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पाक गोलीबारी से प्रभावित सीमावर्ती गांव

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सुरेश डुग्गर

, सोमवार, 24 अक्टूबर 2016 (20:05 IST)
हीरानगर सेक्टर के क्षेत्रों से (जम्मू फ्रंटियर)। इंटरनेशनल बॉर्डर की जीरो लाइन से मात्र 300 मीटर की दूरी पर स्थित जस्सो चक में कुल 25 घर हैं और मात्र तीन परिवार ही अभी टिके हुए हैं। इनमें दो सेवानिवृत्त सैनिकों के परिवार हैं और बाकी ने सुरक्षित स्थानों या फिर अपने रिश्तेदारों के पास शरण ले रखी है। यही दशा हीरानगर सेक्टर के करीब 27 गावों की है, जहां के करीब 6000 परिवार परिवार पलायन कर चुके हैं। अगर देखा जाए तो गोलाबारी से प्रभावित सभी गांवों में यही दृश्य नजर आ रहे हैं।
सेवानिवृत्त सैनिक हवालदार ज्ञानचंद के मकान की सभी दीवारों में हुए छेद पाक गोलीबारी की भयानकता को दर्शाते हैं। उसके घर में टेलीफोन के लिए लगा टावर भी क्षतिग्रस्त हो चुका है, क्योंकि पाक सैनिक उसे सैनिक संचार तंत्र समझ अपनी गोलीबारी का निशाना बनाते रहे हैं और बिना चारदीवारी के घर में कोई ऐसी रोक नहीं है जो इन गोलियों की बरसात से मुक्ति दिला सके। 
 
जब पत्रकारों के दल ने टेलिफोन टावर के पास खड़ा होना चाहा तो उन्हें मना कर दिया गया क्योंकि इस घर की सीध में सामने 300 मीटर की दूरी पर पाक सैनिकों को हलचल करते देख सभी पत्रकारों को अंदर लिवा लिया पाकिस्तानी बस हलचल को देखते ही अपनी बंदूकों के मुहं खोल देते हैं।
 
कुछ दिनों तक रात में गोलीबारी होने के कारण इन लोगों ने कमरों में जमीन पर सो कर रातों को गुजारा था और अब दिन में भी लगातार गोलीबारी होने के कारण उनकी जिंदगी थम-सी गई है। वे अब अपनी कमर सीधी करने के लिए बरामदे में भी टहल नहीं सकते हैं, क्योंकि घरों की चारदीवारी ऊंची न होने और घरों के मुख सीधे पाक सीमा चौकी की ओर होने से वे पाक गोलीबारी का निशाना बड़ी आसानी से बन रहे हैं। और जो अधिक परेशान हो गए उन्होंने पलायन का रास्ता अपना लिया।
 
खाली पड़े घरों में पशु अभी बंधे हुए हैं क्योंकि उन्हें अपने साथ ले जाना संभव नहीं है और ये पशु पिछले कई दिनों से भूखे भी हैं क्योंकि कुछेक के मालिक वापस नहीं लौटे हैं और जिनके मालिक आते भी हैं या अभी गांवों में ही हैं वे उनके लिए चारे का प्रबंध नहीं कर पा रहे हैं। 
 
पाक गोलीबारी ने इतनी मुश्किलें पैदा कर दी हैं कि किसान अपने खेतों में नहीं जा पा रहे हैं। इन किसानों का कहना था कि पहले बीएसएफ के जवान उन्हें अपने सीमावर्ती खेतों में जाने की अनुमति देते थे और एक पर्ची काटकर उनकी जिम्मेदारी भी उठाते थे लेकिन अब तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि जो भी अपने खेतों में जाएगा वह अपनी इच्छा से जाएगा। नतीजतन पिछले कई दिनों से खेतों का रुख न किए जाने से पशुओं के चारे का प्रबंध भी नहीं हो पाया है और यह स्थिति कब तक चलेगी कोई निश्चित नहीं है।
 
पाक गोलीबारी से प्रभावित गांवों से पलायन करने वालों ने इसलिए मजबूरन यह रास्ता अपनाया क्योंकि उनके छोटे-छोटे बच्चे इससे भयभीत हो गए थे और उन्हें घूमने फिरने से रोक पाना कठिन होता जा रहा था। इन बच्चों ने पिछले तीन सप्ताह से स्कूल का मुख भी नहीं देखा है क्योंकि इन गांवों में स्थित स्कूल खुले में हैं और कोई चारदीवारी न होने से वे पाक सैनिकों की गोलियों रेंज में हैं और वहां पढ़ाने वाले अध्यापक किसी प्रकार का खतरा मोल लेने को तैयार नहीं हैं। 
 
जस्सो चक का गोपाल इस प्रकार की जिन्दगी से बहुत ही परेशान हो गया है और वह कह उठता हैः‘ऐसे जीने में कोई स्वाद नहीं रह गया है क्योंकि कईयों के परिवारों में बच्चे कहीं पर हैं और मां-बाप कहीं पर।’ हीरानगर सेक्टर की सीमा चौकियों पर खड़े होकर अगर पाक क्षेत्रों पर एक नजर डाली जाए तो सिर्फ सैनिक हलचल के कुछ भी नजर नहीं आता। सामने स्थित गंडियाल, करताल, रंगोर, डुंडियाल, सुंजाल के पाक गांवों में आम नागरिक कहीं भी नहीं दिखते जिससे स्पष्ट होता है कि पाक सेना ने अपने गांवों को पहले ही खाली करवाया हुआ है और उसने यह सब तैयारी बहुत पहले कर ली थी। असल में पाक गांव जीरो लाइन से मात्र सौ-दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित हैं।


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