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'घराना' में सुकून महसूस कर रहे हैं प्रवासी पक्षी

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सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर। सर्दियों की शुरुआत के साथ ही राज्य में आने वाले मेहमान प्रवासी पक्षियों की संख्या अगर कश्मीर घाटी में रिकार्ड तोड़ने लगी है तो भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित घराना वेटलेंड में इस बार भी कुछ अलग ही नजारा है। झुंड के झुंड प्रवासी पक्षियों के जमा हुए हैं। कुछ क्षण के लिए वे हवा में उड़ान भरते हैं और फिर पुनः वहीं लौट आते हैं। उनकी चहचहाट से यह महसूस किया जा सकता है कि वे सीमा पर चल रहे युद्धविराम से सुकून पा रहे हैं।
 
होकरसर स्थित वाइल्ड लाइफ वेटलेंड वार्डन के मुताबिक, इस वेटलेंड में इस बार 15 सितम्बर से ही प्रवासी पक्षियों का आना आरंभ हो गया था और अभी तक 8 लाख के करीब आए पक्षी नया रिकार्ड बना चुके हैं। अभी तक यही होता आया था कि पक्षियों की इतनी संख्या जनवरी में जाकर कहीं होती थी।
 
कश्मीर में यह वेटलेंड सबसे बड़ा माना जाता है। हालांकि इसके आसपास तीन और छोटे-छोटे वेटलेंड हैं पर खाने की समस्या के कारण प्रवासी पक्षी यहीं पर डेरा जमाना अच्छा समझते हैं। वैसे सरकारी रिकार्ड के मुताबिक, यह वेटलेंड सही मायनों में करीब 14 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है पर अतिक्रमण का नतीजा यह है कि यह अब 4 से 5 वर्ग किमी के बीच ही सिमटकर रह गया है।
 
कश्मीर के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन कहते थे कि पिछले कुछ समय से वन्य जीव विभाग की ओर से प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं और इन कोशिशों के परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। वैसे कश्मीर में पारा धीरे-धीरे जमाव ‍बिंदु तक पहुंचने लगा है और ऐसे में कश्मीर के अलग-अलग वेटलेंड पर लगभग 8 लाख के करीब प्रवासी पक्षी भी पहुंच चुके हैं जिन्हें कश्मीर की सर्दी कुछ ज्यादा ही भाने लगी है। ये मेहमान पक्षी रूस, साईबेरिया, मध्य एशिया और अन्य मुल्कों से आए हैं।
 
हालांकि वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि घाटी में आने वाले मेहमान पक्षियों की संख्या में गिरावट आ रही है। उनका कहना है कि वेटलैंड के आसपास लगातार हो रहे अतिक्रमण और तेजी से हो रहा शहरीकरण इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है, लेकिन वन्य जीवन वार्डन का कहना है कि विभाग की तरफ से लगातार कोशिशें की जा रही हैं ताकि मेहमान पक्षियों की संख्या में वृद्धि होती रहे। 
 
हाकसार, वुल्लर झील, हायगाम, मीरगुंड और शैलाबाग जैसे कई ऐसे इलाके हैं जहां पर ये मेहमान पक्षी अपना डेरा डाले हुए हैं। हाकसार के वन्य जीव वार्डन का कहना था कि ये मेहमान पक्षी नवंबर से फरवरी तक चार माह की अवधि के लिए ही इन स्थानों पर ठहरते हैं। इसके बाद आमतौर पर ये पक्षी अपने पुराने स्थानों की ओर लौटना शुरू कर देते हैं। यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों में ब्राह्णी बतख, टफड बतख, गड़वाल कामन पाक हार्ड, मिलार्ड, गैरेनरी, रैड करासड कामन टीट आदि शामिल हैं।
 
दूसरी ओर आग उगलने वाली जम्मू कश्मीर की सीमाओं पर जम्मू से करीब 34 किमी की दूरी पर भारत पाक सीमा रेखा से करीब 600 मीटर पीछे स्थित घराना बर्ड सेंचुरी का अस्तित्व अभी तक खतरे में माना जा रहा था। ऐसा इसलिए था क्योंकि जहां पाकिस्तानी गोलीबारी निरंतर प्रवासी पक्षियों के अमन में खलल डाल रही थी वहीं सीमांत क्षेत्रों में दबाई गई बारूदी सुरंगों के विस्फोट उन्हें शांति से यहां रुकने नहीं दे रहे थे। मगर अब कुछ ऐसा नहीं है।
 
पिछले 12 साल से अमन-चैन का आनंद प्रवासी पक्षी भी उठा रहे हैं और इस बार उनकी तादाद को देख यह लगता है जैसे वे अपने अन्य साथियों को संदेशे भिजवा रहे हैं- ‘अमन ने पांव पसारे हैं आप भी चले आओ।’
 
अभी तक सीमा पर बने हुए तनाव का परिणाम इन प्रवासी पक्षियों को भी भुगतना पड़ रहा था। चीन, अफगानिस्तान, रूस, साईबेरिया इत्यादि के शीत प्रदेशों से आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या अभी तक नगण्य ही थी जिसमें होने वाली बढ़ोतरी गांववासियों के साथ-साथ सैनिकों में भी खुशी ला रही है।

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