नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में रोशनी घोटाला मामलों में अपनी जांच का दायरा बढ़ाते हुए सीबीआई ने 4 प्रारंभिक जांच दर्ज की है। उच्च न्यायालय के निर्देशों का जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) के अधिकारियों एवं अन्य लोगों द्वारा कथित तौर पर अनुपालन नहीं करने को लेकर जांच एजेंसी ने यह कदम उठाया है। उन्होंने भूमि के अवैध अतिक्रमण में मिलीभगत को ढंकने के लिए अदालत के निर्देशों का कथित तौर पर अनुपालन नहीं किया।
सीबीआई ने जो पहली जांच दर्ज की है, वह जम्मू तहसील के गोल में 784 कनाल (5 कनाल 1 बीघा के बराबर होता है), 17 मारला जमीन की है, जो जेडीए को हस्तांतरित की गई थी। उल्लेखनीय है कि किसी शिकायत के जरिए लगाए गए आरोपों में अपराध के प्रथम दृष्ट्या आकलन के लिए सीबीआई पहले कदम के तौर पर प्रारंभिक जांच करती है। यदि आरोप गंभीर प्रकृति के प्रतीत होते हैं तो जांच एजेंसी प्राथमिकी दर्ज करती है, नहीं तो प्रारंभिक जांच बंद कर दी जाती है।
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने 24 अप्रैल 2014 को जम्मू, सांबा, उधमपुर, श्रीनगर, बडगाम और पुलवामा जिलों के उपायुक्तों को मौजूदा मामले के संबद्ध रिकॉर्ड के हस्तांतरण को लेकर अनुपालन रिपोर्ट सतर्कता निदेशक को सौंपने का निर्देश दिया था, जो इस मामले की जांच कर रहे थे। उच्च न्यायालय के बार-बार के निर्देशों के बावजूद सक्षम प्राधिकारों द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया।
अदालत ने सीबीआई को जांच सौंपते हुए कहा था कि जांच में सहायता के लिए जम्मू विकास प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारियों ने अनिच्छा दिखाई है और सच्चाई का खुलासा करने में बाधा डाली है। इन अधिकारियों की यह हरकत अवैध गतिविधियों में मिलीभगत के समान है। अधिकारियों ने बताया कि सीबीआई द्वारा दर्ज की गई दूसरी प्रारंभिक जांच 154 कनाल जमीन के कथित अतिक्रमण और बंसीलाल गुप्ता नाम के एक कारोबारी द्वारा जेडीए के अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर वाणिज्यिक उपयोग के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन करने से जुड़ी है। गुप्ता ने इस जमीन पर रोशनी अधिनियम के तहत अधिकार हासिल किया था।
उच्च न्यायालय ने इस मामले में अपनी टिप्पणी में कहा था कि हमें इस बात से सख्त ऐतराज है कि जेडीए और राजस्व अधिकारियों ने अब इस मामले को ढंकने का कार्य बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया है। सीबीआई ने तीसरी प्रारंभिक जांच सरकार द्वारा जेडीए को हस्तांतरित 66,436 कनाल जमीन के सीमांकन संबंधी अदालती आदेश का अनुपालन करने से प्राधिकरण के इंकार करने के मामले में दर्ज की है।
अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि उसके आदेशों का जेडीए द्वारा अनुपालन नहीं किया जाना अतिक्रमणकारियों के साथ अधिकारियों की गहरी संलिप्तता को प्रदर्शित करता है। चौथी प्रारंभिक जांच जम्मू-कश्मीर राज्य भूमि (कब्जाधारकों को मालिकाना हक सौंपने), नियम, 2007 के प्रकाशन से संबद्ध है। 5 मई 2007 को एक आधिकारिक गजट के जरिए रोशनी अधिनियम की धारा 18 का उपयोग करते हुए ऐसा किया गया था।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि ऐसा लगता है कि विधायिका से इन नियमों की मंजूरी नहीं ली गई और उन्हें सरकारी गजट में अनधिकृत रूप से प्रकाशित कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर राज्य भूमि (कब्जाधारकों को मालिकाना हक देना) अधिनियम 2001, जिसे रोशनी अधिनियम के तौर पर भी जाना जाता है, 9 नवंबर 2001 को लागू किया गया था और इसे 13 नवंबर 2001 के सरकारी गजट में प्रकाशित किया गया था। इस कानून को 2018 में निरस्त कर दिया गया। उच्च न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर के सतर्कता ब्यूरो से जांच सीबीआई को सौंपे जाने का आदेश दिए जाने के बाद जांच एजेंसी ने इस विषय में 9 प्राथमिकी दर्ज की हैं। (भाषा)