Karnataka High Court plea regarding matrimonial matters: कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) ने कहा है कि शादी से जुड़े मामलों की सुनवाई और निपटारा युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए, क्योंकि मानव जीवन छोटा है और संबंधित पक्षों को नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत भी करनी होती है। अदालत (Court) ने 2016 में अपनी शादी को खत्म/अमान्य घोषित करने के अनुरोध को लेकर उसका रुख करने वाले एक युवक की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि उच्चतम न्यायालय ने त्वरित न्याय के अधिकार को अनुच्छेद-21 के तहत संवैधानिक गारंटी के रूप में मान्यता दी है और इसलिए मामले के जल्द निपटान के लिए एक निर्देश जारी किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित ने हाल में पारित आदेश में कहा कि अदालत इस बात से सहमत है कि शादी से जुड़े मामलों का त्वरित निपटान कम से कम इसलिए जरूरी है, क्योंकि मानव जीवन छोटा होता है। इतिहासकार थॉमस कार्लाइल को उद्घृत करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि जीवन बेकार की जीचों और भावनाओं पर समय गंवाने के लिए बहुत छोटा है।
उसने कहा कि जब शादी से जुड़े किसी मामले में शादी को समाप्त/अमान्य घोषित करने का अनुरोध शामिल हो तो अदालतों को एक साल की सीमा के भीतर इसका निपटारा करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए ताकि ऐसा आदेश देने की स्थिति में संबंधित पक्ष नए सिरे से अपने जीवन की शुरुआत कर सकें। यह कहने की जरूरत नहीं है कि जिंदगी जीने में बीत जाती है। यह भी बताने की जरूरत नहीं है कि ऐसे मामलों के निपटारे में देरी से संबंधित पक्षों पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
उच्च न्यायालय ने परिवार अदालत को 7 साल पुराने मामले को 3 महीने के भीतर निपटाने का निर्देश दिया। उसने रजिस्ट्रार जनरल से फैसले को सभी संबंधित लोगों के बीच प्रसारित करने को कहा ताकि समान परिस्थिति वाले अन्य वादी अपने मामले के शीघ्र निपटारे के लिए बेवजह इस अदालत का रुख न करें।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta