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दृष्टिहीनों को हादसे से बचाएगी 'आई-स्टिक'

-वेबदुनिया

हमें फॉलो करें दृष्टिहीनों को हादसे से बचाएगी 'आई-स्टिक'
धार जिले के एक छोटे से स्कूल के छात्र ने अपने शिक्षक के मार्गदर्शन में ऐसा कारनामा कर दिखाया जो दृष्टिहीनों के लिए काफी मददगार सिद्ध हो सकता है। सागौर में आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित बालक माध्यमिक स्कूल के छात्र मनु सुरेन्द्र ने शिक्षक भूपेश यादव के मार्गदर्शन में यह विशेष छड़ी तैयार की है, जो दृष्टिहीनों को हादसे से बचाएगी। इस छड़ी को 'आई-स्टिक' नाम दिया गया है।

दरअसल, इंसपायर्ड अवॉर्ड के तहत आयोजित जिला स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में बाल वैज्ञानिक मनु ने भी अपने मॉडल का प्रदर्शन किया था। 500 से ज्यादा बाल वैज्ञानिकों ने इस प्रदर्शनी में भाग लिया था, जिसमें मनु के मॉडल को प्रथम स्थान मिला। यह प्रदर्शनी बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि विकसित करने के उद्देश्य से लगाई जाती है। केन्द्र सरकार इसके लिए 5000 रुपए की मदद भी उपलब्ध करवाती है। मनु का यह मॉडल जबलपुर में आयोजित राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में भी शामिल किया गया है।
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प्रदर्शनी स्थल पर धार कलेक्टर जयश्री कियावत ने भी छड़ी को बारीकी से देखा साथ ही इसके निर्माण की प्रक्रिया को भी समझा। उन्होंने इसकी सराहना करते हुए कहा कि प्रशासन द्वारा जिले के दृष्टिहीनों को यह लेजर अलार्म वाली छड़ी दी जाएगी, जिससे उन्हें हादसे से बचाया जा सके। 'आई-स्टिक' के बारे में दावा किया जा रहा है कि यह देश में अपने आप में इस तरह की पहली छड़ी है।

आई-स्टिक की खासियत : यह छड़ी दृष्टिहीनों को
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रास्ते में चलते समय आने वाली बाधा को लेकर चौकन्ना कर देती है। इसमें लगा सेंसर जैसे ही बाधा की पहचान करता है, इसमें लगा अलार्म बज जाता है। इस छड़ी को बनाने के लिए पीवीसी पाइप, बैटरी, स्विच आदि का प्रयोग किया गया है। अलार्म के लिए मोटरसाइकल में लगने वाले बजर का उपयोग किया गया है। इसमें 9 वोल्ट की बैटरी लगाई गई है, जिसे चार्ज भी किया जा सकता है।


'गुदड़ी का लाल' है मनु : मनु के बारे में शिक्षक भूपेश यादव का कहना है कि वह बहुत ही निर्धन परिवार से है। उसके पिता सुरेन्द्र पीथमपुर की फैक्टरी में मजदूरी करते हैं तथा परिवार सड़क किनारे एक झोपड़ी में रहता है। मनु का चयन विज्ञान में अच्छे नंबर प्राप्त करने कारण हुआ था। उस समय वह आठवीं कक्षा में पढ़ता है, जबकि इस समय वह 9वीं कक्षा में अध्ययनरत है।

यादव बताते हैं कि मनु के साथ इस मॉडल पर काम करके काफी अच्छा लगा। वह काफी प्रतिभाशाली है। लागत के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि इस छड़ी को तैयार करने में करीब 2000 रुपए की लागत आई है। ज्यादा मात्रा में उत्पादन किया जाए तो इसकी लागत 1500 रुपए तक हो सकती है। उन्होंने बताया कि जबलपुर भेजी जा रही छड़ी में पहिए भी लगाए जा रहे हैं। इससे छड़ी को ठोकना नहीं पड़ेगा साथ ही यह गड्‍ढे, पत्थर और रास्ते में लगी रस्सी आदि से भी बचाव कर सकेगी।

इस तरह मिली प्रेरणा : जब मनु से पूछा गया कि इस छड़ी को बनाने की प्रेरणा कैसी मिली, उसने बताया कि मैं स्वयं काफी गरीब परिवार से हूं। दर्द क्या होता है, मुझे मालूम है। जब भी मैं दृष्टिहीनों को किसी से अचानक टकराते देखता तो मुझे बहुत पीड़ा होती थी। तब मुझे लगता था कि काश! मैं इनके लिए कुछ कर पाता। आज मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि मैं इस दिशा में कुछ कर पाया। इसके लिए मैं अपने मार्गदर्शक और गुरु भूपेश यादव का विशेष आभारी हूं। (चित्र में छड़ी का अवलोकन करते हुए कलेक्टर कियावत)

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