मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने राजद्रोह और अन्य आरोपों में अभिनेत्री कंगना रनौत और उनकी बहन रंगोली चंदेल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में मंगलवार को दोनों को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी और साथ ही उन्हें 8 जनवरी को मुंबई पुलिस के समक्ष उपस्थित होने का भी निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने पुलिस से राजद्रोह का आरोप लगाने का कारण पूछा और कहा कि पहली नजर में ऐसा मालूम होता है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) गलत तरीके से लगाई गई है।
अदालत ने पूछा कि अगर कोई सरकार की हां में हां नहीं मिलाता है तो क्या उसके खिलाफ राजद्रोह का आरोप लगाया जा सकता है? अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने दोनों बहनों को तीन सम्मन जारी किए हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
सोशल मीडिया पर पोस्ट के जरिए कथित रूप से घृणा और साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए रनौत और चंदेल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी। इस पर बांद्रा की मजिस्ट्रेट अदालत ने पुलिस को जांच करने का आदेश दिया था जिसके बाद प्राथमिकी दर्ज की गयी।
खंडपीठ रनौत और चंदेल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दोनों ने उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और 17 अक्टूबर के मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले को रद्द करने का अनुरोध किया है।
अदालत ने कहा कि तीन सम्मन जारी किए गए हैं और आवेदक (रनौत और चंदेल) उपस्थित नहीं हुई हैं। जब सम्मन जारी होते हैं तो आपको उनका सम्मान करना होता है।
रनौत और चंदेल के वकील रिजवान सिद्दीकी ने अदालत को बताया कि दोनों बहनें महाराष्ट्र में नहीं होने के कारण पुलिस के समक्ष उपस्थित नहीं हो सकीं और वे जांच से भागने का प्रयास नहीं कर रही हैं।
उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि दोनों बहनें अपने बयान दर्ज कराने के लिए आठ जनवरी को दोपहर 12 से 2 बजे तक मुंबई में बांद्रा पुलिस के समक्ष उपस्थित होंगी। अदालत ने उनके इस बयान को स्वीकार कर लिया है।
अदालत ने कहा कि पहली नजर में हमारा मानना है कि जबतक मामले की विस्तृत सुनवाई नहीं हो जाती अंतरिम राहत देना जायज है। पुलिस आवेदकों (रनौत और चंदेल) की गिरफ्तारी समेत अन्य कोई दंडात्मक कार्रवाई ना करे।
न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा कि आवेदक बिना डरे मुंबई आ सकती हैं और अपने बयान दर्ज करा सकती हैं। ऐसा करने में कोई नुकसान नहीं है। अदालत ने यह भी जानना चाहा कि इस मामले में राजद्रोह का आरोप क्यों लगाया गया है।
न्यायमूर्ति शिंदे ने सवाल किया कि राजद्रोह का आरोप क्यों लगाया गया है? हम अपने देश के नागरिकों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
पीठ ने कहा कि पहली नजर में हमारा मानना है कि भादंसं की धारा 124ए (राजद्रोह) लगाना गलत है। हमें समझ नहीं आ रहा है कि आजकल पुलिस कई मामलों में यह धारा क्यों लगा रही है।
अदालत ने लोक अभियोजक दीपक ठाकरे को सलाह दी कि वह पुलिस के लिए कार्यशाला का आयोजन करें और किस मामले में कौन सी धारा लगनी चाहिए इसकी जानकारी दें। अदालत ने कहा कि अगर कोई सरकार की हां में हां नहीं मिलाता है तो क्या राजद्रोह का आरोप लगाया जा सकता है? पुलिस से कहें कि वह ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और सम्मान बरते।
अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए 11 जनवरी की तारीख तय करते हुए कहा कि वह अगली सुनवाई के दिन इस पर विस्तार से विचार करेगी। शिकायतकर्ता के वकील रिजवान मर्चेंट ने अदालत से कहा कि याचिका पर सुनवाई पूरी होने तक रनौत और चंदेल से इस मामले के संबंध में सोशल मीडिया पर कोई भी बयान पोस्ट नहीं करने को कहा जाए।
इस पर रनौत के वकील सिद्दीकी ने अदालत से कहा कि बहनें इस मामले के संबंध में सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट नहीं करेंगी। इस मामले में अदालत ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार प्राप्त है लेकिन वह कुछ पाबंदियों के साथ मिलता है।
अदालत ने कहा कि इन मौलिक अधिकारों का उपयोग करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को सुनिश्चित करना चाहिए कि दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन ना हो। आपके अधिकार दूसरों के अधिकारों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं। (भाषा)