नैनीताल। कहते हैं कि आदमी चला जाता है, लेकिन अपने कर्मों से वह हमेशा जिंदा रहता है। ऐसा ही एक अंग्रेज है, जो एक सौ इकतालीस साल बाद भी आज कुमाऊं के लोगों के दिलों में जिंदा है। यह शख्स है प्रसिद्ध वन्यजीव प्रेमी जिम कार्बेट।
नैनीताल और छोटी हल्द्वानी के लोगों में तो कार्बेट का जादू आज भी बरकरार है। जिम आज भी उनके दिलों और यादों में बसते हैं। यही कारण है कि यहां के लोग हर साल आज ही के दिन जिम को याद करते हैं। कालाढूंगी में लोगों ने आज हर्षोल्लास से उनका जन्मदिन मनाया।
जिम कार्बेट का जन्म 25 अगस्त, 1875 को नैनीताल में हुआ था। उनका परिवार तब नैनीताल के गर्नी हाउस में रहता था। जिम घुमक्कड़ स्वभाव के थे। सर्दियों में उनका परिवार नैनीताल से लगभग 38 किमी दूर कालाढूंगी में प्रवास पर आ जाता था। जिम को यह जगह इतनी पसंद आई कि उन्होंने जंगलों के झुरमुट के बीच 14 बीघा जमीन खरीदकर यहीं अपना आशियाना बना लिया। इसके बाद उन्होंने 222 एकड़ जमीन खरीदकर छोटा हल्द्वानी के नाम से एक गांव ही बसा दिया। जो आज भी 'कार्बेट का गांव' के नाम से जाना जाता है।
जिम आज भी यहां लोगों की यादों व सांसों में बसते हैं। कार्बेट ग्राम विकास समिति की ओर से उनके 142वें जन्मदिन पर ढेरों कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिम कार्बेट संग्रहालय में आयोजित समारोह में वक्ताओं ने कहा कि जिम गरीबों के मसीहा थे। उन्होंने गरीब लोगों को मुफ्त में जमीन दी और उन्हें छोटी हल्द्वानी गांव में ही बसाया। वे उन्हें खेती में भी मदद करते थे। यही नहीं जिम बीमार होने पर उनका उपचार करते और आर्थिक मदद भी देते थे।
मुख्य अतिथि नगर पंचायत अध्यक्ष पुष्कर कंत्यूरा और वन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि जिम कार्बेट ने हमेशा आदमखोर जानवरों का ही शिकार किया। वे लोगों की फसल को भी जानवरों से बचाते थे। वक्ताओं ने कहा कि आजादी के बाद भी जब वे केन्या चले गए तो उनका दिल फिर भी भारतीयों के लिए धड़कता था। केन्या में रहकर भी उन्होंने भारतीयों से प्रेम किया। वे सात समुंदर पार से भी लोगों के हालचाल लेते रहते थे। लोगों की आर्थिक मदद करते रहते थे।
उनके जन्मदिन पर आज छोटा हल्द्वानी में पौधारोपण भी किया गया। इस मौके पर कार्बेट विकास समिति के अध्यक्ष राजकुमार पांडे, मोहन पांडे, इंदर सिंह, प्रकाश छिमवाल, गणेश मेहरा समेत सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण मौजूद थे। (वार्ता)