Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

समय से पहले बर्फबारी ने दी दस्तक कश्मीर और लद्दाख में, न नागरिक तैयारी कर पाए और न ही सेना

Advertiesment
हमें फॉलो करें समय से पहले बर्फबारी ने दी दस्तक कश्मीर और लद्दाख में, न नागरिक तैयारी कर पाए और न ही सेना
webdunia

सुरेश एस डुग्गर

, मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021 (17:48 IST)
जम्मू। इस बार कश्मीर के साथ साथ लद्दाख सेक्टर में बर्फ ने समय से बहुत पहले दस्तक क्या दी, कारगिल और द्रास के नागरिकों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच आईं। ऐसा ही हाल उन सैनिकों का है, जो चीन सीमा पर चीन की बढ़त व घुसपैठ को रोकने की खातिर तैनात किए गए हैं। चिंता का कारण स्पष्ट है। न ही नागरिक व नागरिक प्रशासन कोई तैयारी कर पाया और न ही तैनात सैनिकों को सर्दी से बचाने की खातिर तैयारी पूरी की जा सकी है।
 
अक्सर नवंबर 15 के बाद कारगिल और द्रास समेत लद्दाख के पहाड़ों पर बर्फबारी आरंभ होती थी लेकिन इस बार 23 अक्टूबर को ही इसकी दस्तक ने सभी को चौंकाया है। द्रास स्थित प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि चीन सीमा पर सैनिकों की तैनाती की कवायद में ही जुटे रहने के कारण वे कारगिल व द्रास के नागरिकों के लिए सर्दी में की जाने वाली तैयारियां ही आरंभ नहीं कर पाए। नतीजतन, राजमार्ग के बंद होने की चिंता के कारण अब सारा जोर वायुसेना पर आ पड़ेगा।
 
यही दशा लद्दाख में चीन सीमा पर तैनात किए गए 2 लाख के करीब भारतीय जवानों के प्रति भी है जिनके लिए सर्दियों के लिए आवश्यक सामान की आपूर्ति का काम भी अभी अधूरा है। सप्लाई के साथ साथ भयानक सर्दी से बचाने की खातिर मुहैया करवाएजाने वाले कपड़े इत्यादि की अभी भी कमी महसूस की जा रही है, जो सभी तक नहीं पहुंच पाए हैं।
 
हालांकि इस परिस्थिति का सामना करने की खातिर सेना ने अब अग्रिम चौकियों पर अधिक से अधिक जवानों को रोटेशन के आधार पर तैनात करना आरंभ किया है। ऐसा ही चीन भी कर रहा है, जो प्रत्येक चौकी में जवानों को 3 से 4 दिन ही तैनात करते हुए फिर उन्हें बैरकों में वापस बुला रहा है।
 
सूत्र मानते हैं कि लद्दाख में सर्दी अपने भयानक रूप में दस्तक दे चुकी है ओर ऐसे में दोनों मुल्कों की सेनाएं अपने जवानों का मनोबल बढ़ाने की कोशिश में जुटी हैं। अधिकारी कहते थे कि प्रकृति के स्वरूप को लेकर वे कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते हैं।
 
वे इसका खामियाजा सियाचिन हिमखंड में शुरू के सालों में भुगत चुके हैं, जब 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने इसे अपने कब्जे में लिया था। यह भी सच है कि आज भी सियाचिन हिमखंड में सबसे अधिक नुकसान कुदरत के कारण सहन करना पड़ रहा है और भारतीय सेना चीन सीमा पर इसे दोहराना नहीं चाहती है।(फ़ाइल चित्र)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ग्राहक की फुर्ती से 8 सेकंड में भाग खड़े हुए चोर