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पधारो म्हारे देस : हवेली, रेगिस्तान ही नहीं, दाल-बाटी, चूरमा भी सैलानियो में 'हिट'

हमें फॉलो करें पधारो म्हारे देस : हवेली, रेगिस्तान ही नहीं, दाल-बाटी, चूरमा भी सैलानियो में 'हिट'
जयपुर , बुधवार, 1 जुलाई 2015 (01:10 IST)
-अनुपमा जैन   

जयपुर। स्थानीय परिवार में विवाह का माहौल, फूलों, रंगबिरंगी झंडियो से सजी हवेली का आंगन, जमीन पर पंक्तियों में बैठकर मेहमान भोजन-जीमण कर रहे हैं, पकवानों की खुशबू से पूरा माहौल महक रहा है, रंगबिरंगी पगड़ियां पहने राजस्थानी वेशभूषा में सजे-संवरे पुरुष खाना परोस रहे हैं, सामने राजस्थानी वेशभूषा में सजी संवरी महिलाएं खाने की व्याख्या करने वाले लोक गीत गा रही हैं... 
 
‘दाल बाटी खाजा, म्हारो भाइ दिल्ली रो राजा
डंका चौथ भादूड़ो, ल्याये माइ लाडूड़ो,
लाडूड़ा  में घी घणों माँ बेटा में जीव घणो' 
 
राजस्थान में सिर्फ महल, हवेली, रेगिस्तान ही नहीं, दाल-बाटी,चूरमा, कैर, गट्टे की सब्जी जैसे ठेठ राजस्थानी व्यंजन भी न केवल भारतीय बल्कि विदेशी सैलानी खून चटखारे लेकर खा रहे हैं। प्रदेश के आंचलिक खान-पान की बात करें तो राजस्थानी व्यंजनों के कद्रदान ने न केवल देश में हर तरफ बल्कि देश की सीमाओं के बाहर भी बड़ी तादाद में हैं।
 
आंकड़ो के अनुसार देश में आने वाला हर तीसरा विदेशी पर्यटक राजस्थान को देखे बिना अपने देश वापस नहीं लौटता। राजस्थान की ‘दाल-बाटी और चूरमा’ जैसे व्यंजनो के लिए देश के महानगरों में कद्रदान ‘राजस्थानी फूड कोर्ट’ ढूंढ़ते नजर आते हैं। जयपुर की ‘चौखी घाणी’ और नई दिल्ली  में ‘दिल्ली-हाट’ ऐसे स्थान है जहां राजस्थानी जायके का स्वाद लेने वालो की भीड़ हमेंशा बनी रहती है। 
 
राजस्थान के दाल-बाटी-चूरमा के साथ ही लहसुन की तीखी चटनी, बेसन के गट्टे और कैर सांगरी की सहजी, मक्की की रोटी और गुड़, बाजरे की रोटी और खिचड़ी, मूंग की दाल का हलवा, मावे की कचोरियों के साथ ही मावे, दाल और प्याज की कचौरियाँ, मिर्ची बड़े, बेजर पूरी, राजस्थानी कड़ी, भाँति-भाँति के पापड़, और अचार, केसर से सुंगधित गरमागरम जलेबियां, रबड़ी, बीकानेरी रसगुल्ले, भुजिया-नमकीन, कांजी-बडा आदि ऐसे राजस्थानी व्यंजन है जिनका स्वाद शायद जबान पर ठहर सा जाता है। 
 
सामिष (नॉन वेजिटेरियन्स) के लिए तो राजस्थान के ‘लाल-मांस’ अपनी खास पहचान बना चुका है। राजस्थान का दूसरी बार भ्रमण करने इंग्लैंड से भारत आई जिनी का कहना है 'पहली बार यहां आने पर मुझे राजस्थानी व्यंजन भाए तो बहुत लेकिन तीखे भी लगे, लेकिन धीरे धीरे, तीखापन मीठा सब कुछ मुझे इस भोजन की खासियत लगने लगा। थाली में बैठकर जीमंण मुझे बेहद दिलकश लगता है और व्यंजनो के साथ बाजरे, जौ की रोटी जैसे खास खाने तो स्वास्थवर्द्धक भी है। इस ट्रिप में तो मै सोचकर आई हूं राजस्थान में सिर्फ खास 'राजस्थानी भोजन'।
 
इसी तरह दिल्ली के एक फूड कोर्ट में राजस्थान स्टॉल पर राजस्थानी थाली खाता केरल का परिवार भी राजस्थानी व्यंजन स्वाद से खाते देख विभिन्नता में एकता और सौहार्द का जीवंत प्रतीक था। शायद यही वजह है कि न केवल देश के सुदूरवर्ती स्थानो के साथ अनेक देशों में आज राजस्थानी पकवानों के ऑउट्लेट खूब हैं। 
 
