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अफीम की खेती कश्मीरियों को कर रही 'मालामाल'

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सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर। 27 सालों से बंदूकों की खेती में उलझे हुए कश्मीरियों को अब अफीम की खेती मालामाल कर रही है। धान और अन्य पैदावारों में की जाने वाली मेहनत से कहीं कम की मेहनत पर मिलने वाली कमाई अब उन्हें अफीम की खेती दिला रही है। यही कारण है एक्साइज विभाग को जहां पहले 2-3 गांवों में इससे जूझना पड़ता था अब उन्हें प्रतिवर्ष 50-60 गांवों में अफीम की खेती से लबालब खेतों में फसलों को नष्ट करना पड़ता है।
ताजा घटनाक्रम में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की जम्मू इकाई ने राज्य आबकारी विभाग तथा पुलिस की सहायता से कश्मीर घाटी के अनंतनाग, पुलवामा तथा बडगाम जिला में लगभग चार हजार कनाल से अधिक भूमि पर फैली अवैध अफीम की फसल को एक विशेष अभियान चलाकर नष्ट किया गया है। 
 
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अनुसार, विभाग तथा अन्य संबंधित एजेंसियों ने एक संयुक्त अभियान चलाकर बांडीपोरा, चकोरा, लदरमट, कंगन, गोबरीपोरा, वनगाम, कावानी तथा अन्य क्षेत्रों में लगी अवैध अफीम की खेती को ट्रैक्टर, मजदूरों तथा स्थानीय लोगों की सहायता से नष्ट किया। 
 
इन जगहों पर अफीम को अंतरराष्ट्रीय मार्केट में महंगे दामों पर बेचने के उद्देश्य से लगाया जा रहा था। खेती के बकायदा उन्नत तथा संशोधित बीजों का प्रयोग किया जा रहा था, ताकि अफीम की अधिक से अधिक खेती मुमकिन हो पाए और अच्छे दामों पर बिक पाए। 
 
कश्मीरी अफीम की खेती अकसर जंगलों में करते हैं ताकि किसी को भनक न लगे। अभियान के दौरान तस्करों ने विभाग को रोकने के लिए प्रदर्शन भी किया, पर पुलिस की मौजूदगी ने बाधा को टाल दिया। गौरतलब है एनसीबी टीम को काफी समय से इसकी शिकायतें मिली थीं।
 
यह भी सच है कि अधिकतर अफीम के खेत केसर क्यारियों में ही उगाए जा रहे हैं। अवंतिपोरा के पुलिस अधीक्षक भी मानते हैं कि केसर जैसी महंगी फसल भी अब कश्मीरियों को आकर्षित इसलिए नहीं कर पा रही क्योंकि यह बहुत समय लेती है और हमेशा ही इस पर मौसम की मार भी अपना असर दिखाती है।
 
ऐसे में बिना किसी मेहनत, बिना पानी देने की परेशानी के पैदा होने वाली और केसर की फसल से कहीं अधिक धन दिलाने वाली अफीम की खेती अब केसर क्यारियों का स्थान ले रही है। नतीजतन एक्साइज विभाग तथा पुलिस के लिए दिन-ब-दिन अफीम की खेती के बढ़ते रकबे पर इसकी पैदावार को रोक पाना मुश्किल होता जा रहा है।
 
पिछले साल करीब 210 एकड़ क्षेत्रफल में अफीम की खेती को नष्ट किया गया था। बाकी आतंकी दबाव के चलते और कुछ स्थानों पर गठजोड़ के चलते ऐसा नहीं हो पाया था। एक्साइज विभाग तथा पुलिस के लिए भी यह पेशा धन दिलाने वाला है और आतंकवादी वैसे भी नशीले पदार्थों के व्यापार के जरिए अब बंदूकों की खेती कर रहे हैं यह कोई छुपी हुई बात नहीं रही है।
 
अधिकारियों के बकौल, किसानों को अफीम की खेती करने के लिए आतंकवादियों तथा तस्करों द्वारा उकसाया जा रहा है और किसानों को इसके लिए कई 100 गुना कीमत भी अदा की जा रही है अर्थात जितना धन वे अन्य फसलों से एक खेत में उगा कर कमांएगें उससे कई गुना अधिक।
 
‘ऐसे में कोई इस सुनहरे मौके को क्यों छोड़ना चाहेगा,’एक्साइज विभाग के डिप्टी कमिश्नर कहते थे जिनके मुताबिक, अफीम की खेती में ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती है और फिर आतंकी धमकी तथा मिली-भगत के कारण वह बच भी जाती है। स्थिति यह है कि इस बार सैंकड़ों हेक्टर में लगी हुई अफीम की फसल को नष्ट करने में एक्साइज विभाग को परेशानियों का सामना करना पड़ा है और वह अभी तक चौथाई हिस्सा भी तबाह नहीं कर पाया है।

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