नई दिल्ली। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि प्रदूषण से निपटने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। अगर सभी राज्य सरकारों के अंदर इच्छाशक्ति है, तो हम पराली को एक अवसर में बदल सकते हैं, लेकिन इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने कहा है कि प्रदूषण को कम करने में कम से कम चार साल लगेंगे। मैं उनकी बात से सहमत नहीं हूं। अगर सारी सरकारें और पार्टियां राजनीति छोड़कर ईमानदारी के साथ काम करें, तो काफी कम समय में प्रदूषण पर काबू पा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने पराली का वैकल्पिक समाधान दे दिए हैं, अब केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। पराली का एक समाधान दिल्ली सरकार द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा रासायनिक घोल है, जिसे छिड़ककर पराली को खाद में बदला जाता है। दूसरे समाधान के तहत हरियाणा और पंजाब में कई फैक्ट्रियों में पराली से सीबीजी, कोयला और कोक बनाया जा रहा है। सीएम ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से अपील करते हुए कहा कि पराली की समस्या के स्थाई समाधान के लिए वे हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के साथ हर महीने बैठक करें।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने डिजिटल प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि कल मैंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जी का बयान सुना था, आज उनका बयान मीडिया में भी प्रकाशित हुआ है। उनका कहना है कि प्रदूषण किसी एक राज्य की वजह से नहीं होता है, प्रदूषण एक राज्य में होता है, तो दूसरे राज्य में चला जाता है। हवा इधर से उधर होती रहती है। इसके लिए सबको मिलकर काम करना पड़ेगा। उनकी बात से मैं 100 प्रतिशत सहमत हूं। हम सबको मिलकर प्रदूषण के खिलाफ जंग छेड़ने पड़ेगी।
सीएम ने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने यह भी कहा था कि प्रदूषण एक दिन में ठीक नहीं हो सकता है। इसके लिए कम से कम 4 साल लगेंगे। इस बात से मैं सहमत नहीं हूं। मुझे यह लगता है कि अगर सारी सरकारें और सारी पार्टियां मिलकर राजनीति छोड़कर, ईमानदारी से, मेहनत के साथ लगें, तो चार साल से काफी कम समय में हम प्रदूषण पर काबू पा सकते हैं।
पराली के समाधान में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी : मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि हम पराली के प्रदूषण की बात करते हैं। दिल्ली में हम सभी जानते हैं और अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है। इससे पहले पराली पर राजनीति हो रही थी कि पराली से प्रदूषण कम होता है या ज्यादा होता है। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ दिन पहले कह दिया है कि साल के आखिर में डेढ़ से दो महीने के अंदर जो प्रदूषण होता है, वह मुख्य रूप से पराली से होता है। पराली से जो प्रदूषण पैदा होता है, वह केवल दिल्ली में ही नहीं होता है, बल्कि पूरे उत्तर भारत में होता है। मुझे तो ज्यादा चिंता उन किसानों की है, जो अपने खेत में पराली जलाते हैं, उनके गांव में प्रदूषण का क्या हाल होता होगा, वो अपने परिवार और बच्चों को किस तरह से पालते होंगे।
मेरा अपना मानना है कि पराली से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को काफी कम समय में नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए हमारे इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने समाधान दिए हैं। पराली के समाधान में केवल और केवल हमारे अंदर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी नजर आ रही है। अभी जैसे दिल्ली के अंदर हम प्रयोग कर रहे हैं। पूसा इंस्टिट्यूट इस पर प्रयोग कर चुका है। पूसा इंस्टीट्यूट द्वारा बताए हुए रास्ते पर चल रह दिल्ली सरकार इस बार दिल्ली के सारे खेतों में अपने पैसों से उस घोल/केमिकल का छिड़काव कर रही है, जिसकी वजह से पराली खाद में बदल जाएगी और पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह एक समाधान है।
