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होमलैंड की मांग को लेकर कश्मीरी पंडित एकजुट

-सुरेश एस डुग्गर

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श्रीनगर। 24 सालों से पलायन की त्रासदी झेल रहे कश्मीरी विस्थापितों को हालात ने चाहे कितना भी बदल दिया हो, चाहे राजनीतिक दलों की मेहरबानी से वे कितने भी गुटों में बंट चुके हों लेकिन कश्मीर वापसी के लिए अपनी होमलैंड की मांग पर वे एकजुट अवश्य हैं। यही कारण है कि सरकार की उनकी घर वापसी की योजनाओं के जवाब में उन्होंने एक स्वर में फिर से होमलैंड की मांग की है।

इस होमलैंड की मांग सर्वप्रथम ‘पनुन कश्मीर’ (हमारा कश्मीर) नामक संगठन ने की थी। लेकिन यह संगठन अधिक दिनों तक एकजुट नहीं रह पाया था। राजनीतिक दलों की मेहरबानी से अब यह तीन हिस्सों में बंट चुका है, परंतु जब होमलैंड की मांग की बात आती है तो राजनीतिक संगठनों को मुंह की इसलिए खानी पड़ती क्योंकि तीनों एक स्वर में इसका पक्ष लेते हैं। सिर्फ पनुन कश्मीर के तीन हिस्से ही नहीं बल्कि कश्मीरी विस्थापितों के सभी संगठन होमलैंड के पक्ष में ही स्वर उठाते हैं।

जिस होमलैंड की मांग कश्मीरी संगठन आज कर रहे हैं वह हकीकत में अगर सामने आया तो वह कश्मीर घाटी में दरिया जेहलम के किनारे के क्षेत्रों में बनाया जाने वाला सुरक्षा जोन होगा जिसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त होगा। फिलहाल यह बात अलग है कि केंद्र सरकार इसके पक्ष में नहीं है। वह स्पष्ट रूप से इसके गठन से इंकार कर चुकी है। मगर कश्मीरी संगठन राज्य को चार हिस्सों में बांटने की मांग कर चुके हैं। इन चार हिस्सों में वे जम्मू, लद्दाख तथा कश्मीर को तीन राज्यों में बांट कर होमलैंड की स्थापना को चौथे हिस्से के रूप में चाहते हैं।

होमलैंड की मांग को सरकार के सामने रखने वालों का मत है कि कश्मीरी विस्थापितों की वापसी वर्तमान सुरक्षा माहौल में संभव नहीं है। यही कारण है कि राज्य सरकार ने 1800 करोड़ की जो योजना उनकी घर वापसी की बनाई है उसे कश्मीरी गुटों ने अस्वीकार किया है। इसे अस्वीकारने के पीछे का कारण वे असुरक्षित माहौल, कश्मीर के लोगों में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कथित वैर वैमनस्य की भावना को बताते हैं।

ऐसा भी नहीं है कि कश्मीरी पंडित, जिन्होंने आतंकवाद के भूत से पीछा छुड़ाने की खातिर 1990 के आरंभ में अपने घर-बाहर का त्याग करना आरंभ किया था, घर वापसी नहीं चाहते बल्कि वे सुरक्षित माहौल की तलाश में हैं। वे इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि कश्मीर में सुरक्षित माहौल की आस रखना मजाक होगा लेकिन वे इसके लिए होमलैंड रूपी सुरक्षित जोन की बात अवश्य करते हैं।

उनकी नजर में अगर केंद्र सरकार होमलैंड को स्थापित कर दे तो 'एक पंथ दो काज' वाली बात हो सकती है। कश्मीरी विस्थापित भी वापस लौट आएंगे और सुरक्षित माहौल भी उन्हें मिल जाएगा। वैसे कश्मीरी विस्थापितों के संगठन वर्तमान परिस्थितियों में कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी का विरोध इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि पलायन करने वालों में से 80 प्रतिशत के घर तबाह हो चुके हैं तथा कइयों ने अपनी जमीन-जायदाद औने-पौने दामों पर बेच डाली है। और ऐसे में वापस लौटने वाले कहां जाएंगें यक्ष प्रश्न मुंहबाए खड़ा है।

अगर सरकार पर विश्वास करें तो कश्मीरी विस्थापितों के नेता अपनी राजनीति की खतिर कश्मीरी पंडितों की वापसी में बाधाएं उत्पन्न कर रहे हैं क्‍योंकि उसका कहना है कि कश्मीर वापस लौटने पर वे समुदाय में अपनी राजनीति को नहीं चला पाएंगे। इसी कारण कथित तौर पर सरकार ने कश्मीरी विस्थापितों के कैम्पों में अब समांतर नेता खड़े करने आरंभ किए हैं।

इनका परिणाम यह है कि कश्मीरी विस्थापितों के पुराने नेताओं के लिए अपनी साख बचाना कठिन होता जा रहा है। हालांकि अभी भी वे होमलैंड के मुद्दे को भूना रहे हैं। वे जानते हैं कि होमलैंड की मांग पर सभी का एक स्वर है और इससे कोई भी कश्मीरी विस्थापित परिवार इंकार नहीं कर सकता।

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