श्रीनगर। 26 सालों के आतंकवाद के दौर में कश्मीर में लापता हुए व्यक्तियों की संख्या को लेकर फिर से बवाल मचना आरंभ हो गया है। राज्य सरकार ने मात्र 2500 लोगों के लापता होने की बात स्वीकार की है जबकि लापता होने वाले लोगों के संगठन एसोसिएशन ऑफ डिस्पीअर्ड पर्सनस का दावा है कि कश्मीर से 15 हजार से अधिक लोग लापता हुए हैं।
कश्मीर से लापता होने वालों का आंकड़ा सभी सरकारों के लिए सिरदर्द रहा है। तत्कालीन मुफ्ती सरकार ने हालांकि लापता होने वालों की संख्या करीब 2 हजार स्वीकार की थी तो उमर सरकार पुलिस रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहती थी कि इनकी संख्या 2500 से अधिक नहीं है।
असल में कश्मीर में लापता होने का सिलसिला आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही शुरू हो गया था। हालांकि सुरक्षाबलों का कहना था कि संगठन द्वारा जो 15 हजार का आंकड़ा लापता होेने वालों का बताया जा रहा है उन मंे से अधिकतर सीमा के उस पार आतंकवाद का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए जा चुके हैं। अतः पुलिस रिकार्ड में उनका नाम लापता होने वालों की सूची में नहीं है।
पर लापता लोगों के परिजन इसे स्वीकार करने को राजी नहीं हैं। वे आरोप लगाते हैं कि उनके परिजनों को सुरक्षाबल गिरफ्तार करके ले गए थे और आज तक वे वापस नहीं लौटे हैं। संगठन के मुताबिक, लापता होने वालों में 3 साल के बच्चे से लेकर 90 साल तक के बुजुर्ग भी शामिल हैं और उनकी लापता होने की अवधि 6 माह से लेकर 19 साल तक है।
लापता लोगों के मामले पर कई बार राज्य में हंगामा हो चुका है। उनके परिजनों द्वारा विरोध प्रदर्शन और धरने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। इतना जरूर है कि इन परिजनों को अपने खोए हुए रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों के वापस लौटने की आस आज भी है।
यही कारण था कि बारामुल्ला की रशीदा अपने पति की वापसी की उम्मीद में अभी भी श्रीनगर के लाल चौक में होेने वाले धरने में अक्सर अपने बच्चों के साथ आ जुटती है। उसका पति रफीक अहमद 16 साल पहले सुरक्षाबलों की हिरासत से लापता हो गया था। सुरक्षाधिकारी कहते थे कि उन्होंने पूछताछ के बाद उसे रिहा कर दिया था पर वह आज तक अपने घर वापस नहीं पहुंचा है। ‘उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया,’रशीदा रूआंसी हालत में सवाल करती थी पर अन्य परिजनों के सवालों की ही तरह उसके सवाल का भी कोई जवाब नहीं मिल पा रहा था।