श्रीनगर। कश्मीर में सुरक्षाबल एक खतरनाक शत्रु का सामना कर रहे हैं और वह शत्रु है- अफवाह। बलों तथा प्रशासन के खिलाफ फर्जी अथवा अतिरंजित समाचार जनता के आक्रोश को बढ़ा रहा है जो कई बार हिंसा का रूप ले लेता है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर से कहा कि बलों और प्रशासन के खिलाफ फैल रहीं अफवाहों को बातों के जरिए रोकना चुनौतीपूर्ण काम साबित हो रहा है। घाटी में इंटरनेट सेवा एक माह से ब्लॉक है। हालांकि 10 अप्रैल को तीन दिन के लिए प्रतिबंध हटाया गया था जिसके बाद फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी सोशल मीडिया साइटों में सुरक्षा बलों के नागरिकों पर कथित अत्याचार के पोस्ट, फोटो और वीडियो की बाढ़ आ गई।
समस्या तब गंभीर हो गई जब 19 अप्रैल को यह अफवाह फैली कि पुलवामा जिले में सुरक्षा बलों के साथ झड़प में 100 छात्र घायल हो गए है। उन्होंने कहा कि लेकिन जांच में पाया गया कि केवल 20 छात्रों को मामूली चोटें आईं थीं और प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई।
सच्चाई कुछ भी हो, लेकिन यह अफवाह जंगल में आग की तरह फैल गई जिसके बाद प्रदर्शन और छात्र अशांति फैल गई। अधिकारियों ने कहा कि इन अफवाहों को रोकने के लिए प्रशासन ने कुछ खास प्रयास नहीं किए। पिछले वर्ष तक उत्तरी कमान में जनरल ऑफिसर कमांड इन चीफ रहे लेफ्टीनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुडा ने कहा कि इसे रोकने के लिए सही सूचना का तत्काल प्रसार करना चाहिए था।
उन्होंने से कहा कि आप तथ्यों को पेश करिए और इसका निर्णय जनता पर छोड़िए कि वह अफवाहों पर विश्वास करना चाहते हैं अथवा तथ्यों पर। हालांकि अशांत कश्मीर में अफवाह कोई नई बात नहीं है। 1990 की शुरुआत में एक स्थानीय मस्जिद से घोषणा की गई थी कि सुरक्षा बलों ने श्रीनगर शहर के मुख्य वाटर स्टेशन में जहर मिला दिया है जिसके बाद लोगों में दहशत फैल गई थी।
रॉ के पूर्व प्रमुख तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कश्मीर मामलों के सलाहकार एएस दौलत के अनुसार अफवाहों ने जनता और प्रशासन के बीच खाई पैदा करने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि लेकिन इन्हें रोकने के लिए पूर्व में प्रयास किए गए थे। उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति में मैं यह पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि अफवाहों से प्रभावी तरीके से निबटा जा रहा है अथवा नहीं। (भाषा)