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कारगिल युद्ध के बाद शुरू हुए थे चौकियों पर कब्जे के प्रयास

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हमें फॉलो करें Kargil war

सुरेश डुग्गर

, शनिवार, 13 अगस्त 2016 (19:23 IST)
श्रीनगर। एलओसी से सटे मच्छेल इलाके में स्थित भारतीय सीमा चौकी पर कब्जा करने की पाकिस्तानी सेना की कोशिश कोई नई नहीं है। कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद हार से बौखलाई पाकिस्तानी सेना ने बॉर्डर रेडर्स टीम का गठन कर एलओसी पर ऐसी बीसियों कमांडों कार्रवाईयां करके भारतीय सेना को जबरदस्त क्षति सहन करने को मजबूर किया है।
26 जुलाई 1999 को जब आधिकारिक तौर पर कारगिल युद्ध की समाप्ति की घोषणा हुई तो उधर पाकिस्तानी सेना ने अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देना आरंभ कर दिया था। उसने त्रिस्तरीय रणनीति बनाई जिसके पीछे का मकसद भारतीय सेना को अधिक से अधिक नुक्सान पहुंचाना तो था ही कश्मीर में भी लोग त्राहि-त्राहि कर उठे थे।
 
कारगिल युद्ध के बाद ही फिदायीनों, मानव बमों के हमलों की भी शुरूआत हुई थी। साथ ही शुरूआत हुई थी भारतीय सीमा चौकिओं पर बार्डर रेडर्स के हमलों की। हालांकि सैन्य सूत्र कहते हैं कि पाकिस्तानी सेना द्वारा गठित बार्डर रेडर्स में आतंकी भी शामिल होते हैं जिन्हें हमलों में इसलिए शामिल किया जाता रहा है ताकि वे कश्मीर में घुसने के बाद वहशी कृत्यों को अंजाम दे सकें।
 
पिछले 17 सालों में कितनी बार पाक सेना के बार्डर रेडर्स ने भारतीय सीमा चौकिओं पर हमले किए कोई आधिकारिक आंकड़ा इसलिए भी मौजूद नहीं है क्योंकि यह भारतीय सेना की नहीं बल्कि भारतीय राजनीतिक नेतृत्व की अक्षमता को दर्शाता था। एक सैन्य सूत्र के मुताबिक :‘भारतीय सैनिक नपंसुक तो नहीं हैं पर उन्हें ऐसा बना दिया गया है जिन्हें आज भी एलओसी पार कर पाक सेना को जैसे को तैसा का सबक सिखाने की अनुमति कभी नहीं मिली है।’
 
इतना जरूर था कि बार्डर रेडर्स के हमले ज्यादातर एलओसी के इलाकों में ही हुए थे। इंटरनेशनल बार्डर पर पाक सेना ऐसी हिम्मत नहीं दिखा पाई थी। जबकि राजौरी और पुंछ के इलाके ही बार्डर रेडर्स के हमलों से सबसे अधिक त्रस्त इसलिए भी रहे थे क्योंकि एलओसी से सटे इन दोनों जिलों में कई फारवर्ड पोस्टों तक पहुंच पाना दिन के उजाले में संभव इसलिए नहीं होता था क्योंकि पाक सेना की बंदूकें आग बरसाती रहती थी।
 
बार्डर रेडर्स के हमलों को कश्मीर सीमा पर स्थित सैन्य पोस्टों में तैनात जवानों ने भी सीजफायर से पहले की अवधि में सहन किया है। सैन्य अधिकारियों के मुताबिक, भारतीय इलाके में घुस कर भारतीय जवानों के सिर काट कर ले जाने की  घटनाओं को भी इन्हीं बॉर्डर रेडर्स ने अंजाम दिया था। जबकि 9 साल पहले उड़ी की एक उस पोस्ट पर कब्जे की लड़ाई में भारतीय वायुसेना को भी शामिल करना पड़ा था जिसे भारतीय सैनिकों ने भयानक सर्दी के कारण खाली छोड़ दिया था।
 
फिलहाल सेना ऐसे हमलों और उसमें हताहत होने वाले भारतीय जवानों की संख्या मुहैया करवान से इंकार करती आई है जिन्हें पाक सेना की बार्डर रेडर्स ने अंजाम दिया था। पर वे दबे स्वर में इसे जरूर स्वीकार करते थे कि बार्डर रेडर्स अधिकतर पाक सेना के वे कमांडों होते हैं जिन्हें नए इलाको ंमें तैनात किया जाता है और अब यह हमले उनके प्रशिक्षण का हिस्सा बना दिए गए हैं।

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