पराली से कंपनियां बना रही हैं कंप्रेस्ड बायोगैस और गत्ता : मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि पराली का दूसरा समाधान यह है कि करनाल के अंदर एक बहुत बड़े पैमाने पर पराली से कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) बनाई जा रही है। वह सीएनजी की तरह इस्तेमाल की जा सकती है। करनाल में पराली से सीएनजी बनाने का बहुत बड़ा कारखाना शुरू हो चुका है। हम लोग पराली से सीएनजी क्यों नहीं बनाते हैं? वह फैक्टरी जब किसानों से पराली लेती है, तो उसके बदले किसानों को पैसे देती है। इससे किसानों की आमदनी हो रही है। कंपनी किसानों के खेत से पराली ट्रांसपोर्ट करके खुद फैक्टरी तक लेकर आती है। इसमें किसानों का कोई खर्चा नहीं है। कंपनी जितनी भी गैस बनाती है, वह पूरी गैस दिल्ली की इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड खरीद लेती है। इससे सबका फायदा है।
पंजाब के अंदर ऐसी सात फैक्टरियां चल रही हैं, जो पराली से कोयला या कोक बनाती हैं। वह फैक्टरी वाले खुद किसान के खेत में जाते हैं, पराली काटते हैं, किसानों को पराली के बदले प्रति हेक्टेयर 500 रुपए देते हैं, इससे किसानों की आमदनी होती है और वो खुद किसान के खेत से पराली ट्रांसपोर्ट करके फैक्टरी तक लेकर आते हैं और इससे कोयला या कोक बनाते हैं। यह फैक्टरियां एनटीपीसी को कोयला बेच रही हैं। इस तरह पराली से कोयला और गैस बनती है और हम उस पर केमिकल का इस्तेमाल करके उसकी खाद बना सकते हैं। पराली से गत्ता भी बनता है। अब गत्ता बनाने की भी कई फैक्टरियां शुरू हो रही हैं।
बहुत कम समय में निकाल सकते हैं पराली का समाधान : मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि अगर सारी सरकारें मिलकर अपने राज्य के अंदर पराली को इस तरह से इस्तेमाल करने लगे कि उसको जलाने की वजाय किसानों को उससे कमाई होने लग जाए, तो इससे कितना फायदा होगा? यह फैक्टरियां पता नहीं कितने लोगों को नौकरियां दे रही हैं? जो फैक्टरी पराली से गैस बना रही हैं, वह पता नहीं कितने लोगों को नौकरी दे रही है और किसान को पैसा भी दे रही है।
जो फैक्टरियां पराली से कोयला बना रही हैं, वो कितने लोगों को नौकरियां दे रही हैं और किसान को पैसा भी दे रही हैं। जो फैक्टरियां पराली से गत्ता बना रही हैं, वो कितने लोगों को रोजगार दे रही हैं और किसानों को पैसा दे रही हैं। मुझे लगता है कि अगर हम सभी लोग युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दें, तो बहुत कम समय लगभग सालभर में पराली का समाधान निकाल सकते हैं। अभी तक पराली एक बहुत बड़ा बोझ बनी हुई है। पराली को हम एक बोझ की बजाय बहुत बड़े अवसर में बदल सकते हैं। इसके लिए शर्त केवल एक है, क्या हम सबके अंदर राजनीतिक इच्छा शक्ति है या इस मुद्दे पर केवल राजनीति करनी है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को करनी चाहिए हर महीने बैठक : मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि मेरी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से निवेदन है अभी तक केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों के पर्यावरण मंत्रियों के साथ बैठक करती रही है। यह मुद्दा बहुत बड़ा है। यह मुद्दा केवल पर्यावरण मंत्री के स्तर पर निस्तारित नहीं हो सकता है। मेरी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जी से अपील है कि हर महीने उत्तर भारत में पराली से उठने वाला धुआ एक बड़ा प्रदूषण का कारण है। इसलिए उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के साथ हर महीने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को बैठक करनी चाहिए। हम सभी लोगों को खुले दिल से बैठक करनी चाहिए। एक-दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप न करें। हरियाणा के मुख्यमंत्री के पास कुछ समाधान हो सकते हैं, पंजाब के मुख्यमंत्री के पास कुछ समाधान हो सकते हैं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास कुछ समाधान हो सकते हैं और मेरे पास भी कुछ समाधान हो सकते हैं।
हम सभी लोग मिलकर समाधान के ऊपर चर्चा करें। हम अपने पर्यावरण मंत्रियों, अधिकारियों और विशेषज्ञों को साथ में लेकर बैठक में हिस्सा लें और जब तक पराली की समस्या का समाधान नहीं हो जाए, तब तक हर महीने मीटिंग करके समाधान निकालते रहें। इसके लिए एक समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए और उसके अनुसार काम होना चाहिए, तभी हम इसका समाधान निकाल सकते हैं। इंजीनियर और विशेषज्ञों ने समाधान दे दिए हैं, कमी केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की है।