Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

चंबल घड़ियाल अभयारण्य का दावा खटाई में

यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल होने का था इरादा

Advertiesment
हमें फॉलो करें यूनेस्को
-सचिन शर्म
तीन प्रदेशों में फैले 'राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य' का यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल होने का दावा खटाई में पड़ गया है। इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तैयार किए प्रस्ताव का केन्द्र ने साढ़े तीन साल बाद भी कोई जवाब नहीं दिया। अपने आप में अनोखा ये जल अभयारण्य अब बिना अंतरराष्ट्रीय पहचान के यूँ ही रह जाएगा।

S. SisodiyaWD
देश का एकमात्र नदी अभयारण्य 'चंबल घड़ियाल' अपनी जैव विविधता और नैसर्गिक सौंदर्य के बलबूते यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में स्थान बनाने का प्रयास कर रहा था। इसके लिए सबसे पहले प्रयास 2005 में शुरू हुए थे।

जुलाई 2005 में उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के वन विभागों के आला अधिकारियों ने इस संबंध में ग्वालियर में बैठक भी की थी। इसी कड़ी में सेंट्रल जोन की भोपाल में हुई बैठक में मध्यप्रदेश सरकार ने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त महानिदेशक (वन्यजीव) को चंबल अभयारण्य को यूनेस्को की प्राकृतिक धरोहरों में शमिल करने का प्रस्ताव भी भेजा था लेकिन अब साढ़े तीन साल बाद भी यह ठंडे बस्ते में ही पड़ी हुई है।

इस बारे में अभियान से जुड़े वन्यजीव विशेषज्ञ और जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर के प्राणीशास्त्र विभाग में वैज्ञानिक डॉ. आरजे राव कहते हैं कि इस प्रस्ताव को लेकर तीनों राज्यों के बीच सहमति नहीं बन पाई। ये अभयारण्य तीनों राज्यों में फैला हुआ है।

मध्यप्रदेश के पीसीसीएफ और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक एचएस पाबला का इस बारे में कहना है कि चार साल पहले केन्द्र सरकार ने हमसे विश्व धरोहर के लिए प्रस्ताव माँगे थे और हमने चंबल अभयारण्य के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा भी था लेकिन इसके बाद किसी भी प्रस्ताव को लेकर केन्द्र की ओर से कोई जवाब नहीं आया है।

webdunia
S. SisodiyaWD
ऐसा है राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य : राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य तीन राज्यों से होकर गुजरता है। इनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश शामिल हैं। इस अभयारण्य की स्थापना 1978 में हुई थी। मुख्यतः चंबल नदी के रूप में ये अभयारण्य 5400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। इसके कोर क्षेत्र में लगभग 400 किमी लंबी चंबल नदी आती है। इसी नदी पर एक दूसरा अभयारण्य भी है जो कोटा के पास है। इसका नाम जवाहर सागर अभयारण्य है। यह भी अत्यंत खूबसूरत है और वहाँ जाने वाले लोगों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है। इस क्षेत्र में चंबल अपने सबसे खूबसूरत स्वरूप में बहती दिखती है।

दुर्लभ जलचरों, पक्षियों को सँजोती है चंबल : यह नदी मुख्यतः घड़ियालों के लिए जानी जाती है, लेकिन इसमें अन्य कई प्रकार के जीव-जंतु और जलचर भी पाए जाते हैं। यहाँ 96 प्रजातियों के जलीय और तटीय पौधे मिलते हैं। जीव-जंतुओं में मुख्यतः घड़ियालों के अलावा गंगा नदी की डॉल्फिन (मंडरायल से धौलपुर तक), मगरमच्छ, स्मूद कोटेड ऑटर (ऊदबिलाव), कछुओं की छह प्रजातियाँ और पक्षियों की 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षी भी चंबल के एवियन फाउना को बढ़ाते हैं। कुछ दुर्लभ प्रजाति के पक्षी भी यहाँ पाए जाते हैं। इनमें इंडियन स्कीमर, ब्लैक बिल्ड टर्न, रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड, फैरुजिनस पोचार्ड, बार-हैडेड गूज, सारस क्रेन, ग्रेट थिक नी, इंडियन कोरसर, पालास फिश इगल, पैलिड हैरियर, ग्रेटर फ्लैमिंगो, लैसर फ्लैमिंगो, डारटर्स और ब्राउन हॉक आउल आदि शामिल हैं। स्मूद कोटेड ऑटर, घड़ियाल, सॉफ्ट शैल टरटल और इंडियन टेन्ट टरटल तो दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियों में शामिल हैं।

चंबल के तटों से लगे जंगलों में भालू, तेंदुए और भेड़िए भी नजर आ जाते हैं। नदी अभयारण्य के आसपास स्थित ऊँची चट्टानें लुप्त होते जा रहे गिद्धों के प्रजनन के लिए मुफीद साबित होती हैं। यहाँ के पानी में कभी-कभार दुर्लभ महाशिर मछली भी दिख जाती है। यह अभयारण्य भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 के तहत संरक्षित है। इसका प्रशासनिक अधिकार तीनों राज्यों के वन विभागों के अधीन है।

घड़ियालों पर आया था संकटकाल : हालाँकि बीच में इस घड़ियाल अभयारण्य पर दाग लग गया था। 2007 के अंत में चंबल के घड़ियालों पर अचानक संकटकाल आ गया था। एक रहस्यमय बीमारी के चलते दिसंबर 2007 से फरवरी 2008 के बीच 120 घड़ियाल मारे गए थे।

इनके विसरे की जाँच के बाद भी घड़ियालों की मौत का राज पूरी तरह से नहीं सुलझा। हालाँकि शुरुआती जाँच के बाद विशेषज्ञों ने घोषित कर दिया था कि घड़ियाल लीवर सिरोसिस (लीवर में इंफेक्शन) नामक बीमारी के चलते मारे जा रहे हैं लेकिन बाद में अलग बातें सामने आने लगीं और कहा जाने लगा कि घड़ियालों की किडनी में इंफेक्शन हुआ था।

हालाँकि उन मौतों का रहस्य आज तक नहीं सुलझ पाया है। इस बीच दिसंबर 2008 में भी दो घड़ियालों की रहस्यमय मौत हो गई थी लेकिन विशेषज्ञ इस मामले को पहले वाली मौतों से जोड़कर नहीं देख रहे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi