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कश्मीर में आतंकियों को मिल रहा स्थानीय सहयोग, सेना की मुश्किल

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सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर , बुधवार, 17 मई 2017 (20:11 IST)
श्रीनगर। कश्मीर के हालात के 1990 के दशक में पहुंचने का परिणाम है कि तलाशी अभियानों की बाढ़ आ चुकी है। इन्हें पुलिस या अन्य अर्द्धसैनिक बल अंजाम नहीं दे रहे हैं बल्कि सेना द्वारा सीधे अभियान चला रही है। हालांकि अपने अभियानों के दौरान सेना को पत्थरबाजों को भी सहन करना पड़ रहा है जिससे खतरा यह पैदा हो गया है कि पत्थरबाजों से निपटने का प्रशिक्षण न होने से उन पर सीधे गोली चलाने के हालात भी बनने लगे हैं।
 
दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में आतंकियों की मौजूदगी की सूचना मिलने के बाद सेना ने बुधवार को जिले में घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू कर दिया था, लेकिन भीड़ के पथराव और आतंकियों या उनके अड्डों का पता लगाने में नाकामी के बाद उन्होंने अभियान वापस लेना पड़ा। सेना के एक अधिकारी ने बताया कि तलाशी अभियान शोपियां के जैनापोरा इलाके के अंतर्गत आने वाले हेफ गांव में शुरू किया गया था। अधिकारी ने बताया कि सुरक्षाबल के जवान बड़ी संख्या में इस तलाशी अभियान में शामिल हुए थे। यह अभियान आज तड़के शुरू हुआ था।
 
पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि स्थानीय निवासियों की ओर से सुरक्षाबलों पर पथराव किए जाने के चलते अभियान बाधित हुआ। उन्होंने कहा कि पत्थरबाजों को हटाने के लिए अतिरिक्त सुरक्षाकर्मी इस इलाके में बुलाए गए हैं। उन्होंने कहा कि पत्थरबाजों और सुरक्षाबलों के बीच हुई झड़पों में फिलहाल किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। उन्होंने बताया कि बल कोई आतंकवादी या उनके ठिकाने नहीं ढूंढ पाए। इसलिए अभियान वापस ले लिया गया।
 
इस तलाश अभियान से दो सप्ताह पहले भी आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए एक ऐसा ही, लेकिन ज्यादा बड़े स्तर का तलाशी अभियान शोपियां जिले में चलाया गया था। चार मई को लगभग दो दर्जन गांवों में पूरे दिन चले तलाश अभियान में सुरक्षा बलों को कुछ नहीं मिला। इस अभियान में 4000 से ज्यादा सैनिक शामिल थे। उस दिन आतंकियों ने अभियान से लौटते सेना के गश्ती दल पर हमला कर दिया। इसमें एक टैक्सी चालक की मौत हो गई और कई सुरक्षाकर्मी घायल हो गए।
 
दक्षिण कश्मीर में ये तलाशी अभियान दरअसल इसलिए चलाए जा रहे हैं क्योंकि सोशल मीडिया पर आतंकियों के बड़े-बड़े गिरोहों के वीडियो सामने आ रहे हैं। कई दलों में तो आतंकियों की संख्या 30 तक भी है। यह स्थिति तब है, जब अधिकारियों ने ऐसी 22 वेबसाइट और एप्लीकेशन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि ये वीडियो दक्षिण कश्मीर में, खासतौर पर शोपियां जिले में फिल्माए गए हैं।
 
ऐसे हालात पीडीपी-भाजपा सरकार से पहले नहीं थे। अब तो ऐसे लगता है जैसे राज्य सरकार भी इसमें अपना पूरा सहयोग दे रही है,’ उस पुलिस अधिकारी का नाम न छापने की शर्त पर कहना था जो पिछले 25 सालों से आतंकवाद विरोधी अभियानों से जुड़ा हुआ था।
 
हालांकि हालात पर काबू पाने की खातिर 4 मई को 25 सालों के बाद 20 से अधिक गांवों में सामूहिक तलाशी अभियान छेड़कर सरकार ने अपने सख्त होने का संकेत दिया था, लेकिन भीतर से आने वाली खबरें कहती हैं कि सेना और अन्य सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई से पीडीपी के कुछ नेता कथित तौर पर नाराजगी प्रकट कर चुके हैं।
 
स्पष्ट शब्दों में कहें तो कश्मीर के हालात हाथों से खिसक चुके हैं। खतरा आंतरिक युद्ध का है। आम कश्मीरी दो पाटों में बुरी तरह से फंस चुका है। एक ओर उसके लिए कुआं है तो दूसरी ओर खाई। यह भी सच है कि जिस तरह से जनसमर्थन उभरकर आतंकियों के पक्ष में जा रहा है, हालात को थामना मुश्किल इसलिए होता जा रहा है क्योंकि एक बार फिर कश्मीर के आतंकवाद और आंदोलन की कमान स्थानीय आतंकियों के हाथों में है।
 
स्थानीय युवकों के अधिक से अधिक संख्या में आतंकवाद में शामिल होने का कारण है कि लोगों की सहानुभूति एक बार फिर उनके साथ है। कश्मीर पुलिस के अधिकारी मान रहे हैं कि कश्मीर में सक्रिय 300 के करीब आतंकियों में आधे से अधिक स्थानीय हैं, जिनको पकड़ पाना लोकल स्पोर्ट के कारण कठिन हो गया है। जानकारी के लिए ऐसा ही 1990 के दशक में होता था।

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