Ravan Neeti | रावण का अपना कोई नीति शास्त्र उपलब्ध नहीं होता है। रावण ने शिव तांडव स्तोत्र, रावण संहिता, दस शतकात्मक अर्कप्रकाश, दस पटलात्मक उड्डीशतंत्र, कुमारतंत्र और नाड़ी परीक्षा नामक ग्रह रावण ने ही लिखे हैं। इसके अलावा अंक प्रकाश, इंद्रजाल, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम आदि ग्रंथों की चर्चा भी होती है। अरुण संहिता और लाल किताब को भी रावण रचित माना जाता है। रावण की नीति रावण संहिता और वाल्मीकि रामायण में मिलती है। आओ जानते हैं रावण नीति की 8 प्रमुख बातें।
1. निर्णय के पक्के रहो : रावण ने अपने नाना सुमाली से कहा- जो एक बार में ठान लेता हूं उससे मैं कभी पीछे हट नहीं सकता। मृत्यु का भय भी एक वीर पुरुष को अपने वचन से विमुख नहीं कर सकता।
2. किसी की परवाह मत करो : हनुमानजी द्वारा लंका दहन के बाद रावण ने अपने मंत्रियों से कहा- लोग मुझे आज क्या सोचते हैं या क्या सोचेंगे, मुझे इसकी परवाह नहीं। क्षीण बुद्धि वाले इस समाज को तो परमेश्वर भी संतुष्ट नहीं कर पाएगा। कुछ लोगों के लिए मैं एक देवता हूं और कुछ के लिए राक्षस। लोग केवल अपना स्वार्थ जानते हैं। जब आप में उनको स्वार्थ दिखे तब आप उनके लिए देवता हो और जब उनके स्वार्थ को आप पूरा न कर सको तब आप उनके लिए एक राक्षस बन जाते हो। यह समाज अपने अपने स्वार्थ से ही चलता है। यह स्वार्थ ही देव, दानव और मनुष्यों से अपराध करवाता है। अत: स्वार्थ को छोड़कर जो अपना जीवन धर्म व्यतीत कर सके, वह पुरुषोत्तम कहलाता है।
3. अतिरेक में जियो : हे मंदोदरी! मैं जानता हूं कि आज मेरी पराजय निश्चित है। पितामह ब्रह्माजी के द्वारा दिया हुआ वरदान आज मेरे ऊपर एक शाप बनकर मंडरा रहा है। किसी भी व्यक्ति को ख्याति पाने के लिए या तो देवतुल्य बनना पड़ता है अथवा दानव समान। यदि अच्छा बनना हो तो इतना अच्छा बनो कि इंद्र भी अपना सिंहासन तुम्हें दे दे। और बुरा बनना हो तो इतना बुरा बनो कि स्वयं नारायण तुम्हें तुम्हारे पापों से मुक्त करने हेतु अवीतर्ण हों। अत: हे मंदोदरी! आज में अधर्म का प्रतीक बन चुका हूं। अनगिनत पापों से मेरा घड़ा भर चुका है। मैं जानता हूं कि मैंने अपने अहंकार के कारण नारायण को नहीं पहचाना और मैं यह भी जानता हूं कि उनका अवतरण मेरे विनाश के लिए ही हुआ है। परंतु तुम यह जान लो कि रावण कभी नहीं मरेगा। मृत्यु के उपरांत भी यह रावण सदैव के लिए अमर बनकर रहेगा।
4. जो बीत गया, बुद्धिमान उसका शोक नहीं करते : जब रावण की सेना को प्रभु श्रीराम की वानर सेना ने क्षति पहुंचाई तभी रावण ने लंका को संकट से बचाने के लिए कुंभकरण को जगा दिया। परंतु कुंभकर्ण ने अपने भ्राता रावण के अधार्मिक कार्यकलापों को सुनकर उन्हें समस्त लंका के विनाश का उत्तरदायी ठहराया एवं उन्हें आने वाली पराजय की चेतावनी दी। यह सुनकर रावण ने कुंभकरण से कहा- हे अनुज कुंभकर्ण जब विनाश के बादल चारों ओर से लंका