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खर-पतवार नाशक से सोयाबीन बर्बाद, किसान निराश

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-स्वतंत्र मिश्र
देवास से चंद किलोमीटर दूर निपानिया गांव के 70 वर्षीय किसान पोपसिंह खेत में ही दोपहर का खाना निपटा चुके हैं। इस संवाददाता के यह पूछते ही कि इस बार सोयाबीन की फसल कैसी हुई है? पोपसिंह कुछ देर चुप्पी ओढ़ लेते हैं और उनकी आंखें नम हो जाती है। 
 
सवाल दोहराने पर वे खर-पतवार नाशक ‘टरगा सुपर’ का डिब्बा दिखाते हुए कहते हैं- ‘साहब, इस दवा (हर्बीसाइड) ने सब चैपट कर दिया। सारी फसल जलकर खराब हो गई है। हम बर्बाद हो गए।’ लेकिन ’टरगा सुपर’ बनाने वाली कंपनी धानुका एग्रीटेक लिमिटेड की मध्यप्रदेश शाखा के क्षेत्रीय विक्रय अधिकारी जेके सिंह ने कहा, ‘सोयाबीन की खेती ‘टरगा सुपर की वजह से खराब नहीं हुई है। किसानों ने टरगा के साथ क्लोरीमुरान (छोटू ब्रांड नाम) मिलाकर इस्तेमाल किया है, जिसके चलते फसलों का नुकसान हुआ है। ‘छोटू’ का निर्माण कृषि रसायन केंद्र नाम की कंपनी करती है। टरगा छोटी या नुकीली पत्तियों को मारने के लिए होती है और सोयाबीन की पत्ती चौड़ी होती है।’ 
 
गौरतलब है कि निपनिया के आसपास के गांवों हाट पिपलिया, पटारी, अमलावती, मरका, मेंढकी, बरौठा और जावड़ा आदि गांवों के करीब 100 किसानों की लगभग 550 बीघे पर लगी सोयाबीन बर्बाद हुई है। किसानों द्वारा स्थानीय विक्रेता एजेंसी को जब सोयाबीन फसल के बर्बाद होने की खबर दी गई तो कृषि रसायन केंद्र के अधिकारियों ने सोयाबीन के खेतों का जायजा लिया और किसानों को प्रति एकड़ (पौने दो बीघा) 6000 रुपए मुआवजे के तौर पर देने की बात भी की है, लेकिन निरीक्षण के बाद से लेकर अब लगभग दो महीने का समय बीत जाने के बावजूद मुआवजे के आश्वासन की तारीखें बदलती रही हैं लेकिन अभी तक किसी के हाथ एक भी धेला नहीं लगा है। कृषि रसायन केंद्र के अधिकारी फसल के नुकसान की बात स्वीकार कर रहे हैं और मुआवजे देने की बात भी कर रहे हैं, लेकिन वे अपने कीटनाशक के गड़बड़ होने की बात पर चुप्पी लगा जाते हैं।
 
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पिछले कुछ दशकों में पंजाब, महाराष्ट्र और गुजरात के बाद मध्यप्रदेश में फसलों की बंपर पैदावार ली जाने लगी है। जाहिर है कि यहां कीटनाशकों और रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी खूब बढ़ा है। कृषि विशेषज्ञ देविन्दर शर्मा का मानना है कि कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से महाराष्ट्र और पंजाब में किसानों को लाभ तो मिला है लेकिन इसके गलत या जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से इसका नुकसान भी इन राज्यों में दीखने लगा है। 
 
फसल सामान्य होती तो एक एकड़ में 7-8 क्विंटल सोयाबीन की पैदावर होती है। इस समय देवास अनाज मंडी में सोयाबीन के भाव 3100-3200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। अगर किसानों को कंपनियों से मुआवजा मिल भी जाता है तो भी किसानों को प्रति एकड़ कम से कम 19 हजार रुपए का घाटा उठाना पड़ेगा। कृषि रसायन केंद्र के एक अधिकारी से मुआवजा के बारे में पूछने पर वे अभी 10 दिन का समय और लगने की बात कहते हैं। स्थानीय विक्रेता देवेश पेस्टिसाइड केंद्र के मालिक महेश ने बताया, ‘इस फसल के लिए उन्होंने अकेले टरगा सुपर के साथ छोटू भी 250 लीटर बेची है। किसानों के नुकसान की बात कृषि रसायन केंद्र के अधिकारियों से कई बार की लेकिन कंपनी के अधिकारी हर बार मुआवजा की कोई अगली तारीख बता देते हैं।’ 
 
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देवास जिले में पिछले 7-8 सालों के दौरान 10 हजार से ज्यादा तालाबों का निर्माण हुआ है। यहां अब 100 फीसदी खेत सिंचित हैं। फसलों की पैदावार भी गुणात्मक रूप से बहुत ज्यादा बढ़ी है, लेकिन इस इलाके में खेती से ज्यादा ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में रसायन का इस्तेमाल भी बहुत बढ़ा है। टोंक कलां के 75 वर्षीय किसान प्रेमसिंह खींची अपने इलाके में रसायन और उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल से चिंतित रहते हैं। वे मध्यप्रदेश के कृषि विभाग में सहायक निदेशक भी रह चुके हैं। उनका कहना है कि रसायनों का इस्तेमाल कब और कितना करें, इसकी जानकारी की कमी के चलते भी कई बार उनको नुकसान उठाना पड़ता है।
  
रासायनिकों के व्यापक इस्तेमाल को प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ देविन्दर शर्मा अच्छा नहीं मानते हैं। वे बताते हैं, ‘हमारे किसान मंडी में बैठे आढ़तियों के दिशा निर्देश से चलते हैं। आढ़तियों को किसानों के नुकसान की चिंता रत्ती भर नहीं होती है, वे तो ज्यादा से ज्यादा लाभ हर हाल में चाहते हैं। कीटनाशकों का इस्तेमाल ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में करने लग जाते हैं, लेकिन अति तो किसी भी चीज की नुकसान पहुँचाने वाली ही होती है। कीटनाशकों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। खेतों की उर्वरा शक्ति जाती रहती है। कीटनाशकों का रसायन मिट्‍टी में घुल-घुलकर भूजल में मिल जाता है और अंततः वह हमें नुकसान पहुंचाता है। पंजाब में कैंसर के प्रसार की बड़ी वजह कीटनाशकों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल में लाना ही है।’ 
 
मध्यप्रदेश की देवास अनाज मंडी और दिल्ली स्थित नरेला अनाज मंडी के कुछ आढ़तियों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि हम अनाज खरीदने में हमेशा ज्यादा अनाज आपूर्ति कराने वाले किसानों को तवज्जो देते हैं जिसके चलते हर किसान के मन में ज्यादा से ज्यादा अनाज उगाने की बात घर कर जाती है और वे ज्यादा फसल लेने के चक्कर में कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा करने लग जाते हैं। 
 
इस समय प्रदेश में कृषि महोत्सव (कृषि क्रांति रथ 25 सितंबर-20 अक्टूबर) चल रहा है जिसमें किसानों को कृषि से लाभ कमाने की बात हो रही है, लेकिन वहीं दूसरी ओर देवास के किसान फसल के बर्बाद होने के बाद मुआवजा मिलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि हमारी फसल अब किस रसायन से खराब हुई, यह तो जांच का विषय है, लेकिन हमसे मुआवजा का वादा करके लौट चुकी कंपनियां हमें मुआवजा देने में क्यों देर कर रही हैं? क्या वे हमारे मरने का इंतजार कर रही हैं? 
 

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