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बिहार में खामोश क्रांति

पटना से राघवेन्द्र नारायण मिश्र

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बिहार में महिलाएं एक खामोश क्रांति को अंजाम दे रही हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आधी आबादी को पंचायतों में पचास फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की तो समाज की तस्वीर ही बदलने लगी। विधानसभा चुनाव में 53 फीसदी महिलाओं ने वोट डालकर नई जागृति का इजहार किया और अब महिलाओं ने पूरे सूबे में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जंग छेड़ दी है। शराब और जुए के खिलाफ महिलाओं के आंदोलन शुरू हो गए हैं। महिला जनप्रतिनिधि गांवों में शिक्षा के प्रसार में भी अहम भूमिका निभा रही हैं। अब फिर से पंचायत चुनाव होने वाले हैं, जिसके लिए पाँच हजार से अधिक महिला प्रत्याशियों ने कमर कस ली है।

महिलाएं जब बड़ी संख्या में स्थानीय निकायों और पंचायतों में चुनकर आईं तो उन्हें कई मोर्चों पर जंग लड़नी पड़ी। पतियों के प्रभाव से बाहर निकलना मौजूदा सामाजिक संरचना में एक मुश्किल काम था इसलिए एमपी (मुखिया पति) और एसपी (सरपंच पति) जैसे अघोषित पद पैदा हो गए। महिलाएं पंचायतों के पदों पर काबिज हुईं लेकिन असली सत्ता उनके पतियों या करीबी रिश्तेदारों के हाथों में सिमटने लगी। महिला जनप्रतिनिधियों के पति सरकारी बैठकों में भी हिस्सा लेने लगे, लेकिन अब स्थिति बदली है।

इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ही पहल पर सुधार हुआ। महिला जनप्रतिनिधियों की जगह उनके पतियों और रिश्तेदारों के बैठकों में शामिल होने पर पाबंदी लगा दी गई। नतीजतन बदलाव का असर दिखने लगा। विधानसभा चुनाव में कई स्थानों पर ऐसे उदाहरण मिले जब महिलाओं ने पतियों के इशारे पर वोट डालने से इनकार कर दिया। नीतीश को पिछले विधानसभा में मिले जबरदस्त जनादेश में महिलाओं की भूमिका अहम रही। पंचायतों में भी महिला जनप्रतिनिधि खुद फैसले लेने लगी हैं।

बिहार में 8463 पंचायतें हैं। इतनी ही ग्राम कचहरियाँ हैं। इसके अलावा 531 पंचायत समितियाँ और 38 जिला परिषद हैं जिनमें महिलाओं के लिए पचास फीसदी सीटें आरक्षित हैं। अप्रैल में होने वाले पंचायत चुनाव में लगभग दो लाख जनप्रतिनिधि चुने जाएँगे। मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और प्रखंड प्रमुख से लेकर जिला परिषद सदस्य तक के चुनाव में महिलों बतौर प्रत्याशी शिरकत करने वाली हैं।

पिछले चुनाव में महिलाओं ने अनारक्षित पदों पर भी जीत का परचम लहराया था। प्रदेश में 1881 महिलाओं ने पुरुषों को उन सीटों पर हराया जो उनके लिए आरक्षित नहीं
थीं। इस तरह 55 फीसदी सीटों पर महिलाओं ने कब्जा जमाया था। इस बार इसमें और बढ़ोतरी की संभावनाएं जताई जा रही हैं।

वर्तमान में पंचायतों को 31 विभागों के काम सौंपे गए हैं जिसमें सड़क निर्माण से लेकर पशुपालन तक की योजनाएं शुमार हैं। इन योजनाओं के कार्यान्वयन में महिला जनप्रतिनिधि अहम भूमिका अदा कर रही हैं। विकास योजनाओं में भूमिका के कारण बिहार में महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है।

