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यहां रहता है इच्छाधारी नाग, चूहे करते हैं परिक्रमा

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हमें फॉलो करें Gandharwa puri Dewas
मध्यप्रदेश देवास जिले में एक ऐसा मंदिर है जहां चूहे इच्छाधारी नाग की परिक्रमा करते हैं। हालांकि, श्रद्धालु और मंदिर के पुजारी, माली ने कभी इन नाग और चूहों को नहीं देखा, लेकिन फिर भी मंदिर परिसर में सैकडों की संख्या में चूहे और नाग की लेंडिया देखी जा सकती हैं। आइए जानते हैं, क्या है राजा गंधर्वसेन की नगरी गंधर्वपुरी के इस गंधर्वसेन मंदिर का सच।
 
यह सिंहासन बत्तीसी की एक 'कहानी' का स्थान है। भारत की प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी गंधर्वपुरी के गंधर्वसेन मंदिर के गुंबद के नीचे एक ऐसा स्थान है, जिसके बीचोबीच बैठता है पीले रंग का एक इच्छाधारी नाग, जिसके चारों ओर दर्जनों चूहे परिक्रमा करते हैं। गांव के लोग इसे नागराज का 'चूहापाली' स्थान कहते हैं और इस स्थान को हजारों वर्ष पुराना बताते हैं।

कहते हैं कि नाग और चूहे आज तक नहीं दिखे, लेकिन परिक्रमा पथ पर चूहों की सैकड़ों लेंडियां और उसके बीचोबीच नाग की लेंडी पाई जाती है। गांव वालों ने उस स्थान को कई बार साफ कर दिया, लेकिन न मालूम वे लेंडियां कहां से आ जाती हैं।

इस प्राचीन मंदिर में राजा गंधर्वसेन की मूर्ति स्थापित है। मालवा क्षत्रप गंधर्वसेन को गिर्धभिल्ल भी कहा जाता था। वैसे तो राजा गंधर्वसेन के बारे में कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन इस स्थान से जुड़ी उनकी कहानी अजीब ही है। ग्रामीणों का मानना है कि यहां पर राजा गंधर्वसेन का मंदिर सात-आठ खंडों में था। बीचोबीच राजा की मूर्ति स्थापित थी। अब राजा की मूर्ति वाला मंदिर ही बचा है, बाकी सब काल कवलित हो गए।
 
यहां के पुजारी महेश कुमार शर्मा से पूछा गया कि चूहे इच्छाधारी नाग की परिक्रमा लगाते हैं इस बात में कितनी सच्चाई है, तो उनका कहना था कि यहां नाग की बहुत ही 'प्राचीन बाम्बी' है और आसपास जंगल और नदी होने की वजह से कई नाग देखे गए हैं, लेकिन इस मंदिर में चूहों को देखना मुश्किल ही है, फिर भी न जाने कहां से चूहों की लेंडी आ जाती हैं, जबकि ऊपर और नीचे साफ-सफाई रखी जाती है। हम हमारे पूर्वजों से सुनते आए हैं कि इस मंदिर की रक्षा एक इच्छाधारी नाग करता है।
 
यहां के स्थानीय निवासी बताते हैं कि वे बचपन से ही चूहापाली के इस चमत्कार को देखते आए हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि यहां इस बाम्बी में एक इच्छाधारी पीला नाग रहता है, जो हजारों वर्ष पुराना है। उसकी लम्बी-लम्बी मूंछें हैं और वह लगभग 12 से 15 फीट का है।
 
यह एक प्राचीन नगरी है और यहां आस्था की बात पर ग्रामीणजन कहते हैं कि गंधर्वसेन के मंदिर में आने वाले का हर दु:ख मिटता है। जो भी यहां आता है उसको शांति का अनुभव होता है। यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है इसका गुंबद परमारकाल में बना है, लेकिन नींव और मंदिर के स्तंभ तथा दीवारें बौद्धकाल की मानी जाती हैं। राजा गंधर्वसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य और भर्तृहरि के पिता थे। (hindi.news18.com)

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