन 24 तीर्थंकरों में से भी सर्वप्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव जी) के साथ चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान भी अयोध्या ही है। बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 वर्षों तक निवास किया था।
उत्तर भारत के तमाम हिस्सों में जैसे कौशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने ही राज्य कायम किए थे। अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) के इतिहास का उद्गम ब्रह्माजी के मानस पुत्र मनु से ही सम्बद्ध है। जैसे प्रतिष्ठानपुर और यहां के चंद्रवंशी शासकों की स्थापना मनु के पुत्र ऐल से जुड़ी है, जिसे शिव के श्राप ने इला बना दिया था, उसी प्रकार अयोध्या और उसका सूर्यवंश मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारम्भ हुआ।
भगवान श्रीराम के बाद बाद लव ने श्रावस्ती बसाई और इसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व बरकरार रहा। रामचंद्र से लेकर द्वापरकालीन महाभारत और उसके बहुत बाद तक हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के उल्लेख मिलते हैं। इस वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों 'महाभारत' के युद्ध में मारा गया था। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी गई लेकिन उस दौर में भी श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व सुरक्षित था जो लगभग 14वीं सदी तक बरकरार रहा।
6.मध्यकाल में अयोध्या के हाल- बृहद्रथ के कई काल बाद यह नगर यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा। अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की। वो बहराइच में 1033 ई. में मारा गया था। उसके बाद तैमूर के पश्चात जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ तो अयोध्या शर्कियों के अधीन हो गया। विशेषरूप से शक शासक महमूद शाह के शासन काल में 1440 ई. में। 1526 ई. में बाबर ने मुगल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति ने 1528 में यहां आक्रमण करके मस्जिद का निर्माण करवाया जो 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान ढहा दी गई।
तथ्य कहते हैं कि विदेशी आक्रांता बाबर के आदेश पर सन् 1527-28 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का निर्माण किया गया। कालांतर में बाबरी के नाम पर ही इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा। जब मंदिर तोड़ा जा रहा था तब जन्मभूमि मंदिर पर सिद्ध महात्मा श्यामनंदजी महाराज का अधिकार था। उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्रीनारायण ने मंदिर को बचाने के लिए बाबर की सेना से युद्ध लड़ा। कई दिनों तक युद्ध चला और अंत में हजारों वीर सैनिक शहीद हो गए।