राजस्थान् में बीकानेर की भुजिया-नमकीन, पापड़, मिठाईयाँ, रसगुल्ले, गुलाब जामुन और अलवर के मावे आदि का विदेशों में भी निर्यात हो रहा है। देश-विदेश के प्रमुख शहरों में ‘राजस्थानी नमकीन’ और ‘मिठाई भंडारों’ की धूम है और इस में जुड़े प्रतिष्ठानों ने अन्तरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर ली है। 
 
अजमेर जिले के ‘ब्यावर की तिलपट्टी’ व ‘गजक’ और तिल से बनाए जाने वाले अन्य व्यंजनों ने भी देश-विदेश में अपनी ‘धाक’ जमाई है। 
 
इसी प्रकार बांसवाड़ा डूंगरपुर क्षेत्रा की ‘मावा-बाटी’ व ‘दूध-पानियाँ’, भूट्टे से बनने वाले तरह-तरह के व्यंजन विशेषकर भूट्टे का हलवा ‘जाजरियाँ’ का अनूठा स्वाद, हरे चने का हलुवा, सब्जी पकोड़ियां आदि जैसे राजस्थानी व्यंजन बड़े- बड़े होटलों के साथ सामान्य ढाबे में भी लोगों को लुभा रहे हैं। 
 
राजधानी स्थित राजस्थान सूचना केन्द्र के प्रभारी और अतिरिक्त निदेशक गोपेन्द्र नाथ भट्ट के अनुसार राजस्थान की रंग बिरंगी संस्कृति का देश-दुनिया  में काफी प्रचार-प्रसार हुआ है। इसका विशेष खानपान भी अपनी अलग पहचान बना चुका है और इसके कद्रदानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
 
विभिन्न अंचलों में बंटे मेवाड़-मारवाड़, बीकाणां, शेखावटी, ढूंठाड, मेवात, ब्रज, हाडौती, वागड़ अंचल के खान-पान के अपनी विशिष्टताएं है। राजस्थान में मौसम, तीज और त्यौहारों के अनुरूप खान-पान की विभिन्नताएं खाने-पीने के जायके में एक अलग ही तड़का लगाने वाली है। 
 
जयपुर में ‘तीज’ और ‘गणगौर’ त्यौहारों पर परम्परागत ढंग से शाही सवारियाँ निकलती हैं, जिसे देखने के लिए देश-विदेश के सैलानी उमड़ पड़ते हैं, लेकिन इसके साथ ही सैलानी इस मौसम  में खास तौर पर बनने वाले मिष्ठान घेवर के भी दीवाने बन जाते हैं और स्थानीय दुकानें इस जायके का लुत्फ उठाने वाले मुरीदो से भरी रहती हैं। 
 
इन त्यौहारों पर जयपुर की प्रसिद्ध मिठाई ‘घेवर’ के चर्चे देश-विदेश तक होते है। इन दिनों भॉति-भॉति के ‘घेवर’ बनने लगे है जो कि विशेष मेहमान नवाजी का सबब बनते है।
 
भट्ट के अनुसार दिल्ली-हाट में पिछले वर्षों भुट्टा फेस्टीवल का आयोजन हुआ था, जिस में भुट्टे के विविध व्यंजनों को सैलानियों ने मुक्त कंठ से प्रंशसा की थी। इसी प्रकार मक्के के आटे से बनने वाला नमकीन हलुवा जिसे मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में ‘घेरियां’ अथवा ‘पीढ़ियां’ कहते है, भी स्वाद  में किसी से कम नही है। 
 
इसी प्रकार मेवाड़ में चावल और ‘मक्की की राब’ जो छाछ मिलाकर बनाई जाती है और मनुहार के साथ मेहमानों को परोसी जाती है। इसका स्वाद हमेशा लोगों को तरोताजा बनाए रखता है। रबड़ी के मालपुएं, प्रतापगढ़ में आम से बनने वाली मिठाई ‘आम-पाक’ और ‘आम-पापड़’ लोगों को इसके स्वाद का लट्टू बनाने वाले है। यहां के मसालों  में ‘जीरा लूण’ और हींग की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।
 
राजस्थान के लोक गीतों में भी राजस्थानी व्यंजनों की खूबसूरत ढंग से व्याख्या की गई है और महिलाएं शादी-ब्याह, तीज-त्यौहारों पर मधुर कंठों में इन्हें गाकर सभी को मंत्रमुग्ध करती है। शादी के घर में मेहमान जीमण खत्म कर रहे हैं। महिलाएं उन्हें और खाने का मनुहार करती गा रही हैं...
 
‘बाजरा का रोटी ताती-ताती खावण ने 
ग्वार फली का साग ढ़ोला, लूंदो ऊपर लेवण ने 
टीबड़े पे आपां, जीमस्यां, खूब डटके’ 
(वीएनआई)

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