को घेरे खड़े हैं तब तुम मुझे यह न सिखाओ कि क्या उचित है और क्या अनुचित। हां मैंने अपने लोभ के वश में सीता का हरण किया और आज वही मेरी मृत्यु का कारण बनने वाली है। हां, मैंने नारायण को पहचानने में भूल की और उन्हीं के कारण मेरे अनगिनत वीर योद्धा आज वीरगति को प्राप्त हुए हैं। हां, मैंने अपने अहंकार के चलते श्रीराम के शांति प्रस्ताव को ठुकरा दिया और आज मेरी सोने की लंका एक श्मशान बन चूकी है। परंतु जो बीत गया, बुद्धिमान उसका शोक नहीं करते। भविष्य की चिंता कभी कर्मयोगी नहीं करते। इस समय इस क्षण में जो जीते हैं वही महात्मा कहलाते हैं। युद्ध जब आरंभ हो चुका है तो इसे मेरी मृत्यु से ही समाप्त होना पड़ेगा। यही विधि की लेख और नियति है, रावण इसे हंसते हंसते स्वीकार करेगा। ताकि इतिहास रावण को भीरु अथवा कायर न समझे।
5. कभी किसी भी हालत में मत झुको : अंतिम युद्ध में जाने से पहले रावण ने महाकाल आरती का प्रबंध किया, परंतु आरती में अपशगुन हेतु रावण ने महाकाल महेश्वर से कहा कि हे महाकाल, हे परमेश्वर, हे शंकर आज इन अपशगुनों द्वारा आप रावण को डरा नहीं सकते। आपने क्या सोच कि मैं आपका परम भक्त दशानन रावण इन अपशगुनों से डर जाऊंगा? और युद्ध को रोककर राम के चरणों में सपर्पण कर दूंगा? नहीं, रावण मिट जाएगा परंतु झुकेगा नहीं। अपने आन को बेचकर जो जीते हैं वह एक कीट की भांति हर दिन मरते रहते हैं। दया की भीख में जो रहते हैं उन्हें जीवन भी दया का पात्र बनाए रखता है। इस युद्ध में मेरे अनेक सगे संबंधी, भाई, पुत्र, पौत्र एवं अनेक प्रजाओं ने बलिदान दिया है। आज यदि मृत्यु के भय से मैंने अपने घुटने राम के समक्ष टेक तो मेरे परिवार और लंका के वीरों का बलिदान व्यर्थ हो जाएगा। और इतिहास मुझे विभीषण की भांति कायर ठहराएगा। अत: हे शिव शंभू, हे शंकर, हे भोलेनाथ! रावण कभी झुक नहीं सकता। यदि इस युद्ध में मेरी मृत्यु भी हो जाए तो मैं इसे आपका प्रसाद समझकर ग्रहण कर लूंगा।
6. अच्छे कार्यों में देर नहीं करना चाहिए : अंत समय में रावण ने लक्ष्मण को तीन सीख दी थी। अच्छे कार्य में कभी विलंब नहीं करना चाहिए। अशुभ कार्य को मोह वश करना ही पड़े तो उसे जितना हो सके उतना टालने का प्रयास करना चाहिए।
7. किसी को तुच्छ न समझें : शक्ति और पराक्रम के मद में इतना अंधा नहीं हो जाना चाहिए की हर शत्रु तुच्छ और निम्न लगने लगे। मुझे ब्रह्मा जी से वर मिला था की वानर और मानव के अलावा कोई मुझे मार नहीं सकता। फिर भी मैं उन्हें तुच्छ और निम्न समझ कर अहम में लिप्त रहा। जिस कारण मेरा समूल विनाश हुआ।
8. गूढ़ रहस्य किसी को न बताएं : तीसरी और अंतिम बात रावण ने लक्ष्मण से यह कही कि, अपने जीवन के गूढ़ रहस्य स्वजन को भी नहीं बताने चाहिए। चूंकि रिश्ते और नाते बदलते रहते हैं। जैसे कि विभीषण जब लंका में था तब मेरा शुभेच्छु था। पर श्री राम की शरण में आने के बाद मेरे विनाश का माध्यम बना।