श्रीनगर। नया साल कश्मीरियों के लिए खुशी नहीं लाया है क्योंकि वे वर्ष 2016 के झटकों और नुकसान को फिलहाल भुला नहीं पा रहे हैं। यह झटके और नुक्सान कितने हैं, आंकड़े आप बोलते हैं। पिछले साल 130 दिन की हड़ताल रही कश्मीर में। यह हड़ताली कैलेंडर था और अचानक होने वाले बंद, हड़तालों तथा सरकारी कर्फ्यू की कोई गिनती नहीं है। नतीजा सामने है। आधिकारिक तौर पर 16 हजार करोड़ का नुकसान कश्मीरियों को झेलना पड़ा है। गैर सरकारी आंकड़ा एक लाख करोड़ का है।
यूं तो साल 2016 की प्रथम छमाही में हड़तालों और बंद के सिलसिले से कोई मुक्ति कश्मीरियों को नहीं मिली थी। आए दिन ऐसे दौर से गुजरने वालों ने कभी सोचा भी नहीं था कि आतंकी कमांडर बुरहानी वानी की मौत के बाद कश्मीर में हड़ताल और कर्फ्यू का रिकार्ड बन जाएगा। नतीजतन 130 दिनों तक लगातार हड़ताल का रिकार्ड बन गया।
ऐसा भी नहीं है कि बंद और हड़तालों से कश्मीरियों को मुक्ति मिल गई हो बल्कि यह सिलसिला फिर से शुरू हो चुका है और अंतर सिर्फ इतना है कि हड़ताली कैलेंडर के लिए अलगाववादियों ने अब वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजियों को दिए जाने वाले डोमिसाइल सर्टिफिकेट के मुद्दे को चुन लिया है।
इन 130 की लगातार हड़ताल के कारण कश्मीर से टूरिस्टों ने मुख मोड़ा तो हालत यह है कि पर्यटन विभाग और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों की अथक मेहनत भी टूरिस्टों को कश्मीर की ओर मोड़ने में कामयाब नहीं हो पा रही है। केसीसीआई के अध्यक्ष मुश्ताक अहमद वानी कहते थे कि जब कश्मीर के हर भाग में नागरिकों की मौत का सिलसिला जारी हो तो ऐसे में आप टूरिस्टों की आमद की उम्मीद कैसे रख सकते हैं।
पिछले साल हुए 16 हजार करोड़ के आर्थिक नुकसान में वह आंकड़ा शामिल नहीं है जो पत्थरबाजों ने सरकारी तथा गैर सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा कर पैदा किया है। पर यह सच्चाई है कि कश्मीर में नोटबंदी ने उतना असर नहीं दिखाया जितना पत्थरबाजों और चाचा हड़ताली सईद अली शाह गिलानी के हड़ताली कैलेंडर ने दिखाया है।
यह तो आधिकारिक तौर पर माना गया है कि कश्मीर में प्रायवेट सेक्टर को सबसे अधिक नुकसान हुआ है जिसने अपने जहां के 80 परसेंट से अधिक कामगारों को घर का रास्ता दिखा दिया। शायद ही कोई ऐसा व्यापार होगा जो बंद और हड़तालों के इस सिलसिले से अछूता रहा होगा।
27 सालों से कश्मीर जिस आतंकवाद की ज्वाला में धधक रहा है उसमें वर्ष 2016 सबसे अधिक खराब माना जा रहा है, जिसमें पहली बार 130 दिनों की अवधि तक बंद और हड़ताल का सिलसिला लगातार चलता रहा है। आंकड़ों पर एक नजर दौड़ाएं तो इन 27 सालों में करीब 3 हजार दिन हड़ताल और बंद रहा है जिस कारण कश्मीर को लाखों करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा है।