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फिल्मों में सहकारिता का अनूठा प्रयोग

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हमें फॉलो करें हिन्दी फिल्म उद्योग सहकारिता
मुंबई (वार्ता) , बुधवार, 8 अगस्त 2007 (14:40 IST)
हिन्दी फिल्म उद्योग भी अब सहकारिता के माध्यम से फिल्मों का निर्माण चाहता है। रिलीज के लिए तैयार 'मैंने जीना सीख लिया' का निर्माण स्पंदन परिवार सिनेमा मूवमेंट की ओर से किया गया है।

इस संगठन को हाल ही में कुछ लोगों ने मिलकर बनाया है। संगठन में फिल्म से जुड़े ऐसे छोटे निर्माता, निर्देशक, कैमरामैन, संपादक और तकनीकी लोग हैं, जिन्हें अक्सर काम नहीं मिलता, या जिन्हें काम पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। स्पंदन परिवार में 150 लोग शामिल हैं।

फिल्म के निर्देशक मिलिंद कहते हैं कि 'हमने जीना सीख लिया' के वितरण के लिए मल्टीप्लैक्स से बात की जा रही है। फिल्म का मुनाफा बराबर-बराबर सभी 150 शेयरधारकों के बीच बाँटा जाएगा। यदि घाटा हुआ तो उसे भी शेयर धारकों को ही वहन करना होगा।

पाँच साल तक निर्देशक संजय लीला भंसाली के सहायक रहे उके ने कहा कि 'मैंने जीना सीख लिया' में ज्यादा कीमत माँगने वाले कलाकारों को नहीं लिया गया है, ताकि इसकी लागत नहीं बढ़ पाए।

यह कम बजट की फिल्म है। हालाँकि उन्होंने यह बताने से इन्कार किया कि फिल्म में कितने पैसे लगे हैं। फिल्म में मिलिंद गुनाजी, रीमा लागू, राजू खेर और गौरव चोपड़ा जैसे फिल्म और रंगमंच के मंजे हुए कलाकार हैं।

उन्होंने कहा कि फिल्म की कहानी मिलिंद वोकिल के मराठी उपन्यास 'शाला' स्कूल पर आधारित है। फिल्म पूरी सामाजिक, शैक्षणिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करती है। स्कूल जाने वाले लड़के और लड़कियों के बीच प्यार कैसे पनपता है इसे भी फिल्म में दिखाया गया है। उके कहते हैं कि फिल्म और भी कई सवाल खड़े करती है।

मराठी और हिन्दी रंगमंच से जुड़ी पदमिनी राजपूत कहती हैं कि फिल्म निर्माण अब काफी महँगा हो गया है। कोई छोटा निर्माता तो फिल्म बनाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। कलाकारों का पारिश्रमिक ही करोड़ तक पहुँच जाता है। ऐसे में यदि सहकारिता के आधार पर फिल्म निर्माण की शुरुआत हुई है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

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