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कश्मीर में रविवार को हुर्रियत की हड़ताल

हमें फॉलो करें कश्मीर में रविवार को हुर्रियत की हड़ताल

सुरेश एस डुग्गर

, शनिवार, 20 मई 2017 (17:55 IST)
श्रीनगर। कश्मीर वादी में 21 मई को हड़ताल का आह्वान किया गया है। इस अवसर पर हुर्रियत कॉन्फ्रेंस राजधानी में कुछ कार्यक्रमों का आयोजन करने जा रही है। जिसके मद्देनजर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जा रहे हैं। वहीं कुछ इलाकों में बंद के हालात हैं, जिससे आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
 
गौरतलब है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस श्रीनगर में अपने पूर्व नेता अब्दुल गनी लोन और मीरवाइज मुहम्मद फारूक की पुण्यतिथि मना रही है। इसी के उपलक्ष्य में एक हफ्ते तक विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। जिसको देखते हुए पुलिस ने कई इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था बेहद कड़ी कर दी है। हुर्रियत के कार्यक्रम के चलते सुरक्षा के मद्देनजर श्रीनगर के तीन थाना क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित रहेंगे। यहां तक कि इन इलाकों में स्कूल, बैंक और सरकारी कार्यालय भी बंद के असर से जूझ रहे हैं।
 
यह सच है कि राज्य में 21 मई का एक खूनी इतिहास है। वर्ष 2006 में 21 मई को श्रीनगर में कांग्रेस की रैली पर होने वाला हमला कश्मीर के इतिहास में कोई पहला हमला नहीं था। किसी जनसभा पर आतंकी हमले का कश्मीर का अपना उसी प्रकार एक रिकार्ड है जिस प्रकार कश्मीर में 21 मई को होने वाली खूनी घटनाओं का इतिहास है। आम कश्मीरी तो 21 मई को सताने वाला दिन कहते हैं जब हर वर्ष आग बरसती आई है।
 
कश्मीर में रैलियों और जनसभाओं पर हमले करने की घटनाएं वैसे पुरानी भी नहीं हैं। इसकी शुरुआत वर्ष 2002 में ही हुई थी जब पहली बार आतंकियों ने 21 मई के ही दिन श्रीनगर के ईदगाह में मीरवायज मौलवी फारूक की बरसी पर आयोजित सभा पर अचानक हमला बोल कर पीपुल्स कांफ्रेंस के तत्कालीन चेयरमेन प्रो अब्दुल गनी लोन की हत्या कर दी थी।
 
इसके बाद तो रैलियों और जनसभाओं पर हमलों का जैसे आतंकवादियों को हथियार मिल गया। वर्ष 2002 में ही उन्होंने करीब 14 रौलियों और जनसभाओं पर हमले बोले थे। इनमें 37 से अधिक लोग मारे गए थे। सबसे अधिक हमले 11 सितंबर को बोले गए थे जिसमें तत्कालीन कानून मंत्री मुश्ताक अहमद लोन भी मारे गए थे। हालांकि उसी दिन कुल 9 चुनावी रैलियों पर हमले बोले गए थे जिसमें कई मासूमों की जानें चली गई थीं।
 
रैलियों और जनसभाओं पर अधिकतर हमले वर्ष 2004 में ही हुए। ऐसा इसलिए भी हुआ था क्योंकि आतंकियों ने फिदाईन हमले आरंभ कर दिए थे और हताशा की स्थिति में थे। वर्ष 2002 में ही आतंकवादियों ने 24 अक्तूबर के ही दिन डॉ. फारूक अब्दुल्ला तथा उमर अब्दुल्ला की रैलियों को भी निशाना बनाने की कोशिश की थी।
 
फिर क्या था आतंकवादियों को रैलियां और जनसभाएं नर्म लक्ष्यों के रूप में मिल गईं। आठ अक्टूबर 2005 को उन्होंने पीडीपी की उड़ी चलो रैली को निशाना बनाया तो 13 लोगों की जान चली गई। महबूबा मुफ्ती समेत कई मंत्री भी जख्मी हो गए। इसी हमले के 5 दिनों के बाद फिर सांसद लालसिंह की रैली को निशाना बनाया गया। वैसे महबूबा की 24 मार्च तथा  25 अप्रैल की रैलियों को भी निशाना बनाया गया था। इनमें कई लोग मारे गए थे। हालांकि आतंकवादियों ने तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मंगतराम शर्मा की रैलियों को भी कई बार निशाना बनाया तो मुफ्ती मुहम्मद सईद की रैलियों को निशाना बनाने से नहीं चुके थे।
 
इतना जरूर है कि वर्ष 2006 में 21 मई को हुआ हमला कश्मीरियों को फिर यह याद दिला गया था कि 21 मई के साथ कश्मीर का खूनी इतिहास जुड़ा हुआ है। आतंकवाद की शुरुआत के साथ ही 21 मई कश्मीरियों को कचोटती रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर 23 साल पहले आतंकवादियों ने 21 मई के दिन हुर्रियत के अध्यक्ष मीरवायज उमर फारूक के अब्बाजान मीरवायज मौलवी फारूक की नगीन स्थित उनके निवास पर हत्या कर दी थी। इस हत्या के बाद ही कश्मीर में आतंकवाद ने नया मोड़ लिया था और आज यह इस दशा में पहुंचा है।
 
21 मई का एक अन्य खूनी अध्याय 11 साल पहले भी लिखा गया था जब आतंकियों ने पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमेन प्रो अब्दुल गनी लोन को गोलियों से भून डाला था।


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