कानपुर। समस्त विद्याओं का भंडार संस्कृत, वर्षों तक उपेक्षित रहने के बाद पुनः अपने स्वरुप में आ रही है। जहाँ एक ओर केंद्र सरकार द्वारा संस्कृत की शिक्षा पर बल दिया जाने लगा है, वहीं दूसरी ओर संस्कृत वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
इसका ज्वलंत उदाहरण आईआईटी कानपुर है, जहाँ विवेकानंद समिति के प्रयत्नों द्वारा संस्कृत भारती के शिक्षक नि:शुल्क दस दिवसीय संस्कृत सम्भाषण शिविर में छात्रों को न केवल संस्कृत बोलना सीखा रहे हैं अपितु व्याकरण का भी प्रारम्भिक प्रशिक्षण दे रहे हैं।
लखीमपुर से आए संस्कृत भारती के विभाग संयोजक डॉ. ओंकार नारायण दुबे तथा कानपुर प्रांत के संपर्क प्रमुख प्रकाश झा के प्रयत्नों द्वारा यहां सैकड़ों छात्र संस्कृत में वार्तालाप करने लगे हैं।
इसी क्रम में विगत 30 दिसंबर से यहाँ पर संस्कृत सम्भाषण शिविर का आयोजन किया है, जिसमे 65 विद्यार्थियों के साथ-साथ कई प्रोफेसर भी सपरिवार संस्कृत भाषा को सीखने में लगे हुए हैं।
छात्रों का कहना है कि संयमित जीवन और भारतीय शास्त्रों की वैज्ञानिकता को जानने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान होना परम आवश्यक है। संस्कृत शब्दों के उच्चारण मात्र से ही नवीन ऊर्जा का संचार होता है, जिसके उपयोग से छात्र, तकनीकि के क्षेत्र में नूतन एवं मानवपयोगी आविष्कार कर सकते हैं। 8 जनवरी तक चले इस संस्कृत सम्भाषण शिविर में प्रत्यक्ष साधनों द्वारा संस्कृत शिक्षण की विधि रोचक एवं सुगम होने से छात्रों को आकर्षित किया।
प्रशिक्षकडॉ. दुबे बताते है कि वेद, उपनिषद्, शास्त्र, रामायण, महाभारत इत्यादि समस्त ज्ञान के भंडार संस्कृत में ही रचित है। इन ग्रंथों में तकनीकी, शस्त्र विद्या, राजनीति, अर्थशास्त्र, यंत्र विज्ञान, विमान-शास्त्र, चिकित्सा के साथ-साथ विश्व बन्धुत्व की भावना का भी समावेश किया गया है। सभी समस्याओं का निदान शिक्षा एवं शिक्षा का आधार संस्कृत है।
अतः सभी को अन्य विषयों के साथ -साथ संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है। वस्तुतः हमें पाश्चात्य मानसिकता से स्वतंत्र होकर भारतीय संस्कृति को गर्व से अपनाना होगा।