नीतीश ने पंचायतों में महिलाओं को पचास फीसदी आरक्षण की व्यवस्था करते वक्त भावी तस्वीर की झलक महसूस कर ली थी। किसी भी घर को संवारने में महिलाओं की भूमिका अहम होती है। इसी खूबी को समझते हुए नीतीश ने महिलाओं को पंचायतों में आधी भागीदारी सौंपी। इसके अच्छे असर दिखे। महिला जनप्रतिनिधियों ने शौचालय निर्माण जैसी बुनियादी जरूरतों पर जोर दिया और अब सूबे के अधिकांश गांव इस सुविधा से लैस हो गए हैं। मधुबनी, मोतिहारी, गोपालगंज, बक्सर जिलों की पंचायतों में शौचालयों का निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

नीतीश ने अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही बालिका शिक्षा पर जोर दिया। बालिकाओं के लिए साइकिल योजना के उत्साहजनक परिणाम आए और स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ी। नीतीश की प्रेरणा से पंचायतों की महिला जनप्रतिनिधियों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। हालांकि महिला जनप्रतिनिधियों में शिक्षित महिलाओं की संख्या कम ही है लेकिन कई पंचायतों ने बच्चों को स्कूल भेजने की मुहिम चलाई जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं।

महिला जनप्रतिनिधियों ने भ्रष्टाचार पर अंकुश और नशामुक्ति के लिए भी अभियान शुरू किया है। कैमूर जिले के अघौरा, मधुबनी के बनकट्टा, पूर्णिया के बेलौरी और बेगूसराय के मटिहानी पंचायतों में जनप्रतिनिधियों की पहल पर महिलाओं ने अवैध शराब की फैक्ट्रियां बंद कराईं। जागरूक महिलाओं ने कई स्थानों पर शराब की दुकानें ध्वस्त कीं। इतना ही नहीं पंचायतों ने महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए टिकुली और चूड़ी निर्माण का प्रशिक्षण भी शुरू किया है।

पंचायतों में महिलाओं को मिले आरक्षण ने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जंग को प्रोत्साहित किया और महिला सशक्तीकरण का अभियान भी जोर पकड़ा। इन सफलताओं ने महिलाओं में नया जोश भरा है। इस बार के पंचायत चुनावों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने चुनाव में उतरने का मन बनाया है।

हालांकि इस बदलाव के बावजूद अब भी महिला जनप्रतिनिधियों को पूरे तौर पर सभी अधिकार हासिल नहीं हो पाए हैं। महिला विधायक बीमा भारती के साथ कुछ ही दिनों पहले उसके पति ने मारपीट की और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। जब महिला विधायक के सामने इस प्रकार की दिक्कतें आती हैं तो पंचायत स्तर की महिला जनप्रतिनिधियों की समस्याएं सहज ही समझी जा सकती हैं। इस्लाइमपुर के धोबाडीह पंचायत की मुखिया मालो देवी की अपराधियों ने हत्या कर दी। महिलाओं के बीच आई जागरूकता को समाज का सुविधाभोगी वर्ग पचा नहीं पा रहा है।

नतीजतन कई स्थानों पर महिला जनप्रतिनिधियों को विरोध भी झेलना पड़ा है। सरकारी अफसरों में भी महिला जनप्रतिनिधियों की योग्यता को लेकर संदेह आम बात है। नतीजतन महिला जनप्रतिनिधियों को कई मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं। रिश्तेदार और पंचायत सचिव महिला जनप्रतिनिधियों को मुहर की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं। कागजातों और चेकबुक पर महिला जनप्रतिनिधियों से सिर्फ हस्ताक्षर करने की उम्मीद की जाती है। दबंग लोग कई स्थानों पर इन्हें झूठे मामलों में फंसाते रहे हैं। नवादा के लोहरापुर और मधुबनी के औंसी बभनगामा में ऐसी घटनाएं सामने आईं । इन बाधाओं के बावजूद महिला जनप्रतिनिधियों ने खुद फैसले लेने और बेहतर तरीके से स्थानीय सरकार चलाने में मिसाल कायम की है।

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