रावण के पास रहने के कारण सीता के प्रति समाज के एक वर्ग में संदेह उत्पन्न हो चला था। लोगों को विश्वास नहीं हुआ कि मां सीता पहले की तरह ही पवित्र और सती है। समाज में यह धारणा भी प्रचलित है कि माता सीता को भगवान राम ने समाज द्वारा सवाल उठाए जाने पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए छोड़ दिया था। राम पर यह आरोप कहां तक उचित है? क्या सचमुच राम ने सीता को छोड़ दिया था या नहीं? कुछ कहते हैं कि राम ने नहीं सीता ने ही राम की दुविधा जानकर राम को छोड़ दिया था। रामानंद सागर की उत्तर रामायण में ऐसा ही बताया गया है।
लंका में सीता को पहचानकर उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए हनुमानजी ने कहा था- 'दुष्करं कृतवान् रामो हीनो यदनया प्रभुः धारयत्यात्मनो देहं न शोकेनावसीदति। यदि नामः समुद्रान्तां मेदिनीं परिवर्तयेत् अस्थाः कृते जगच्चापि युक्त मित्येव मे मतिः।।
अर्थात : ऐसी सीता के बिना जीवित रहकर राम ने सचमुच ही बड़ा दुष्कर कार्य किया है। इनके लिए यदि राम समुद्रपर्यंत पृथ्वी को पलट दें तो भी मेरी समझ में उचित ही होगा, त्रैलौक्य का राज्य सीता की एक कला के बराबर भी नहीं है।
वाल्मीकि रामायण में हमें सीता परित्याग की कथा मिलती है। उस कथा के प्रभु श्रीराम सीता का परित्याग नहीं करना चाहते हैं किंतु वे इस बात के लिए विवश हो जाते हैं और अपने भाइयों से अपने मन की व्यथा बताते हैं कि किस तरह नगरवासी सीता और मेरे बारे में क्या कह रहे हैं। फिर वे सीता से वार्तालाप करते हैं। अंत में वे लक्ष्मण को आदेश देते ही कि तुम सीता तो गंगा के उस पार तमसा तट पर स्थित वाल्मीकि आश्रम छोड़ आओ।
लक्ष्मण ने तपोवन में पहुंचकर अत्यंत उद्विग्न मन से सीता से कहा- 'माते, में आपको अब यहां से वापस नहीं ले जा सकता, क्योंकि यही आज्ञा है।' ऐसा कहकर लक्ष्मण ने सब कुछ कह सुनाया और लौट आए। तपोवन में सीता को वाल्मीकि ने अपने आश्रम में स्थान दिया। उसी आश्रम में सीता ने लव और कुश नामक पुत्रों को जन्म दिया। बालकों का लालन-पालन भी आश्रम में ही हुआ।
विपिन किशोर सिन्हा ने एक छोटी शोध पुस्तिका लिखी है जिसका नाम है : 'राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं।' यह किताब संस्कृति शोध एवं प्रकाशन वाराणसी ने प्रकाशित की है। इस किताब में वे सारे तथ्य मौजूद हैं, जो यह बताते हैं कि राम ने कभी सीता का परित्याग नहीं किया।
जिस सीता के लिए राम एक पल भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा युद्ध लड़ा उसे वह किसी व्यक्ति और समाज के कहने पर क्या छोड़ सकते हैं? राम को महान आदर्श चरित और भगवान माना जाता है। वे किसी ऐसे समाज के लिए सीता को कभी नहीं छोड़ सकते, जो दकियानूसी सोच में जी रहा हो। इसके लिए उन्हें फिर से राजपाट छोड़कर वन में जाना होता तो वे चले जाते।
अब सवाल यह भी उठता है कि रामायण में तो ऐसा ही लिखा है कि राम ने सीता को कलंक से बचने के लिए छोड़ दिया था। दरअसल, शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण का उत्तरकांड कभी वाल्मीकिजी ने लिखा ही नहीं जिसमें सीता परित्याग की बात कही गई है।
रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि 'वाल्मीकि रामायण का 'उत्तरकांड' मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।' (रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950)
लेखक के शोधानुसार 'वाल्मीकि रामायण' ही राम पर लिखा गया पहला ग्रंथ है, जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखा गया था। अत: यह समस्त विकृतियों से अछूता था। यह रामायण युद्धकांड के बाद समाप्त हो जाती है। इसमें केवल 6 ही कांड थे, लेकिन बाद में मूल रामायण के साथ बौद्ध काल में छेड़खानी की गई और कई श्लोकों के पाठों में भेद किया गया और बाद में रामायण को नए स्वरूप में उत्तरकांड को जोड़कर प्रस्तुत किया गया।
बौद्ध और जैन धर्म के अभ्युदय काल में नए धर्मों की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को प्रतिपादित करने के लिए हिन्दुओं के कई धर्मग्रंथों के साथ इसी तरह का हेरफेर किया गया। इसी के चलते रामायण में भी कई विसंगतियां जोड़ दी गईं। बाद में इन विसंगतियों का ही अनुसरण किया गया।