लखनऊ। ऑल इंडिया मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड ने देश में शरई कानूनों की हिफाजत के लिए चलाए जा रहे हस्ताक्षर अभियान को महिलाओं को 'गुमराह' करने वाला करार देते हुए रविवार को कहा कि बेहतर होता, अगर इस मुहिम में इस्तेमाल किए जा रहे दस्तावेज में तलाक के मामलों का हल सिर्फ कुरान शरीफ में दी गई व्यवस्थाओं के अनुरूप ही कराने का इरादा भी जाहिर किया जाता।
ऑल इंडिया मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर ने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा विधि आयोग की प्रश्नावली के जवाब में देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के लिए जो हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है वह महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें 'गुमराह' करने के लिए है।
उन्होंने कहा कि अगर बोर्ड इस बात के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाता कि वह कुरान शरीफ में उल्लिखित व्यवस्था को उसकी आत्मा के साथ स्वीकार करता है और उसे एक ही सांस में तीन बार दिया गया तलाक मंजूर नहीं है, साथ ही ऐसा करने वालों को सजा दी जाएगी, तो बेहतर होता।
शाइस्ता ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं उलमा द्वारा बनाए गए कानून के बजाय कुरान शरीफ में दिए गए प्रावधानों के आधार पर ही तलाक, खुला और हलाला के मसलों को निपटाने की व्यवस्था चाहती हैं। इससे मुस्लिम पर्सनल लॉ की मूल भावना के साथ कोई छेड़छाड़ भी नहीं होगी।
इस अभियान में सभी मुस्लिम औरतों और मर्दों से देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ में किसी भी तरह के बदलाव की जरूरत से इंकार तथा देश में समान नागरिक संहिता नामंजूर होने की घोषणा लिखे दस्तावेज पर दस्तखत कराए जा रहे हैं। विधि आयोग की प्रश्नावली के जवाब में बोर्ड द्वारा जारी किए गए वे दस्तावेज हस्ताक्षरित होने के बाद आयोग को सौंपे जाने हैं।
शाइस्ता ने कहा कि बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं को दारल क़ज़ा (शरई अदालतों) से इंसाफ नहीं मिल पाता है और अक्सर वे एकपक्षीय फैसलों की शिकार हो जाती हैं। ऐसे में उनके पास अन्य अदालतों में जाने का ही विकल्प बचता है, जब वे ऐसा करती हैं तो इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलंदाजी करार दिया जाता है। ऐसे में यह जरूरी है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उन महिलाओं की मजबूरी को समझे और शरई कानूनों को कुरान शरीफ की विभिन्न आयतों में दी गई व्यवस्थाओं के अनुरूप संशोधित करे।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड यह चाहता है कि महिलाओं को तीन तलाक से आजादी मिले और बाकी पत्नियों से इजाजत लिए बगैर बहुविवाह करने वालों को सजा की व्यवस्था की जाए। महिलाओं को भी 'ख़ुला' लेने की पूरी आजादी मिले और उसमें रोड़े ना अटकाए जाएं।
शाइस्ता ने कहा कि बोर्ड को चाहिए कि वह तलाक के बाद दर-दर भटकने को मजबूर महिलाओं के लिए एक 'बैतुल माल' की व्यवस्था करे जिससे उन औरतों का भरण-पोषण हो सके। (भाषा)