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यहां बेटियों के 'जिस्म' से पलता है परिवार...

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-धर्मेन्द्र सांगले
यह अपनी बेटियों के जिस्म को बेचकर पेट पालने वाली एक ऐसी जाति का काला सच है, जिसकी दास्तां सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। हालांकि है यह बहुत ही कड़वी हकीकत। कई सरकारें आईं और चली गईं मगर कोई भी समाज के इस बदनुमा दाग को नहीं मिटा सकी।
 
हैरानी इस बात की भी है कि कुप्रथा खत्म होने के बजाय अब हाईप्रोफाइल और हाईटेक होती जा रही है। जिस्म बेचने वाली लड़कियों को बाकायदा स्टाइलिश हेयर कट, कास्ट्यूम, स्मार्टफोन इस्तेमाल कर अपना रहन-सहन बदलने की टिप्स दी जा रही है ताकि उन्हें अच्छे ग्राहक मिल सकें। 
मंदसौर-नीमच और रतलाम जिले में रहने वाली बांछडा जाति पंरपरा के नाम पर ऐसी घिनौनी कुप्रथा ढो रही है, जिसे भारतीय समाज कभी स्वीकार नहीं कर सकता। इस इलाके में बरसों से इनके डेरों पर जिस्मफरोशी की जाती रही है। एक लंबा वक्त गुजर जाने के बाद लगता था कि अब ये घिनौना करोबार बंद या कम हो चुका होगा, लेकिन जो देखने को मिला वह वाकई चौंकाने वाला था। 
 
अब तो जिस्म का ये बाजार बढ़ा ही नहीं है बल्कि नए ट्रेंड्स के साथ पूरे शबाब पर पंहुच चुका है। यहां तक कि इस समाज में लड़कियां पैदा होने की मन्नतें की जाती हैं। लड़की पैदा होते ही उसकी परवरिश बेहद खास तरीके से की जाती है। इस समाज में लड़कियां पैदा होना किसी लॉटरी से कम नहीं माना जाता। महज दस साल की उम्र में इन्हें उन लोगों के सामने परोस दिया जाता है जो हवस के भूखे होते हैं। 
 
जब पहली बार धंधे में उतरती हैं लड़कियां... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 
 

पहली बार धंधे में उतारने के लिए बाकयदा एक रस्म अदा की जाती है। शौकिया धन्ना सेठों या इलाके के अफीम तस्कर इनकी बोली लगाकर इनके साथ पहली रात गुजारते हैं। घर-परिवार को इस रात के बदले मोटी रकम अदा की जाती है। इसे नथ उतारना कहा जाता है। इस दिन से लड़की खिलावड़ी कहलाने लगती है। बडी उम्र की लडकियां इन्हें सिखाती हैं कि ग्राहकों को कैसे संतुष्ट किया जाए और बदले में उनकी जेब कैसे ढीली की जाती है।
 
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राजस्थान से सटे तीनों जिलों में बांछडा समुदाय की करीब दो हजार लड़कियां जिस्मफरोशी के इस धंधे से जुड़ी हुई हैं।  हैरानी की बात ये है कि बांछड़ा समुदाय के पुरुष लड़कियों के जिस्म से मिलने वाली कमाई के भरोसे ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। गांवों में रहने वाली बांछड़ा जाति के हाईवे पर कई सारे डेरे बने हुए हैं। हाईवे किनारे शाम ढलने और रात के अंधेरे से लगाकर दिन के उजाले तक में जिस्म की मंडी हर दिन सरेबाजार सजती है।
 
इस हाईवे से हर दिन पुलिस, अफसर, नेता हर कोई यहां से गुजरता है मगर मजाल कि कोई इस धंधे पर अंकुश लगा सके। कई सामाजिक संगठन और सरकारें इन्हें मुख्यधारा में शामिल कराने और यह काम बंद कराने के नाम पर प्रोजेक्ट और शोध कर बेहिसाब रुपया खर्च कर गईं मगर नतीजा आज भी जस का तस यानी ढाक के तीन पात ही है। 
 
बदलाव तो आया है, मगर इस तरह का... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 

21 वीं सदी के भारत का यहां कोई बदलाव नजर नहीं आता। हां यहां जो बदलाव दिखाई देता है वो कुछ अलग किस्म का है। डेरे और वो कमरे जहां प्रोस्टीट्‍यूशन होता है, हाईटेक हो गए हैं। अब इस धंधे में भी नए-नए ट्रेंड्‍स अपनाए जा रहे हैं। लड़कियां अब सलवार-कुर्ता या घाघरा-चोली की जगह जीन्स-टीशर्ट और स्लीवलैस पहनने लगी हैं। स्टाइलिश हेयर कट और हेयर ट्रिमिंग कराने लगी हैं।
 
इन लड़कियों के पास स्मार्ट फोन और नेट पैक भी होता है। यहां ग्राहकों को पोर्न वीडियो भी दिखाया जाता है। बगैर पढ़ी-लिखी लड़कियां तेजी से स्मार्ट फोन ऑपरेट कर लेती हैं। यही नहीं कच्ची उम्र की लड़कियों की फरमाइश पर ग्राहकों को वाट्स एप के जरिये लड़कियों के फोटो भी दिखाए जाते हैं। लड़कियां ब्रॉन्डेड शराब और बियर पीने लगी हैं। 
 
जाहिर है यहां बदलाव तो हो रहा है मगर धारा से उल्टी दिशा में। यहां डेरा चलाने वाली महिलाओं से बात करने पर पता चला कि पुलिस को यहां से हफ्ता दिया जाता है। यही नहीं खुद पुलिस के लोग भी इनसे मिले होकर कई बार मालदार ग्राहकों को बंद करने के नाम पर पैसा छीन ले जाते हैं।
 
यही वजह है कि रतलाम से लेकर चित्तौड़ तक जिस्म की मंडी हर दिन इसी तरह गुलजार रहती है। कई स्वयंसेवी संगठन और सरकारें भी इस पंरपरा को रोकने के नाम पर सालों से करोड़ों रुपए दीमक की तरह चट कर गईं, लेकिन हालात वहीं के वहीं है।

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