लखनऊ। समाज को बांटने की राजनीति के चलते एक बार फिर मायावती सड़कों पर उतरेंगी। बौद्ध धर्म अपना चुकी बहुजन समाज पार्टी की मुखिया 23 साल बाद वे मंगलवार को दिल्ली से सहारनपुर तक सड़क मार्ग से यात्रा करेंगी। वे शब्बीरपुर गांव के पीड़ित दलित परिवारों से मिलेगीं। वह सहारनपुर हिंसा मामले को भी तुल देने का प्रयास करेंगी। 1994 के गेस्ट हाउस कांड के बाद से मायावती ने कभी इतनी दूरी सड़क मार्ग से नहीं तय की है।
उल्लेखनीय है कि 5 मई को सहारनपुर के शब्बीरपुर में महाराणा प्रताप शोभायात्रा के दौरान डीजे बजाने से रोकने पर हिंदू समाज के दलितों और ठाकुरों के बीच झड़प हो गई थी। जिसमें ठाकुर समाज के एक युवक की मौत हो गई थी। घटना के बाद दलितों के 60 से ज्यादा मकान जला दिए गए थे और कई वाहन फूंक दिए थे। अब इस मामले को राजनीतिक और जातीय रंग दिया जाएगा।
मायावती पहले 2012 का विधानसभा चुनाव हारीं थी, फिर 2014 का लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकीं और इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में अधिकतर मुस्लिमों को टिकट देकर बुरी तरह से हार का सामना करने के बाद माना जा रहा है कि यह मायावती का सियासी दांव है। वे इस यात्रा के बहाने एक बार फिर दलितों का भरोसा जीतने और उन्हें एकजुट करने की जुगत में हैं ताकी फिर से सत्ता हथियाई जा सके।
हाल के विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद पार्टी के भीतर मायावती के खिलाफ आवाज उठ रही थी और उन पर दलित सरोकारों से विमुख होने का आरोप लग रहा था। इसी के चलते मायावती ने एक बार फिर हिंदू समाज में नफरत फैलाकर दलितों का वोट हासिल किए जाने की जुगत शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि मायावती दलितों का उपयोग केवल वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं और इस वोट बैंक का सौदा कर दूसरे समुदायों के जरिए सत्ता तक पहुंचना उनका लक्ष्य रह गया है।
दलितों का भरोसा जीतने के लिए आखिर में नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से बाहर कर मायावती ने यह संदेश देने की कोशिश भी की है कि उनके लिए दलित और पार्टी ज्यादा अहम है न कि व्यक्ति, चाहे वह उनका बेहद करीबी ही क्यों न हो, लेकिन टिकटों को बेचने का आरोप झेल रही आखिर क्या इस यात्रा से दलितों को अपने पक्ष में कर पाएगी?