बेंगलुरु। हिजाब पर जारी विवाद के बीच बुधवार को कर्नाटक हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इससे जुड़ा मामला बड़ी बेंच को भेज दिया है। अब हिजाब विवाद की सुनवाई हाईकोर्ट की बड़ी बेंच करेगी। इस बीच कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु शहर में किसी भी स्कूल, कॉलेज अथवा अन्य शिक्षण संस्थान के 200 मीटर के दायरे में कोई प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी है। प्रशासन ने प्रदर्शनों पर रोक के लिए धारा 144 लागू की है। कर्नाटक पुलिस ने बताया कि यह फैसला अगले सप्ताह तक लागू रहेगा।
दूसरी ओर, कर्नाटक के प्राथमिक उच्च शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा कि इस विवाद में हम कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) की भूमिका की जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें संदेह है कि इस्लामिक कट्टरपंथी संस्था पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की स्टूडेंट विंग सीएफआई का इस विवाद को उत्पन्न करने में हाथ है।
इस पहले 8 फरवरी को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हिजाब विवाद से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को छात्र समुदाय और आम लोगों से मामले की अगली सुनवाई तक शांति बनाए रखने का अनुरोध किया है। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों के वकील को सुनने और मामले की आगे की सुनवाई लंबित होने के बाद न्यायालय छात्र समुदाय और आम लोगों से शांति बनाए रखने का अनुरोध करती है।
क्या थे वकील के तर्क : हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने अपने अर्जी में तीन बिंदुओं पर अपनी बात रखी। सबसे पहला- हिजाब पहनना इस्लाम में अनिवार्य है। दूसरा- सार्वजनिक व्यवस्था के आधार संवैधानिक रूप से आदेश पारित नहीं होंगे और तीसरा- सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार का मुख्य कर्तव्य है। उन्होंने अपनी अंतिम बात रखने से पहले याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में शामलि होने के लिए अदातल से अंतरिम राहत देने की अनुमति मांगी।
कामत ने तर्क दिया कि भारत पश्चिमी धर्म निरपेक्षता का पालन नहीं करता है, जहां राज्य पूरी तरह से धार्मिक गतिविधियों से दूर रहता है। हिजाब पहनने वाले छात्रों को संस्थान में अलग बैठने के लिए मजबूर करने का जिक्र करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि यह एक तरह का धार्मिक रंगभेद है।
ड्रेस कोड पर कुरान की आयत 24.31 पढ़ते हुए कामत ने कहा कि यह अनिवार्य है कि पति के अलावा किसी और को गर्दन का खुला हिस्सा नहीं दिखाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई न्यायिक फैसलों में पवित्र कुरान की दो हिदायतों की व्याख्या की गई है। ऐसा ही एक फैसला केरल उच्च न्यायालय का भी है।
कामत ने एक फैसले को पढ़ते हुए कहा कि धर्म का पालन करने का अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन एक मौलिक अधिकार है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि राज्य यह नहीं कह सकता कि धर्म की अनिवार्य प्रथा क्या है और क्या नहीं। यह संवैधानिक न्यायालयों का एकमात्र अधिकार क्षेत्र है।